मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता: सुप्रीम कोर्ट ने दिया गुजारा भत्ता पाने का हक, जानिए क्या है ये नियम और कैसे मिलेगा फायदा?
- मुस्लिम महिला के मामले पर कोर्ट ने सुनाया फैसला
- मुस्लिम महिलाओं के तलाक पर कोर्ट के फैसले
- सीआरपीसी की धारा 125 की जानकारी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी 10 जुलाई को मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला दिया है। जिसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पहले पति से गुजारा भत्ता पाने का पूरा हक रखती है। इससे पहले साल 1985 में शहबानो के मामले में भी ऐसा ही फैसला सुनाया था। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने फैसला दिया है। दोनों ही जजों ने अलग फैसला सुनाया है लेकिन दोनों की राय मिलती जुलती थी। दोनों जजों ने अपने फैसले में बताया है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पहले पति से गुजारा भत्ता लेने का पूरा हक रखती है।
क्या है पूरा मामला?
15 नवंबर 2012 से इस मामले की शुरूआत हुई। जिसमें महिला ने अपने पति का घर छोड़ दिया था। उसके बाद 2017 में उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 498A और 406 के तहत केस दर्ज किया था। जिससे नाराज होकर उसके पति ने उसे तीन तलाक दे दिया। जिसके बाद 28 सितंबर 2017 में उनके तलाक का सर्टिफिकेट जारी हो गया था।
ऐसा माना जा रहा है कि तलाक के बाद इद्दत के समय तक महिला को हर महीने 15 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने की बात की। आपको बता दें कि इद्दत का समय तीन महीने तक का होता है। जिस पर महिला ने इद्दत लेने से मना कर दिया था। इद्दत लेने की जगह महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने की मांग की। वहीं 9 जून को फैमिली कोर्ट ने आदमी को 20 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
जिसके बाद पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। लेकिन 20 हजार रुपये को कम करके 10 हजार कर दिया।
पति हाईकोर्ट के फैसले को भी नकारकर सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंच गया। जहां पर उसने दलील दी कि एक तलाकशुदा महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उसको याचिका दायर करने का हक नहीं है। साथ ही उसने अपनी दलील की पेशकश में ये भी कहा कि 1986 का कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद है।
पति की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अपना फैसला देते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता लेने के लिए याचिका दायर कर सकती है। उसको पूरा हक है याचिका दायर करने का। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी साफ-साफ बताया कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होती है। चाहें वो कोई भी धर्म या जाति की हो।
मुस्लिम महिलाओं के तलाक पर कोर्ट ने कहा
अगर किसी मुस्लिम महिला की शादी या तलाक स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होती है तो भी उस पर धारा 125 लागू होती है।
अगर मुस्लिम महिला की शादी या तलाक मुस्लिम कानून के हिसाब से होती है तो भी उस पर धारा 125 लागू होगी। साथ ही 1986 के कानून के प्रावधान भी लागू होंगे। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के पास दोनों में से किसी एक या दोनों तरीकों से गुजारा भत्ता पाने का ऑप्शन है।
अगर 1986 के कानून के साथ-साथ मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भी याचिका दर्ज कर सकती है। इसके साथ ही 1986 के कानून के प्रावधआनों के तहत जारी हुए कीसी भी आदेश पर सीआरपीसी की धारा 127(3)(b) के तहत विचार कर सकते हैं।
सीआरपीसी की धारा 125 की जानकारी
सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत महिलाओं, बच्चों और माता पिता को मिलने वाले गुजारे भत्ते का प्रावधान किया गया है। जिसका प्रावधान नए कानून में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 में किया गया है।
इस धारा के मुताबिक कोई भी पुरुष अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और माता पिता को गुजारा भत्ता देने से मना नहीं कर सकता है। इसमें नाजायज लेकिन वैध बच्चों को भी रखा गया है। धारा साफ कहती है कि अगर पत्नी, बच्चे और माता पिता अपना खर्च उठाने में असमर्थ हैं तो पुरुष उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देगा। गुजारा भत्ता मजिस्ट्रेट के हाथों तय किया जाता है।
पत्नी को गुजारा भत्ता तब तक मिलेगा जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है। साथ ही इस धारा में ये भी प्रावधान है कि अगर कोई पत्नी बिना वजह पति से अलग होती है या किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है या आपसी सहमति से अलग होती है तो उसको गुजारा भत्ता मांगने का कोई हक नहीं है।
Created On :   11 July 2024 3:19 PM IST