69वीं पुण्यतिथि: जाने कैसे अखंड भारत के लौह पुरूष बनें थे सरदार पटेल

How Sardar Patel became the Iron Man of united India
69वीं पुण्यतिथि: जाने कैसे अखंड भारत के लौह पुरूष बनें थे सरदार पटेल
69वीं पुण्यतिथि: जाने कैसे अखंड भारत के लौह पुरूष बनें थे सरदार पटेल

डिजिटल डेस्क। किसान परिवार में जन्में भारत के लौह पुरुष और पहले उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 69वीं पुण्यतिथि है। देश की आजादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान देने वाले सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। लंबी बीमारी के बाद 15 दिसंबर 1950 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। मुंबई के बिरला हाउस में सरदार पटेल ने अंतिम सांस ली। साल 1928 में गुजरात के बारदोली में किसान आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के लिए महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार की उपाधि दी थी।

सरदार पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं। आजादी के बाद भारत को एकजुट करने का श्रेय सरदार पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को दिया जाता है। आईए हम आपको बताते हैं कि आखिर कैसे सरदार पटेल अखंड भारत के लौहपुरूष और सूत्रधार बने थे ?

देश को आजादी मिलने के बाद रियासतों में बिखरे भारत को एकजुट करने का काम बड़ा ही मुश्किल था, लेकिन महात्मा गांधी जानते थे कि यह काम केवल सरदार ही कर सकते हैं। इसी कारण उन्होंने सरदार को देश के गृहमंत्री बनाने पर जोर दिया था। देश की 562 रियासतों का एकीकरण करने के अलावा जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाना आसान नहीं था, लेकिन सरदार ने यह काम कर दिखाया।

562 रियासतों का विलय

जब अंग्रेजों ने भारत की स्वतंत्रता की घोषणा की तब उस समय देश 565 देशी रियासतों में बंटा हुआ था। आजादी के ऐलान के साथ ब्रिटिश शासकों ने इन रियासतों को स्वतंत्र शासन करने की छूट दे दी थी। आजादी मिलने से पहले ही 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना कर दी गई थी। इसके बाद सरदार ने पीवी मेनन के साथ मिलकर देशी रियसतों को मिलाने का काम शुरू कर दिया था। इसके परिणाम में 565 देशी रियासतों में से 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दे दी। वहीं बाकी की तीन रियासतें जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं को भारत में विलय होना मंजूर नहीं था। यह तीनों मुस्लिम बहुल्य रियासतें थी।

जम्मू और कश्मीर

जम्मू और कश्मीर के राजा हरिसिंह एक हिंदू राजा थे, लेकिन उनकी रियासत मुस्लिम बहुल्य थी। राजा हरिसिंह भारत में अपनी रियासत को विलय करने का अंतिम फैसला नहीं ले सके थे। आजादी के कुछ महीनों बाद ही पाकिस्तान ने 21 अक्टूबर 1947 को कबायलियों को भेज कर कश्मीर पर हमला कर दिया। इसके बाद राजा हरिसिंह ने सुरक्षा के लिए भारत से मदद मांगी, जिसके बदले में सरदार ने जम्मू और कश्मीर को भारत में विलय करने की शर्त रखी।

कश्मीर को कबायलियों के हमले से बचाने के लिए राजा हरिसिंह ने 25 अक्टूबर 1947 को अपनी रियासत को भारत में विलय करने के लिए तैयार हो गए। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि इस फैसले में कश्मीर के बड़े नेता शेख अब्दुल्ला की सहमति भी शामिल थी। विलय के दस्तावेज पर समझौता होने के बाद भारत ने अपनी सेना भेजकर कश्मीर से पाकिस्तानी कबायलियों को खदेड़ दिया।

जूनागढ़

जूनागढ़ चारों तरफ से भारत से घिरा हुआ था, जिसके नवाब मोहब्बत खान बाबी की रियासत का अधिकतर हिस्सा हिंदुओं का था। 14 अगस्त, 1947 को मोहब्बत खान ने एक खास "गजट" के जरिए जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का ऐलान किया। जूनागढ़ को भारत में शामिल करने में सरदार की दिलचस्पी भी थी। उन्होंने जूनागढ़ को तेल-कोयले की सप्लाई, हवाई-डाक संपर्क रोक कर आर्थिक घेराबंदी कर दी। जूनागढ़ की जनता भी उसके खिलाफ विद्रोह पर उतर आई और 26 अक्टूबर 1947 को जूनागढ़ का नवाब मोहब्बत खान बाबी परिवार समेत पाकिस्तान भाग गया।

इसके बाद जूनागढ़ के दीवान शाहनवाज भुट्टो ने नंवबर, 1947 के पहले सप्ताह में जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को खारिज कर उसके भारत में विलय की घोषणा कर दी। बता दें कि शाहनवाज भुट्टो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता थे, जिन्हें जिन्ना और मुस्लिम लीग के इशारों पर जूनागढ़ का दीवान बनाया गया था। इसके बाद सरदार ने 20 फरवरी, 1948 को जूनागढ़ को देश का हिस्सा बनाया।

हैदराबाद

जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ के बाद अब केवल हैदराबाद रियासत बची थी, जिसे भारत में विलय करने के लिए सरदार को "ऑपरेशन पोलो" चलाना पड़ा। हैदराबाद की 87 फीसदी आबादी हिंदुओं की थी, लेकिन वहां का निजाम और वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम बैठें हुए थे। हैदराबाद का निजाम उस्मान अली खान अपनी रियासत को विलय न करने पर अड़ा हुआ था। 15 अगस्त 1947 को निजाम ने हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया और पाकिस्तान से हथियार खरीदने की कोशिश में लग गया।

इसके बाद सरदार ने भारतीय सेना को 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद पर चढ़ाई करने के आदेश दिए और ऑपरेशन पोलो के तहत भारतीय सेना ने दो ही दिन के अंदर ही हैदराबाद पर कब्जा कर लिया। सरदार के कहने पर भारतीय सेना ने हैदराबाद पर कब्जा तो कर लिया, लेकिन देश में सांप्रदायिक माहौल खराब न हो इसके लिए सरदार ने अपनी कूटनीतिक चालाकी से निजाम को अपने साथ मिला लिया। 

इस तरह सरदार ने तीनों रियासतों जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के भारत में विलय का काम बखूबी निभाया। उन्होंने 565 देशी रियासतों को भारत में जोड़ा। इसके बाद उन्हें देश को एक सूत्र में बांधने के लिए "लौह पुरुष" की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।

Created On :   15 Dec 2019 11:46 AM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story