जन्मदिन विशेष: जिसके एक इशारे पर थम जाती थी मुंबई, ऐसे बालासाहेब ने कार्टूनिस्ट होकर खड़ी की पार्टी
- पिता प्रबोधन ठाकरे ने पार्टी को शिवसेना नाम दिया था
- बालासाहेब खुद को अडोल्फ हिटलर का प्रशंसक बताते थे
- बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए बोझ बताया था
डिजिटल डेस्क, मुंबई। शिवसेना पार्टी की नीव रखने वाले बालासाहेब ठाकरे का आज (गुरुवार) जन्म दिन है। ठाकरे का जन्म 23 जनवरी को 1926 को पुणे महाराष्ट्र में हुआ था। इनका पूरा नाम बाल केशव ठाकरे है प्यार से लोग उन्हें बालासाहेब ठाकरे कहते हैं। इनके पिता प्रबोधनकार ठाकरे एक सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे। बालासाहेब का जीवन बड़ा ही रोचक रहा है। एक कार्टूनिस्ट होकर उन्होंने हिंदुत्व विचारधारा की पार्टी खड़ी की। मराठी लोगों के लिए न्याय और उत्तर भारतीयों पर हमलों को लेकर वह हमेशा चर्चा में रहे हैं। बालासाहेब की शख्सियत ऐसी थी कि कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन उनसे मिलने बड़े-बड़े नेता, अभिनेता और खिलाड़ी आते थे। उनके एक इशारे पर मुंबई थम जाती थी। आइए जानते हैं बालासाहेब के जन्मदिन पर उनके बारे में कुछ खास बातें:
बालासाहेब ठाकरे ने 17 नवंबर 2012 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया। ठाकरे की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी राजकीय सम्मान के साथ विदाई हुई थी। उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई थी।
बालासाहेब ठाकरे ने कश्मीरी पंडितों की मदद भी की थी। पत्रकार राहुल पंडिता ने इसका खुलासा किया था। 1990 में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार हो रहा था। कई लाख लोग सड़कों पर आ गए थे। तब समुदाय के कुछ प्रतिनिधि ठाकरे से मदद मांगने पहुंचे थे। बालासाहेब ने महाराष्ट्र के संस्थानों में कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करवा दी।
बाल ठाकरे को समझना नामुकिन था। वह हमेशा पाकिस्तान के खिलाफ हमला करते थे, लेकिन एक बार क्रिकेटर जावेद मियांदाद भारत आए तो ठाकरे ने उनसे अलग मुलाकात की। वहीं जब मुंबई ब्लास्ट में संजय दत्त का नाम आया और उनकी गिरफ्तारी हुई। ठाकरे ने सुनील दत्त के कांग्रेस पार्टी में होने के बावजूद काफी मदद की।
बाघ के छवियों वाले सिंहासन पर बैठने वाले ठाकरे को अपने जीवन में दुखों का सामना भी करना पड़ा। उन्होंने उस समय सबसे ज्यादा आघात लगा जब उनकी पत्नी मीना की 1995 में मौत हो गई। अगले ही साल उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे बिंदुमाधव को सड़क हादसे में खो दिया। वहीं उन्हें सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनकी परछाई कहे जाने वाले भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना को 2005 में छोड़ दिया।
बालासाहेब ठाकरे अपने बयानों को लेकर हमेशा विवादों में रहे। उन्होंने बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए बोझ कहा था। वहीं उन्होंने इंटरव्यू में खुद को 'पागल हिंदू' और हिंदू आतंकवाद की वकालत भी की थी।
ठाकरे पर हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगा भड़काने का आरोप लगा था। मुंबई में हुए मुस्लिम विरोधी दंगों में करीब एक हजार लोग मारे गए थे। दंगों के आरोप में बालासाहेब को गिरफ्तार कर किया गया था, लेकिन जल्द वह छूट गए। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार नहीं किया। ठाकरे ने कहा था कि जो मुस्लिम इस देश में रहते हैं, वे यहां के नियमों के मुताबिक नहीं चलते हैं। मैं ऐसे लोगों के विरोध में हूं।
बालासाहेब खुद को अडोल्फ हिटलर का प्रशंसक बताते थे। उन्होंने महाराष्ट्र में मराठी युवाओं को नौकरियां से लेकर सभी सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ी। साल 1990 में शिवसेना ने महाराष्ट्र में अच्छी पकड़ बना ली थी। ठाकरे चाहते तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। बालासाहेब हमेशा किंगमेकर की भूमिका में रहे।
बालासाहेब ठाकरे की एक बार पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर से टकरार हो गई थी। सचिन ने महाराष्ट्र को लेकर कहा था कि इस राज्य पर पूरे भारत का हक है। इस पर बाल ठाकरे नाराज हो गए। उन्होंने कहा था कि तेंदुलकर क्रिकेट की पिच पर हीं रहें, राजनीति का खेल हमें खेलने दें।
बालासाहेब मराठियों से काफी प्यार करते थे। उनको आगे बढ़ाने के लिए वह अपने विरोधियों का समर्थन देने से पीछे नहीं हटते थे। उन्होंने एक बयान में कहा था कि 'महाराष्ट्र महराठियों' का है। उनकी पार्टी ने साल 2007 में राष्ट्रपति चुनाव में सहयोगी पार्टी भाजपा का साथ न देकर विरोधी पार्टी की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया जो महाराष्ट्र से थी।
ठाकरे ने 19 जून 1966 को एक नारियल फोड़कर शिवसेना की स्थापना की। उनके पिता प्रबोधन ठाकरे ने पार्टी को शिवसेना नाम दिया था। पार्टी के गठन के चार महीने बाद बालासाहेब ने अपने अखबार मार्मिक के जरिए पहली रैली दशहरे पर शिवाजी पार्क में करने का ऐलान किया। बालासाहेब ने मराठी मानुस की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी उठा ली थी। महाराष्ट्र में दूसरे शहरों के बढ़ते वर्चस्व के बीच ठाकरे मराठियों के लिए मसीहा बने। शिवसेना की पहली रैली में इतने लोग आए कि शिवाजी मैदान छोटा पड़ गया था।
बालासाहेब ठाकरे ने अपने जीवन का सफर एक कार्टूनिस्ट के तौर पर शुरु किया था। उन्होंने शुरुवात अंग्रेजी समचारपत्र फ्री प्रेस जर्नल से की थी। इसके बाद उन्होंने 1960 में अपने भाई के साथ मिलकर मार्मिक नाम से साप्ताहिक अखबार निकाला।
Created On :   23 Jan 2020 10:43 AM IST