इलेक्टोरल बॉन्ड मामला: कथित इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले में SIT गठन करना सही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की
- सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की
- SIT गठन करना सही नहीं- सुप्रीम कोर्ट
- कानून के आधार पर मिला चंदा- SC
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इलेक्टोरल बॉन्ड मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कंपनियों से राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की 'स्पेशल इंवेस्टिगेटिव टीम' (एसआईटी) से जांच करवाने की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कथित मामले में जांच की जरुरत नहीं है। अगर किसी को आशंका है, तो वह कानूनी रास्ता अपना सकते हैं। ऐसे में अगर किसी को समाधान नहीं मिलता है तो वह अदालत भी जा सकते हैं।
याचिकाकर्ता की मांग
बता दें कि, एनजीओ ‘कॉमन कॉज’ और ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) ने याचिका दायर की थी। जिसमें उसने दावा किया कि राजनीतिक चंदे के जरिए कथित घूस दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि इलेक्टरोल बॉन्ड के जरिए चंदे में करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ है। इस पूरे मामले की सीबीआई या फिर अन्य जांच एजेंसी जांच नहीं कर रही है। ऐसे में हमारी ओर से मांग है कि पूरे मामले की एसआईटी जांच हो।
याचिकाकर्ता ने रखा अपना पक्ष
इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कंपनी और राजनीतिक पार्टियों के बीच हुए लेन-देन को लेकर आंकलन की मांग की गई। साथ ही, SIT टीम गठित करने की भी मांग की गई है। सीजेआई ने कहा कि वकीलों ने अदालत को जानकारी दी है कि जब से इलेक्टोरल बांड के आंकड़े सार्वजनिक हुए हैं। तब से ही राजनीतिक पार्टियों की तरफ से सरकार से फायदा लेने के लिए कंपनियों की तरफ से चंदा देने की बात सामने आई है।
वकीलों का कहना है कि SIT टीम गठित होनी चाहिए। क्योंकि, सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं करेंगी। उनके मुताबिक कई मामलों में एजेंसियों के कुछ अधिकारी खुद भी चंदे का दबाव बनाने में शामिल हैं।
कानून के आधार पर मिला चंदा- SC
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संसद के बनाए गए कानून के तहत कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड को खरीदा है। कानून के आधार पर ही पार्टियों को चंदा मिला है। अब यह कानून रद्द हो गया है। ऐसे में हमें तय करना है कि चंदे की जांच की जरूरत है या फिर नहीं। याचिका दाखिल करने वाले मानते हैं कि कानून के तहत कंपनी राजनीतिक दलों को चंदा फायदा कमाने के लिए दिया गया ताकि उन्हें सरकारी कॉन्ट्रैक्ट मिले या उनके हिसाब से सरकार की नीति बदले। याचिकाकर्ता यह भी कहना है कि सरकारी एजेंसियां जांच नहीं कर पाएंगी।
जांच का आदेश देना जल्दबाजी
मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं से स्पष्ट कहा कि यह सब आपकी धारणा है। अभी मामले में कोर्ट सीधे तौर पर जांच करवाने का आदेश नहीं सकता है। अगर किसी को आशंका है तो वह कानूनी रास्ता ले सकता है। अगर उन्हें समाधान नहीं मिलता है तो वह कोर्ट जा सकता है। मौजूदा स्थिति में अगर सुप्रीम कोर्ट (एससी) जांच के आदेश देता है तो यह जल्दबाजी होगी।
SIT गठन करना सही नहीं- SC
सीजेआई ने कहा कि कानूनी विकल्प उपलब्ध हैं। सीधे तौर पर एससी में याचिका दाखिल करना सही नहीं है। ऐसे में अभी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में SIT गठन करना सही नहीं है।
Created On :   2 Aug 2024 4:31 PM IST