रोहिणी व्रत: पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है ये व्रत, जानें पूजा विधि
- महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं व्रत
- पुरुष भी अपनी स्वेच्छा से इस व्रत को रख सकते हैं
- इस दिन गरीबों को दान देने का अत्यधिक महत्व है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। जैन समुदाय का प्रचलित रोहिणी व्रत 21 जनवरी, रविवार को मनाया जा रहा है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस व्रत में रोहिणी नक्षत्र का मुख्य स्थान होता है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस व्रत को सिर्फ महिलाएं ही कर सकती हैं। पुरुष भी अपनी स्वेच्छा से इस व्रत को रख सकते हैं। इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान वासुपूज्य की भी आराधना करते हैं।
माना जाता है कि, जो भी व्यक्ति इस व्रत का रखता है उसके घर में धन-धान्य और सुखों में वृद्धि होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जैन समुदाय में मौजूद 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र रोहिणी है, इसलिए जैन समुदाय के अनुयायी उनकी पूजा करते हैं। इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है।
पूजन विधि
- इस दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान करके पूजा करें।
- पूजा के लिए वासुपूज्य भगवान की पांचरत्नए ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना करें।
- उनकी आराधना करके दो वस्त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का भोग लगाएं।
- रोहिणी व्रत का पालन उदिया तिथि में रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता है।
- इस दिन गरीबों को दान देने का अत्यधिक महत्व है।
व्रत की कथा
प्रचीन समय में वस्तुपाल नाम का राजा था, जिसका एक मित्र था- धनमित्र। धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्ना हुई। उसे हमेशा अपनी कन्या के विवाह की चिंता रहती थी। जिसके बाद धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेन से उसका विवाह कर दिया। इसके बाद वह दुगंध से परेशान होकर एक ही मास में दुर्गंधा को छोड़कर चला गया। एक दिन जब अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए धनमित्र ने अपनी कन्या के जीवन में आए कष्टों को दूर करने का उपाय पूछा।
अमृतसेन मुनिराज ने धनमित्र को राजा भूपाल के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि, एक दिन राजा- रानी सहित वनक्रीडा के लिए निकले तब रास्ते में मुनिराज को देखकर आहार की व्यवस्था करने को कहा। लेकिन रानी ने गुस्से में मुनिराज को कड़वी तुम्बी का आहार दिया, जिससे की मृत्यु हो गई। इस पाप से रानी को कोढ़ उत्पन्ना हो गया। बाद में रानी का जन्म तुम्हारे घर पर हुआ। इसके बाद दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक रोहणी व्रत धारण किया। इससे उन्हें दुखों से मुक्ति मिली।
Created On :   18 Jan 2024 3:13 PM IST