वामन जयंती: भगवान विष्णु के इस अवतार की करें पूजा, जानें कथा
डिजिटल डेस्क। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 10 सितंबर मंगलवार यानी कि आज मनाया जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान वामन ने पृथ्वी पर बालि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिया था। उन्होंने अपना पांचवा अवतार वामन के रूप में लिया था। द्वादशी तिथि को मनाए जाने के कारण इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं। आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी खास बातें...
महत्व
विष्णु जी के इन 10 अवतारों में वामन अवतार को बड़ा ही खास माना जाता है। वामन को ऐसा पहला अवतार कहा जाता है जिसमें विष्णु जी मानव रूप में प्रकट हुए थे। भगवान वामन को इन्द्र जी का छोटा भाई भी बताया गया है। इस दिन समस्त वैष्णव भक्तों को इस दिन उपवास करना चाहिए। प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन अभिजीत मुहूर्त में वामन भगवान का पूजन करना चाहिए।
इस दिन एक पात्र में चावल, दही और चीनी रखकर किसी वेद पाठी ब्राह्मण को दान करना चाहिए। वहीं सायं काल पुनः स्नान करने के उपरांत भगवान वामन का पूजन करना चाहिए। पूजा के समय व्रत कथा भी सुननी चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। स्वयं फलाहार करना चाहिए।
मान्यता
पुराणों में ऐसा कहा गया है कि भक्तों को वामन जयंती के दिन व्रत रखना चाहिए। इस दिन भगवान वामन की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर पंचोपचार सहित उनकी पूजा करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जो भक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस दिन भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। कहते हैं कि यदि आपको वामन जी की प्रतिमा या तस्वीर ना मिले तो आप विष्णु जी की पूजा-अर्चना भी कर सकते हैं। हालांकि वामन जयंती पर भगवान ‘वामन’ की पूजा करना ही बेहतर है। कहा जाता है कि वामन जयंती पर व्रत रखने से व्यक्ति को उसके शत्रुओं पर बढ़त मिलती है।
कथा
वामन अवतार कथा अनुसार जब देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है, तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से जन्म लेते हैं ?। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्राह्मण-ब्रह्मचारी का रूप धारण करते हैं।
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते हैं ।
भगवान वामन जी ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंते हैं, और भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं, राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, तीन पग भूमि दान में दे देते हैं । वामन रुप श्री भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेने के बाद तीसरा पैर रखने के लिए ब्रह्मांड में कोई जगह ही नहीं बची तब राजा बलि ने अपना सिर भगवान के पैर के नीचे रखते हुए कहा हे भगवन तीसरा पग मेरे सिर पर रखे । राजा बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान वामन अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और बलि को पाताललोक का स्वामी बना देते हैं इस तरह भगवान वामन देवताओं की सहायता कर उन्हें पुन: स्वर्ग का अधिकारी बनाते हैं ।
पांचवे अवतार की पुष्टि
अध्यात्म रामायाण में भी भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन के बारे में उल्लेख किया गया है। वहीं, तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में वामन अवतार के बारे में लिखा है। इसके चलते भगवान विष्णु के इस पांचवें अवतार की पुष्टि होती है।
Created On :   9 Sept 2019 10:29 AM GMT