शनि प्रदोष व्रत: आज इस विधि से करें शिवजी की पूजा, मिलेंगे ये फायदे
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आने वाले शनिवार को शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस बार शनि प्रदोष व्रत 7 फरवरी 2020 (शनिवार) यानी कि आज है। मान्यता है कि यह व्रत करने के शनि दोष भी दूर होते हैं। शनि प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को करने के विधान है।
मालूम हो कि प्रत्येक माह में दो त्रयोदशी तिथि पड़ती है। इन दोनों तिथियों को प्रदोष व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि शनि त्रयोदशी शनि देव की जन्म तिथि है। इसलिए इस दिन शनि से संबंधित उपाय भी किए जाते हैं। पुराणों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत करने से पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी होती है। आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि और महत्व।
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पूजा विधि
शनि प्रदोष व्रत बिना जल ग्रहण किए किया जाता है। सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय जब सूर्यास्त होने वाला होता है उस समय सफेद वस्त्र धारण करके भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। विभिन्न फूलों, बेलपत्रों से शिव को प्रसन्न करना चाहिए। शिवजी की पूजा के बाद आरती, भजन करें। इससे शिवजी भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं।
शनिवार होने की वजह से इस दिन व्रती को शनि महाराज के निमित्त पीपल में जल देना चाहिए। शनि स्तोत्र और चालीसा का पाठ करना भी इस दिन शुभ रहता है। इस बात शनि प्रदोष के साथ पुष्य नक्षत्र का संयोग बना है जो बहुत ही शुभ फलदायी है। इसी महीने 21 मार्च को कृष्ण पक्ष में भी शनि प्रदोष लग रहा है। ऐसे में इसका महत्व और अधिक रहेगा।
कथा
स्कन्द पुराण में शनि प्रदोष व्रत की कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षाटन कर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया। लेकिन वह नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। दरअसल वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसे शत्रुओं ने उसके राज्य से बाहर कर दिया था। एक भीषण युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। जिसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। नदी किनारे बैठा वह बालक उदास लग रहा था, इसलिए ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
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जिसके बाद राजकुमार भी उसके साथ अति प्रसन्न था। कुछ समय के बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई। शाण्डिल्य उस वक्त के प्रतापी ऋषि थे, जिन्हें हर कोई मानता था। ऋषि ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे। राजा तो युद्ध में मारे गए लेकिन बाद में उनकी रानी यानी कि उस बालक की माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। यह सुन ब्राह्मणी बेहद दुखी हुई, लेकिन तभी ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। सभी ने ऋषि द्वारा बताए गए पूर्ण विधि-विधान से ही व्रत सम्पन्न किया, लेकिन वह नहीं जानते थे कि यह व्रत उन्हें क्या फल देने वाला है।
Created On :   7 March 2020 2:58 AM GMT