यहां होती है रावण की पूजा, आदिवासी मानते है अपना ईष्ट, पिण्ड स्वरूप में करते हैं आराधना
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। शारदीय नवरात्र के ९ दिन पूरे हो गए है, दसवें दिन बुधवार को दशहरा पर्व मनाया जाएगा। इस मौके पर पूरे हर्षोल्लास के साथ बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का जगह-जगह दहन किया जाएगा। लेकिन जिस रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, उसी रावण व मेघनाद को जिले के आदिवासी न केवल अपना ईष्ट मानकर पूजते है, बल्कि पूजा के उपरांत सुख-समृद्धि के लिए आर्शीर्वाद भी मांगते है।
रावण का मंदिर है स्थापित
जिले के रावनवाड़ा क्षेत्र में लगभग ८० साल पुराना पहाड़ी पर रावण का मंदिर है। आदिवासी समाज यहां रावण की पूजा पिण्ड स्वरूप मेें करते है। वहीं चारगांव में रावण की मडिय़ा तथा उमरेठ में लगभग सवा सौ साल से मेघनाद खंडेरा में आस्था और उल्लास के साथ पूजन कर ’जय रावण’ और ’जय मेघनाद’ के जयकारे लगा रहे हैं।
सामाजिक सोहार्द्र कायम
क्षेत्र में राम और रावण को पूजने वाली दो विचार धारा के लोगों में अपनी धार्मिक मान्यताओं को लेकर कभी टकराव नहीं हुआ है। दशहरा पर हिन्दू धर्मावलंबी जहां लंकापति पर श्रीराम की जीत का उत्सव मनाते हैं, वहीं आदिवासी समुदाय द्वारा अपने ईष्ट रावण और मेघनाद का पूजन भी उतनी ही आस्था से करते है।
Created On :   4 Oct 2022 10:30 PM IST