प्रकाश पर्व 2019: इस नाम से जाने जाते हैं गुरु नानक, जानें उनकी यात्राओं के बारे में
डिजिटल डेस्क। कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक देव जयंती प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाएगी। इस साल गुरु नानक जयंती 12 नवंबर मंगलवार को है। इस पर्व की शुरुआत दो दिन पहले से ही गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ से शुरु हो जाती है। 48 घंटे तक चलने वाले इस पाठ को अखंड पाठ कहा जाता है।
गुरु नानक जी सिख समुदाय के संस्थापक और पहले गुरु थे। इन्होंने ही सिख समाज की नींव रखी। इनके अनुयायी इन्हें नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह कहकर पुकारते हैं। वहीं, लद्दाख और तिब्बत में इन्हें नानक लामा कहा जाता है।
इन नामों से भी जाने जाते हैं नानक
नानक सिखों के आदि गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाज-सुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - अनेक गुण अपने आपमें समेटे हुए थे।
मानवता की सेवा
गुरु नानक ने दुनिया के दर्द को समझा और लोगों के दुखों का निवारण वैज्ञानिक तौर पर किया। उन्होंने कहा, सुख दुख एक समान हैं, इन दोनों को बराबर ही आंकना चाहिए। दुख में दुखी नहीं होना चाहिए एवं सुख में अहंकार से दूर रहना चाहिए। गुरु नानक जी ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया। उन्होंने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर उपदेश दिए।
प्रसिद्ध धार्मिक स्थल
सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नाम की जगह पर माता तृप्ता व कृषक पिता कल्याणचंद के घर हुआ। यह स्थान अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है। इस जगह का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा। यहां बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा ननकाना साहिब भी है, जो सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। इस गुरुद्वारे को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं।
सिख धर्म के दूसरे गुरु
पंजाबी भाषा में उनकी यात्रा को उदासियां कहते हैं। उनकी पहली उदासी अक्टूबर 1507 ईं. से 1515 ईं. तक रही। 16 साल की उम्र में सुलक्खनी नाम की कन्या से शादी की और दो लड़कों श्रीचंद और लखमीदास के पिता बने। 1539 ई. में करतारपुर, जो अब पाकिस्तान में है की एक धर्मशाला में उनकी मृत्यु हुई। मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए। गुरु अंगद देव ही सिख धर्म के दूसरे गुरु बने।
विश्व की चार बड़ी यात्राएं
गुरु नानक जी ने सन 1500 में पहली यात्रा शुरू की थी, इस यात्रा के दौरान वो सुल्तानपुर, मुल्तान, सियालकोट पाकिस्तान, पानीपत, दिल्ली, बनारस, नानकमता नैनीताल, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारिका और आसाम तक गए।दूसरी, तीसरी और चौथी यात्रा के दौरान पातशाह कश्मीर, नेपाल, सिक्किम, तिब्बत, चीन और श्रीलंका गए। उन्होंने मक्का और अरब देशों में बगदाद तक सफर किया था। “एको भाई एको है, साहिब मेरा एको है” उन्होंने कहा कि मेरा ईश्वर एक है। वो सभी में बसता है। पातशाह ने समस्त मानवजाति को मानवीय आधार पर एक होने का आह्वान किया।
मूलमंत्र में बताया, कैसा है ईश्वर
जपजी साहिब की पहली पंक्ति में बाबा नानक ने एक ओंअंकार लिखा, जिसका अर्थ है कि ईश्वर (वाहेगुरु) अलग-अलग नहीं, बल्कि वो तो एक ही हैं। उन्होंने मूलमंत्र के मध्यम से ईश्वर के गुणों का बखान किया और कहा कि हर सिख को यह गुण धारण करने चाहिए। गुरु जी ने बताया कि ईश्वर का का नाम सत्य है, वो दुनिया को बनाने वाला है। उसे किसी का भय नहीं, उसका किसी से विरोध नहीं है। वो जन्म-मरण के बंधन से परे है। उसकी उत्पत्ति खुद से है। जो अकालपुरख वाहेगुरु ज्ञान द्वारा मिलते हैं।
गुरु नानक साहिब ने कहा था कि अकाल पुरख वाहेगुरु की कोई शक्ल नहीं। उनकी मूर्ति नहीं बनाई जा सकती और ना ही वह किसी खास दिशा में रहते हैं। वो सर्व व्यापक हैं।पंद्रहवीं शताब्दी में जब देश भेदभाव और हमलावरों के आक्रमणों से जूझ रहा था, तब जीवन के सही उद्देश्य का बोध कराने बाबा नानक विश्वभर की चार बड़ी यात्राओं पर निकले। उन्होंने चारों दिशाओं में घूमकर न केवल लोगों की तकलीफें सुनी, बल्कि उसका उपाय भी बताया।
Created On :   7 Nov 2019 9:58 AM IST