निर्जला एकादशी व्रत: इन बातों का रखें विशेष ध्यान

निर्जला एकादशी व्रत: इन बातों का रखें विशेष ध्यान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं, जो कि इस बार 13 जून को मनाई गई है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। निर्जला एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और समस्या से निवारण के लिए की जाती है। इस का व्रत करने से व्यक्ति को आयु, आरोग्य तथा विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। 

व्रत के नियम और विधि
यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए। इस व्रत में पानी पीना वर्जित है। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हैं। इसके अलावा जल पीने से व्रत टूट जाता है। व्रत करने वाले व्यक्ति को दृढ़तापूर्वक नियम पालन के साथ निर्जल उपवास करना चाहिए। सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल का त्याग करना चाहिए। 

द्वादशी को स्नान करके और सामर्थ्य के अनुसार सुवर्ण और जल भरा कलश दान देकर भोजन करें। ऐसा करने से सम्पूर्ण तीर्थों में जाकर स्नान, दानादि करने के समान फल मिलता है। इसे करने से विष्णुलोक की प्राप्त होती है। पुराणों के अनुसार भीम ने केवल यही एकादशी करके सारी एकादशियों का फल प्राप्त किया था। इस व्रत को सनातन धर्म में श्री हरि का सर्वाधिक प्रिय व्रत बताया गया है।

व्रत विधि
एकादशी के दिन सुर्योदय से पूर्व स्नान करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें, हो सके तो पीला वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। पूजा में पीले फूल, पंचामृत और तुलसी पत्र जरुर रखें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप करें।

प्रचलित कथा
जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में "वृक" नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाउंगा ?

पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते हुए और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।

इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। 
 

Created On :   13 Jun 2019 5:48 AM GMT

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