महाशिवरात्रि : जानें महाकाल को क्यों चढ़ाई जाती है भस्म, शिवपुराण में कही गई ये बात

Mahashivratri: Learn why Mahakal is climbed Bhasm, learn about it
महाशिवरात्रि : जानें महाकाल को क्यों चढ़ाई जाती है भस्म, शिवपुराण में कही गई ये बात
महाशिवरात्रि : जानें महाकाल को क्यों चढ़ाई जाती है भस्म, शिवपुराण में कही गई ये बात

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भगवान शिव को भोला और सरल होने के साथ जल्दी प्रसन्न होने वाला माना गया है। वैसे तो हर दिन शिव की पूजा की जाती है, लेकिन महाशिवरात्रि का दिन विशेष है। इस दिन शिवालयों में स्थापित शिवलिंगों की दूध, दही, शहद और पंचामृत से अभिषेक कर पूजा की जाती है, लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भस्म चढ़ाई जाती है। यहां हम बात कर रहे हैं मप्र के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर की। 

बता दें कि बारह ज्योर्तिलिंग में से एक महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन विशेष रूप से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती की यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं महाकाल को भस्म अर्पित क्यों की जाती है? तो आइए आज शिवपुराण के अनुसार जानते हैं शिवलिंग पर भस्म क्यों अर्पित की जाती है…

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भस्म सृष्टि का सार
ऐसा माना जाता है कि शिवजी का प्रमुख वस्त्र ही भस्म है, क्योंकि उनका पूरा शरीर भस्म से ढंका रहता है। शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है, एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित हो जानी है। भस्म की यह विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसे शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्म, त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम भी करती है। शिवजी का निवास कैलाश पर्वत पर बताया गया है, जहां का वातावरण एकदम प्रतिकूल है। इस प्रतिकूल वातावरण को अनुकूल बनाने में भस्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भस्म धारण करने वाले शिव संदेश देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेना चाहिए। 

इसलिए लगाते हैं भोलेनाथ के शरीर पर भस्म? 
भगवान शिव ने अपने तन पर जो भस्म रमाई है वह उनकी पत्नी सती की चिता की भस्म थी। जब सती अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत हो वहां हो रहे यज्ञ के हवनकुंड में कूद गई थीं। भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत बेचैन हो गए। जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर प्रलाप करते हुए ब्रह्माण्ड में घूमते रहे। उनके क्रोध व बेचैनी से सृष्टि खतरे में पड़ गई। जहां जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। फिर भी शिव का संताप जारी रहा। पुराणों में भस्म का विवरण भी मिलता है, जिसके अनुसार श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया और शिव ने विरह की अग्नि में भस्म को ही उनकी अंतिम निशानी के तौर पर तन पर लगा लिया।

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महाकाल की भस्मार्ती
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर की भस्मार्ती विश्व भर में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि वर्षों पहले श्मशान भस्म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्म आरती होती आ रही है। 

तीन प्रकार की भस्म
श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो वह लौकिक भस्म है। शिव के शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम घमंड करते हैं, जिसकी सुविधा और रक्षा के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं एक दिन इसी इस भस्म के समान हो जाएगा। शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत। 

Created On :   20 Feb 2020 9:21 AM GMT

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