संतान की परेशानियों को दूर करता है ‘कुमार तंत्र’, जानें इसके बारे में  

Kumar Tantra, removes the problems of children, Learn about it
संतान की परेशानियों को दूर करता है ‘कुमार तंत्र’, जानें इसके बारे में  
संतान की परेशानियों को दूर करता है ‘कुमार तंत्र’, जानें इसके बारे में  

डिजिटल डेस्क। बच्चे सभी को प्यारे होते हैं और हर कोई संतान सुख की कामना करता है। जिस घर में संतान की किलकारियां गूंजती हैं, वह स्वर्ग से कम नहीं होता लेकिन घर में छोटे बच्चे यदि बीमार हों तो सिर्फ उसे ही पीड़ा नहीं होती, बल्कि उसके साथ घर के अन्य सदस्य भी परेशान हो जाते हैं। हालांकि बच्चों का बीमार होना कोई विशेष बात नहीं होती, परंतु एक निश्चित अंतराल के बाद ही बीमार पड़ना अवश्य ही चिंता की बात होती है।

छोटा बच्चा कई बार किसी निश्चित समय पर निश्चित अंतराल के बाद बिना किसी कारण से रोता है,चिल्लाता है और बीमार पड़ता है। मेडिकल साइंस में सब कुछ साधारण दिखाई देता है। बच्चे के माता पिता परेशान होते हैं और विविध प्रकार के उपचार करते हैं, फिर भी इसका हल नहीं ढूंढ पाते। वहीं पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री के अनुसार इस विषय में एक प्राचीन ग्रंथ हैं, जिसे लंकापति रावण ने रचा है। इस ग्रंथ का नाम है, कुमार तंत्र..., इसमें बालक के चिकित्सा संबंधी जानकारियां मिलती हैं। 

इस ग्रंथ के अनुसार 12 अलग- अलग मातृका होती हैं जो शिशु पर प्रभाव डालती हैं। इस मातृकाओं के कारण 12 वर्ष तक बालक को पीड़ा होती है। ये कौन सी मातृकाएं हैं और ये शिशु को किस प्रकार परेशान करती हैं, आइए जानते हैं...

1. नंदना मातृका 
नंदना मातृका शिशु को प्रथम दिन, प्रथम माह या प्रथम वर्ष में पीड़ित करती है। इसके प्रभाव से बालक माता का दूध नहीं पीता और निरंतर रोता रहता है।
2. सुनंदना मातृका
जन्म के दूसरे दिन, दूसरे माह, दूसरे वर्ष सुनंदना मातृका पीड़ित करती है, जिससे बालक सोता नहीं हैं, शरीर में कंपन होता है और वह दूध नहीं पीता।
3. पूतना मातृका
जन्म के तीसरे दिन, तीसरे माह, तीसरे वर्ष में बालक को पीड़ा देती है। इसके प्रभाव से बालक ऊपर की ओर टकटकी लगाकर देखता हैं मुट्ठियां बांधकर चिल्लाता है।
4. मुखमुंडिका मातृका
ये मातृका के तहत संतान जन्म के चौथे दिन, चौथे माह, चौथे वर्ष में बालक गर्दन झुकाए रहता है ज्वर आदि से पीड़ित रहती है।
5. कंठपूतना मातृका
जन्म से पांचवे दिन, पांचवे माह तथा पांचवे वर्ष में ये पीड़ा देती है इससे बालक ज्वर से पिड़ित होकर कांपने लगता है और उसकी मुट्ठिया बंधी रहती हैं।
6. शकुनिका मातृका 
जन्म से छठवें दिन, छठवें माह तथा छठवें वर्ष में पीड़ा देती है। बालक ज्वर से पीड़ित होता है, उसे नींद नहीं आती और ऊपर देखता है।
7. शुष्करेवती मातृका
यह जन्म के सातवें दिन, सातवें माह और सातवें वर्ष ये पीड़ा देती है। बालक को बुखार, शरीर में कंपन और निरंत रोना चलता है।
8. अर्यका मातृका
जन्म से आठवें दिन, आठवें माह, आठवें वर्ष में ये पीड़ा देती हैं। इससे बालक भोजन नहीं करता, शरीर में दुर्गध आती हैं ज्वर से पीड़ित होता है।
9. भूसूतिका मातृका
जन्म से नौवे में दिन, नौवे माह, नौवे वर्ष में पीड़ा देती है। इसके प्रभाव से बालक को बुखार ठंड अधिक लगती है और शरीर दर्द करता है।
10. निऋता मातृका
जन्म से दसवें दिन, दसवें माह, दसवें वर्ष में पीड़ा देती हैं। बालक मल मूत्र से जुड़े दोष से पीड़ित रहता है, शरीर में कंपन होता है।
11. पिलिपिच्छिका मातृका
यह जन्म से ग्यारहवें दिन, ग्यारहवें माह, ग्यारहवें वर्ष में परेशान करती है, बालक भोजन नहीं करता।
12. कामृका मातृका
जन्म से बारहवें दिन, बारहवें माह, बारहवें वर्ष में पीड़ा देता है, बालक हंस हंसकर रोता है हाथ पैर फेंकता हैं खाना नहीं खाता है।


         
साभार:  पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला                                                    

Created On :   9 Sept 2019 10:39 AM IST

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