कुंडली के हिसाब से ऐसी थी उतार-चढ़ाव से भरी अटलजी की जिंदगी
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- अटल जी का जीवन कई मिश्रित प्रतिभाओं
- गुणों का मेल है।
- अटल जी के भाग्य में देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचना लिखा था
- लिहाजा वो तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने।
- सबके चहेते रहे अटलजी
- राजनीतिक विपक्षी भी करते थे तारीफ
डिजिटल डेस्क। अटल जी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा रहा कि वो हमेशा हर किसी के चहेते रहे। 50 वर्षों तक लोकसभा और राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करना कोई मामूली बात नहीं, इससे पता चलता है कि अटल जी किस तरह नेतृत्व क्षमता के धनी थे। उनके भाग्य में देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचना लिखा था, लिहाजा वो तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने।
वाजपेयीजी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 की दोपहर 2 बजे मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। कुंडली के अनुसार उनके जीवन को देखा जाए तो उनकी कुंडली मेष लग्न की है। कुंडली में लग्नेश मंगल का स्थान बारहवें भाव में है। लग्न से दसवें में केतु है और लग्नेश से दसवें सूर्य गुरु वक्री बुध है। उनकी कुंडली में लग्नेश से नवे भाव में शुक्र चन्द्र है, लग्नेश से अष्टम में शनि है। कुंडली के हिसाब से भी उनके भाइयों और बहनों की संख्या मेल खाती है। उनकी कुंडली में शुक्र चन्द्र राहु की हैसियत को प्रदर्शित करती है।
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शुक्र का वृश्चिक राशि में चन्द्रमा के साथ होने से दादा और पिता की सम्पत्ति का त्याग भी माना जा सकता है। अपने हिस्से की सम्पत्ति को राहु के कारण दान करने के योग भी हैं।12 जनवरी 2017 से शनि दशा में मारकेश शुक्र और प्रयांतर राहु का होने के कारण मृत्युतुल्य कष्ट और मृत्यु होने का योग बना।
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कुंडली के अनुसार केतु ही राज्य को देने वाला है, तथा केतु से तीसरे भाव में लग्नेश मंगल का होना पद के रूप में सर्वोच्च पद देने वाला भी माना जाता है। गुरु का स्वराशि में होना और सूर्य के साथ होना धर्म और न्याय की रक्षा करने वाला भी माना जाता है। राहु शुक्र चन्द्र की युति होने से इनकी रुचि कविता करने साहित्य में अपना वर्चस्व प्राप्त करना बताता है।
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सूर्य का नवें भाव में होना और गुरु के साथ में होने से पिता के शिक्षक होने के योग बनते हैं। पिता से नवे भाव में सिंह राशि का होना अटलजी के दादा के बारे में बताता है। कुंडली के हिसाब से उनके दादा दो भाई-बहन होना चाहिए। अटलजी के दादा की का काम कुंडली के हिसाब से पूजा पाठ वाले काम और धार्मिक कृत्य तथा कथा भागवत को पढ़ने के रूप में सामने आता है। लग्न से चौथा राहु होने के कारण एक ज्योतिषी के रूप में भी उनके काम को गिना जा सकता है। राहु के द्वारा चौथे भाव में शनि का उच्च होना पिता का स्थान परिवर्तन होना, पिता के स्थान से बारहवें भाव है।
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कुण्डली के बाहरवें स्थान में मीन राशि का मंगल बेठा है और शुक्र, चन्द्र के अष्ठम भाव में होने के कारण अटलजी शादी के लिए अपना मन नहीं बना पाए। मंगल के बाद वाले त्रिकोण में राहु होना उनकी एक छोटी बहन का होना दर्शाता है। अटलजी के पिता के भाई-बहनों की संख्या तीन है, जिनमें दो भाई तो मिलते हैं, लेकिन बुध के वक्री होने के कारण तीसरे का होना नहीं मिलता है। माता के स्थान में राहु के होने से माता का पिता से जल्दी परलोक सिधारना कुंडली में दर्ज है, पिता का बाद में जाना दिखाई देता है, उनके अंतिम समय में निवास स्थान से उत्तर दिशा में उपचार होने का कारण भी कुंडली में दिखता है।
Created On :   17 Aug 2018 8:46 AM IST