हिन्दू नववर्ष: आज से विक्रम संवत 2077 प्रारंभ, जानें इसका महत्व
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है। इस वर्ष 25 मार्च यानी कि आज से विक्रम संवत 2077 प्रारंभ हो गया है। इसे नव संवत्सर 2077 भी कहते हैं। बता दें कि, अनुसार सम्राट विक्रमादित्य के प्रयास से विक्रम संवत का प्रारंभ हुआ था। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ही सभी व्रत एवं त्योहार आते हैं।
पुराणों के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा जी ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को इस संसार की रचना की थी। इसलिए इस तिथि को "नव संवत्सर" पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि इसका धार्मिक महत्व...
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12 महीने
वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रति वर्ष की पहली तिथि है। इसी दिन से हिन्दू मान्यता के अनुसार नए साल की शुरुआत होती है। हिन्दू वर्ष में 12 महीने (चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन) होते हैं।
संवत का राजा
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा जिस वार से विक्रमी संवत शुरू होता है, वही इस संवत का राजा होता है। सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है, तो वह संवत का मंत्री होता है। विक्रम संवत समस्त संस्कारों, पर्वों एवं त्योहारों की रीढ़ माना जाता है। सभी शुभ कार्य इसी पंचांग की तिथि से ही किए जाते हैं। यहां तक की वित्तीय वर्ष भी हिन्दू नववर्ष से प्रारंभ होता है और समाप्त भी इसी के साथ होता है।
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स्वामी को कहा गया इन्द्राग्नि
जैसे हर महीने या दिन का नाम होता है उसी तरह हर संवत्सर का भी नाम होता है जो संख्या में कुल साठ हैं जो बीस-बीस की श्रेणी में बांटे गए हैं। प्रथम बीस संवत ब्रह्मविंशति संवत कहलाते हैं, 21 से 40 तक विष्णुविंशति संवत और अंतिम बीस संवतों के समूह का नाम रूद्रविंशति रखा गया है। चूंकि यह छियालीसवें नंबर का संवत है इसलिए ये रुद्रविंशति समूह का है और इसका नाम परिधावी संवत्सर है। परिधावी संवत्सर में सामान्यतः अन्न महंगा, मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग ,उपद्रव अदि होते हैं और इसका स्वामी इन्द्राग्नि कहा गया है।
Created On :   25 March 2020 3:15 PM IST
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