आज से शुरू हुआ 7 दिनों तक चलने वाला कुल्लू दशहरा , जानिए क्यों है खास
डिजिटल डेस्क,शिमला। 7 दिनों तक चलने वाले हिमाचल प्रदेश के खास त्यौहार ‘कूल्लू दशहरा’ की शुरुआत आज से हो गयी है। भगवान रघुनाथ जी की पारंपरिक रथ यात्रा के साथ ही ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा की शुरुआत की गई। कुल्लू दशहरा का पर्व परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता है।
7 दिन तक चलता है "कुल्लू दशहरा"
कुल्लू का दशहरा बाकि सभी दशहरों से अलग है। यहां पूरे देश की तरह रावण को जलाकर दशहरा नहीं मनाया जाता। ना ही यहां रामलीला का मंचन किया जाता है। बल्कि काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाम पर 5 बलि दी जाती हैैं। कुल्लू का दशहरा देश में सबसे अलग पहचान रखता है। जब देश में लोग दशहरा मना चुके होते हैं, तब कुल्लू का दशहरा शुरू होता है। यहां इस त्यौहार को "दशमी" कहते हैं।
आमतौर पर पूरे देश में रामलीला का अंत रावण का संहार माना जाता है, लेकिन यहां दशहरा की एक अलग कहानी है, जो एक राजा से शुरू होती है। कहते हैं सन् 1636 में जब जगत सिंह यहां का राजा था, तो मणिकर्ण की यात्रा के दौरान उसे ज्ञात हुआ कि एक गांव में एक ब्राह्मण के पास बहुत कीमती रत्न है। राजा ने उस रत्न को हासिल करने के लिए अपने सैनिकों को उस ब्राह्मण के पास भेजा। सैनिकों ने उसे यातनाएं दीं। डर के मारे उसने राजा को श्राप देकर परिवार समेत आत्महत्या कर ली। कुछ दिन बाद राजा की तबीयत खराब होने लगी।
तब एक साधु ने राजा को श्राप मुक्त होने के लिए रघुनाथजी की मूर्ति स्थापित करने की सलाह दी। अयोध्या से लाई गई इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और तभी से उसने अपना जीवन और पूरा साम्राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया।
यज्ञ का न्योता
कुल्लू के दशहरे में अश्विन महीने के पहले 15 दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को धौलपुर घाटी में रघुनाथजी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं। 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंग-बिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी ‘मनाली की मां हिडिंबा’ कुल्लू आती हैं व राजघराने के सब सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।
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रथयात्रा
कुल्लू में इस दौरान एक भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। रथ में रघुनाथजी, माता सीता व मां हिडिंबा की प्रतिमाओं को रखा जाता है। इन रथों को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाया जाता है। ये रथ यात्रा 6 दिनों तक चलती है। इस दौरान देवताओं के आनंद के लिए छोटे-छोट जुलूस भी निकाले जाते हैं।
मोहल्ला के बाद ‘लंकादहन’
उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवताओं की पालकियों को इक्ट्ठा एक जगह पर लाया जाता है। कहा जाता है ये सभी छठे दिन एक-दूसरे से आकर मिलते हैं, इसे ही ‘मोहल्ला’ का नाम दिया गया है। मोहल्ला की सारी रात लोग वहां नाचते गाते हैं। इसके बाद 7वें दिन रघुनाथ जी के रथ को लंका दहन के लिए बियास नदी के पास लेकर जाया जाता है। जहां लंका दहन किया जाता है।
बुराईयों का नाश कर रघुनाथ जी वापस लौटते हैं मंदिर
रघुनाथजी भगवान को लंका दहन के बाद रथ को दोबारा उसके स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथ जी को वापस रघुनाथ जी के मंदिर में पुनर्स्थापित किया जाता है। यहीं विश्वविख्यात दशहरा हर्षोउल्लास के साथ संपन्न होता है।
काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के तौर 5 बलि
हिन्दी कैलेंडर के अनुसार अश्विन महीने की दशमी को इसकी शुरुआत होती है। कुल्लू का दशहरा सबसे अलग है, लेकिन इसकी एक खासियत और है। जहां सब जगह रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर 5 जानवरों की बलि दी जाती है।
2014 में लगा बैन SC ने हटाया
कुल्लू दशहरे के उत्सव पर काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के तौर 5 बलि दी जाती है। जिससे जीव की मृत्यु के साथ ये सब दोष भी खत्म किए जा सकें, लेकिन हिमाचल हाईकोर्ट ने 2014 में बलिप्रथा पर रोक लगा दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल अंतरिम राहत दी है जिससे इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरे में बलि भी होगी।
4 साल बाद फिर चढ़ेगी बलि
इस साल दशहरा उत्सव में लंका दहन के दिन 6 अक्तूबर को सशर्त पशु बलि के साथ अष्टांग बलि दी जाएगी। 4 साल बाद दशहरा में पर्दे में तथा चिन्हित स्थान पर बलि प्रथा होगी। आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कानून के दायरे में पशु बलि करने का आदेश दिया है। कोर्ट के आदेश में पशु बलि को नगर परिषद, नगर पंचायत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें बलि के लिए स्थानों को चिन्हित करेगी। ऐसे में 6 अक्तूबर को दशहरा पर्व में चारदिवारी के भीतर बलि प्रथा का निर्वहन किया जाएगा।
Created On :   1 Oct 2017 10:54 AM IST