शक्ति पूजन, सहयोग और क्रियाशीलता का पर्व है विजयादशमी, जानें क्यों मनाते हैं यह पर्व
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डिजिटल डेस्क। पूरे नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि के बाद दशहरा पर्व भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस पर्व को इस वर्ष 8 अक्टूबर आश्विन शुक्ल दशमी यानी कि आज मंगलवार को मनाया जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं नवरात्रि के बाद ही दशहरा पर्व को क्यों मनाया जाता है, आइए जानते हैं...
पुराणों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने रावण से युध्द प्रारंभ रहते प्रतिपदा से नवमी पर्यत मां जगत जननी की आराधना की। जिससे भगवती प्रसन्न हुई और इच्छित वर प्रदान किया। इसीलिए सकल मनोकामना की प्राप्ती के लिए शारदीय नवरात्र में शक्ति आराधना की जाती हैं। वहीं दसवें दिन अन्यायी रावण दहन के साथ विजय दिवस मनाया जाता है।
दशहरा का अर्थ
दशहरा का अर्थ है दशशीश वाले रावण के मृत्यु का दिन। विजयादशमी एक ऐसा पर्व है जिसमें कई भाव छुपे हैं। इस त्यौहार का अर्थ केवल रावण के पुतले का दहन करना ही नहीं है। विजया दशमी पर्व अपने आप में अनूठा है, इसमें धार्मिकता तो है ही साथ ही जीवन में सकारात्मकता का सदेंश भी समाहित है। त्रिदेवी का पूजन -विजयादशमी नाम में ही विजय और जय का समावेश हैं। इस दिन त्रिदेवी के पूजन का विधान हैं...
- मां अपराजिता यानि जो किसी से पराजित नहीं होती, मां अपराजिता ये सीख देती हैं कि मन में पराजित होने का भय निकाल दें।
- देवी जया, जो अपने भक्तों को जय देनेवाली हैं। जया देवी का संदेश है कि जीत आपकी ही होगी इस बात की गांठ बांध लें।
- भगवती विजया, जो अपने साधकों को संपूर्ण रूप से सभी स्थानों पर विजय प्रदान करने वाली हैं। विजया माता कहती हैं कि पराजित भी नहीं होंगे जीत भी आपकी होगी और जीत भी छोटी नहीं बल्कि बहुत विशाल और बड़ी होगी।
शक्ति स्वरूप मशीनरी वाहन आदि का पूजन-
विजयादशमी के दिन ही शक्ति की उपासना के साथ वाहन और फैक्टी में उपयोग होने वाले यंत्रों की पूजा की जाती है।
संदेश
- त्रिदेवीयों के पूजन से, शक्ति आराधना से हममें स्त्री जाति के प्रति सम्मान तथा सौहार्द्र का भाव जागृत होता है। हम नारी सुरक्षा के लिए मानसिक तौर पर सबल होते हैं।
शमीपत्र भगवान को अर्पण
इस दिन शमीपत्रों को स्वर्ण मानकर भगवान को अर्पित किया जाता है। महाभारत में वर्णन मिलता है कि जब पांडवों को 12 साल का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास मिला तब अर्जुन विराट नगर में बृहन्नला नाम से रह रहे थे उस समय शमी वृक्ष में ही अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाकर रखे थे।
एक और मान्यता के अनुसार प्रभु श्रीराम को भी शमी वृक्ष अत्यंत प्रिय था। युध्द में जाने के पूर्व उन्होंने भी शमी वृक्ष का पूजन किया था। इसलिए इस दिन शमी वृक्ष के पत्तों को स्वर्ण माना जाता है और भगवान को अर्पित किये जाते हैं।
संदेश
शमीपत्र के आदान प्रदान को यदि संदेश के दृष्टिकोण से देखा जाय तो शमी पत्तों को स्वर्ण कहा जाता है। सोना सभी धातुओं में सबसे मुल्यवान है सोने के आदान प्रदान का अर्थ है कि हमें एक दूसरे की सहायता यथा संभव करनी चाहिए और हमारे पास जो कुछ हैं उनमें से हमें मित्रों रिश्तेदारों के प्रति, हमारे समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
शमी वृक्ष का पूजन
शमी वृक्ष में अन्य वृक्षों की अपेक्षा अग्नि प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहती है। शमी वृ़क्ष दृढ़ता और तेजस्विता का प्रतीक हैं। हम भी शमी की भांति दृढ़ और तेजोमय हो इसी भावना से इस दिन शमी का पूजन किया जाता है।
नीलकंठ पक्षी के दर्शन
नीलकठ पक्षी के दर्शन में त्याग का भाव समाहित है। समुद्र मंथन में सर्वप्रथम हलाहल कालकूट विष उत्पन्न होने पर देवता और दैत्य देवादिदेव महादेव के पास विषपान की याचना लेकर पहुंचे। उनकी प्रार्थना को सुन कर भोलेनाथ ने लोकोपकार के लिये उस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे उनका कंठ निलवर्ण का हो गया। नीलकंठ पक्षी, शंकरजी का स्वरूप इस दिन होता है, जो हमें समाज में फैले कुरीतियों के विष को किस प्रकार दूर सकते हैं यह संदेश देता है।
रामलीला का मंचन
कई स्थानों पर रामलीला का दौर भी प्रारंभ रहता है, जिससे मानसिक रूप से उल्हास जागृत होता है। साथ ही छोटे बच्चे तथा युवाओं में इन दृश्यों के माध्यम से एक धार्मिक घुट्टी भी तैयार होती है, जिसका फल यह होता है कि अन्यायी और दुराचारी शासकों का अंत होता है और सत्य की जीत होती है।
सीमोल्लंघन
इस दिन ग्राम-सीमा का उल्लंघन का विधान है। यह मानव मात्र को प्रेरणा देता है कि उसे एक सीमित परिधि, एक सीमित दायरे में ही संतुष्ट न रहकर सर्वदा आगे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए; तब तक बढ़ते रहना चाहिए जब तक जीवन में विजयोत्सव नहीं आता।
इस प्रकार यह पर्व न केवल शक्ति पूजन बल्कि सामाजिकता और क्रियाशिलता का संदेश देने वाला पर्व हैं। विजयादशमी समान उत्सवों ने ही हजारों और लाखों वर्षा से अपनी संस्कृति एवं अस्तित्व की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सबल और गौरवशाली बनी हुई है। इस यदि हम इन उत्सव तथा पर्वा के मर्म के जानकर इसे मनाते हैं तब उसका आनंद कई गुणा बढ़ जाता है।
पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला
Created On :   5 Oct 2019 4:36 PM IST