देवशयनी एकादशी 2020: आज से चार मास के लिए सो जाएंगे देव, नहीं होंगे शुभ कार्य
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में एकादशी का अत्यधिक महत्व है। वहीं साल भर में आने वाली एकादशी में देवशयनी की महिमा अधिक बताई गई है। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आने वाली इस एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। इस बार देवशयनी एकादशी 1 जुलाई यानि कि आज है। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके सभी पापों का नाश होता है।
देवशयनी एकादशी के दिन मंदिरों और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु का शयन प्रारंभ होने से पहले विधि-विधान से पूजन करने का बड़ा महत्व है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
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महत्व
देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के विषय में पुराणों में विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है जिनके अनुसार कहा जाता है कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु उस लोक के लिए गमन करते हैं और इसके पश्चात चार माह के अंतराल के बाद सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर विष्णु भगवान का शयन समाप्त होता है तथा इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शैय्या पर शयन करते हैं इसलिए इन माह अवधियों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है।
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देवशयनी एकादशी पूजा विधि
- देवशयनी एकादशी व्रत का आरंभ दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाता है।
- दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना करें।
- पंचामृत से स्नान करवाकर भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी करें।
- भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मन्त्र द्वारा स्तुति करना चाहिए।
Created On :   29 Jun 2020 5:25 PM IST