दधीचि जयंती 2017 : ऋषि की हड्डियों से बना है इंद्रदेव का 'वज्र', ये है पौराणिक कथा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ऋषि पंचमी के तीसरे दिन अर्थात भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को दधीचि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष दधीचि जयंती का पर्व मंगलवार 29 अगस्त को मनाया जा रहा है। महर्षि दधीचि को सबसे बड़ा दानी माना गया है, जिसने धर्म की रक्षा के लिए स्वयं का दान कर दिया था। इंद्रदेव के हाथों में वज्र नजर आता है वह महर्षि दधीचि की हड्डियों से ही निर्मित है।
शास्त्रों के अनुसार दधीचि ने परोपकार करते हुए अस्थियों का बलिदान देना स्वीकार किया था। इंद्र ने इनकी अस्थियों का पूजन कर उनसे तेजवान नामक वज्र बनाकर वृतासुर का अंत किया था। इस कथा का वृत्तांत हमें पुराणों में भी मिल जाता है।
स्वर्ग पर अधिकार
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र के अभिमान से क्षुब्ध होकर स्वर्ग त्याग दिया था जिसका लाभ उठाकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने दैत्यों आक्रमण कर स्वर्गलोक छीन लिया। ब्रह्मदेव के आदेश पर इंद्र ने महर्षि त्वष्टा के पुत्र ऋषि विश्वरूप से नारायण कवच प्राप्त कर पुनरू स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। परंतु दैत्य व देव दोनों ही महर्षि कश्यप की संतान थीं तथा विश्व रूप की माता भी दैत्य थी। जिससे बात फिर बिगड़ गई और दैत्यों के निवेदन पर विश्वरूप ने दैत्यों और देवों दोनों की आहुति विजय यज्ञ में दी।
इंद्र को काट दिए तीनों सिर
इससे इंद्र पुनः कुपित हो गया और ऋषि विश्व रूप के तीनों सिर काट दिए। जिससे देवों पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा और वे शक्तिविहीन हो गए। पुत्र वध से क्रोधित महर्षि त्वष्टा ने वृतासुर नामक दैत्य को प्रकट किया। वृतासुर ने महर्षि त्वष्टा की आज्ञा से स्वर्ग पर पुनरू अधिकार कर लिया।
शिव का वरदान
पराजित इंद्र श्री हरि की शरण में गए जहां उसे ब्रह्म हत्या करने पर उनके कोप का सहन करना पड़ा, किंतु अभिमंत्रणा पर श्री हरि ने इंद्र को महर्षि दधीचि से सहायता लेने को कहा। श्री हरि ने इंद्र को दधीचि को प्रसन्न कर उनकी अस्थियां प्राप्त कर उनके व्रज बनाकर वृतासुर से युद्ध करने को कहाए क्योंकि दधीचि को शिव द्वारा वज्र अस्थि का वरदान प्राप्त था। इंद्र ने महर्षि दधीचि के आश्रम पहुंच कर उन्हें पूरी व्यथा सुनाई। जिसके बाद महर्षि सहर्ष उनकी बात का माना और अपना शरीर दान कर दिया, जिनसे बाद में व्रज बना और दानव का अंत हुआ।

Created On :   29 Aug 2017 12:41 PM IST