चैत्र नवरात्रि 2020: दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें कथा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्रि का त्योहार शुरू हो चुका है और इस बार पूरे नौ दिनों तक माता की आराधना होगी। आज नवरात्रि का दूसरा दिन है, इस दिन देवी के दूसरे स्वरूप माता ब्रहाचारिणी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि माता ब्रह्मचारिणी की साधना करने से विवेक, बुद्धि, ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति होती है। देवी पुराण में माता के हर रूप की पूजा विधि और कथा का विशेष महत्व बताया गया है।
ज्यातिषशास्त्र में ब्रह्मचारिणी शब्द का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली बताया गया है। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य होता है। माता के सीधे हाथ में जप की माला और उल्टे हाथ में यह कमण्डल होता हैं।
ऐसे करें पूजा
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर स्थापित करें। मां की चित्र या मूर्ति पर पर फूल चढ़ाएं और दीपक जलाने के साथ ही नैवेद्य अर्पण करें। इसके बाद मां दुर्गा की कथा का पाठ करें और और नीचे लिखे इस मंत्र का 108 बार जप करें।
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मंत्र
दधानां करपद्याभ्यामक्षमालाकमण्डल।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा।
माता ब्रह्मचारिणी की कथा
पुराणों के अनुसार पूर्वजन्म में माता ब्रह्मचारिणी ने पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया था। उन्होंने नारदजी के उपदेश के बाद भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया। कठिन तपस्या के बाद इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी के नाम से पहचाना गया। कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने हजार वर्ष की तपस्या में सिर्फ फल खाकर ही समय बिताया और फिर सौ वर्षों तक केवल भूमि पर शयन कर संकल्प का निर्वाह किया। कई दिन तक कठिन उपवास रखे।
उन्होंने तीन हजार वर्षों तक वृक्ष से गिरे हुए बिल्व पत्र का भोजन किया और भगवान शिव की आराधना की। यही नहीं मां ब्रह्मचारिणी ने कई वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तप किया। उन्होंने जब बिल्व पत्रों को खाना छोड़ा तो इन्हें अपर्णा नाम से जाना गया।
इन बातों का रखें खास ख्याल, देवी होंगी प्रसन्न
देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की कठिन तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कार्य बताया और सराहना की और कहा- "हे देवी आज तक किसी ने इस प्रकार कठोर तपस्या नहीं की" यह आप से ही संभव हो पाया आपकी मनोकामना अवश्य ही परिपूर्ण होगी और भगवान श्री चंद्रशेखर शिवजी आप को पति रूप में अवश्य ही प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़ो और लौट जाओ। शीध्र ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं।
मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।मां श्वेत वस्त्र धारण किए हैं। मां त्याग और तपस्या की देवी हैं। मां अपने भक्तों को ऊर्जा प्रदान करती हैं। जिस तरह मां ने जब तक भगवान शिव को पा नहीं लिया तब तक तपस्या करती रहीं। उसी प्रकार से मनुष्य को भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक अपने प्रयास नहीं छोड़ने चाहिए।
Created On :   26 March 2020 8:36 AM IST
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