चैत्र नवरात्रि का पहला दिन: आज करें मां शैलपुत्री की पूजा
डिजिटल डेस्क। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 06 अप्रैल 2019 यानी आज से हो चुकी है। शक्ति और भक्ति के इस पर्व में सभी लोग श्रद्धा और यथा शक्ति के अनुसार मां भगवती की आराधना करते हैं। कलश स्थापना के लिए भूमि को शुद्ध किया जाता है। गोबर और गंगा जल से जमीन को लीपा जाता है। विधि-विधान के अनुसार इस स्थान पर अक्षत और कुमकुम मिलाकर डाला जाता है। इस पर कलश स्थापित होता है। इसके बाद अखंड ज्योत जलाई जाती है जो पूरे नवरात्र तक जलती है।
पहला दिन शैलपुत्री
नवरात्र के पहले दिन अर्थात प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री मां दुर्गा का ही एक स्वरूप है। माना जाता है कि मां शैलपुत्री सुख-समृद्धि की दाता होती हैं। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्रप्ति होती है। शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें प्रकृति स्वरूपा भी कहा जाता है।
पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री का नाम सती था जो भगवान शिव की पत्नी थी। सती के पिता प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था। जिससे रुष्ठ हो गईं और खुद को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया। फिर अगले जन्म में सती ने राजा हिमालय के घर शैलपुत्री उनकी बेटी के रूप में जन्म लिया। हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाईं। भगवान शिव से इनका विवाह हुआ।
मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन योगीजनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन वो अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित कर योग साधना करते हैं। इनके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। इन्हें पार्वती, शैल सुता, दक्ष, सुता, हेमवती तथा शैली पुत्री के नाम से जाना जाता है। मां शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए हुए हैं। इनका वाहन वृषभ है। नव दुगार्ओं में मां शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनंत हैं।
ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें। उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केसर से शं लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें।हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें।
पूजा विधि
मां शैल पुत्री श्री दुर्गा का प्रथम रूप हैं। इनकी पूजा पूजा में विधि-विधान का विशेष ध्यान देना चाहिए। अतः पहले दिन मां के निमित्त विविध प्रकार की विहित पूजन की समाग्री को संग्रहित करके शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर षोडषोपचार विधि से करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो दुर्गा सप्तशती का पाठ करें या करवाएं और क्षमा प्रार्थना करना चाहिए। प्रकृति स्वरूपा को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग विधान के अनुसार अलग-अलग मंत्र हैं, किंतु अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार इस मंत्र के जाप कर सकते हैं-
ऐश्वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानि परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः। ।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि। ।
Created On :   5 April 2019 6:18 PM IST