अक्षय तृतीया 2021: किसी भी शुभ कार्य के लिए श्रेष्ठ है ये दिन, जानें इसका महत्व
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैशाख मास की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथी को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। जो कि इस वर्ष 14 मई को है। अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय नहीं होता। इस तिथी पर जो कार्य किया जाये वह भी अक्षय होता है, इसलिए इसकी गणना साढ़े तीन श्रेष्ठ मूहूर्त में होती है। यह युगादि तिथी हैं, चार युग होते हैं सतयुग त्रेतायुग द्वापर तथा कलियुग। सबसे श्रेष्ठ सतयुग को माना गया है। मान्यता है कि इसी तिथी से सतयुग का प्रारंभ हुआ था। साथ ही ये कल्पादि तिथी भी है, इसी दिन से कल्प का भी प्रारंभ हुआ है।
अक्षय तृतीया का दिन हर शुभ कार्य करने के लिए श्रेष्ठ है। स्थान भेद से अक्षय तृतीया को अनेक धार्मिक कार्य किये जाते हैं। सनातन हिंदू संस्कृति में पितरो की तृप्ती के लिए अन्न तथा जल दान किया जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण करने का विधान है। इस दिन तर्पण करने से पितरों को अक्षय तृप्ती होती है।
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इस दिन करें ये कार्य
- इस दिन तीर्थ जल में स्नान करना चाहिए।
- यदि तीर्थ जल में स्नान न कर सकें तो घर में ही जल में तीर्थ का जल मिला कर उससे स्नान करें।
- श्रध्दा से अपने पितरों के निमित्त पितृ तर्पण करें।
- दोबारा पवित्र हो कर देवताओं का पूजन करके वासुदेव भगवान का पूजन करें।
- भगवान को सत्तु दही आदि का नैवेद्य अर्पित करें।
- हवन करने की इच्छा हो तो जौ मिश्रित हवन सामृग्री से हवन करें।
- जौ से ही भगवान विष्णु का पूजन करें और इस दिन दान देने का विशेष महत्व है।
- ब्राम्हणों के लिए जौ गेहूं और जल पूरित घड़े चना, सत्तु, दही, चावल आदि ग्रीष्म ऋतु की वस्तुओं का दान कर इन मंत्रो को कहें।
एष धर्मघटो दत्तो ब्रम्ह विष्णु शिवात्मकः! अस्य प्रदानात्तृप्यन्तु पितरो पि पितामहाः!!
गंधोदक तिलैर्मिश्रं सान्नं कुंभं सदक्षिणम्! पितृभ्यः संप्रदास्यामि अक्षय मुपतिष्ठतु!!
अक्षय तृतीया वाले दिन तीर्थ स्नान, पितृ तर्पण, देवताओं का पूजन, हवन, नैवेद्य तथा दान ये सारे विधान करने चाहिए। इस दिन एक समय भोजन करें। सात्विक आचरण करें। ईश्वर का सदा स्मरण करते रहें।
जल सेवा या प्याउ लगाना
इस दिन से पितरों को तो जल द्वारा तृप्ती करते ही हैं साथ ही आमजन के लिए भी अपने सामर्थ्य अनुसार प्याउ आदि की व्यवस्था भी करते हैं। सतयुग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ है। सत्युग से ही धार्मिक व्रत की सृष्टि हुई हैं। बैसाख से आषाढ़ तक प्रायः कुए, नदी तालाब आदि जल स्त्रोत सूख जाते हैं, गर्मी के कारण पशु, पक्षी और मनुष्यों को प्यास से बुरा हाल होता है। जो समर्थ हैं वो तो जल खरीद कर पी सकते हैं परंतु जिनकी धन व्यय करने की शक्ति नहीं होती उनके लिए प्याउ ही एकमात्र आधार होता है। इस प्रकार ये परोपकार का कार्य लोकोपकारी हैं जो अक्षय तृप्ती प्रदान करते हैं।
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भगवान का श्रृंगार और सुवर्ण आदि खरीदना
अक्षय तृतीया का त्योहार सर्वव्यापी है। वैसे ये सार्वजनिक पर्व नहीं हैं, इस कारण इस दिन अधिक धूम धाम नहीं होती। मंदिरो में इस दिन ठाकुरजी को भोग में सत्तु रखा जाता है। इसी दिन से भगवान को सफेद पोशाख धारण कराई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन ही सुवर्ण आदि खरिदने के लिये भी फलदायी होता है। इसलिये सुवर्ण, इलैक्टॉनिक वस्तु, वाहन आदि भी अपने घर लाते हैं। इस बार महामारी की वजह से ऑनलाईन खरिद सकते हैं या घर पर जो सुवर्ण हैं उसका भी पूजन कर सकते हैं। इस प्रकार अक्षय तृतीया का पर्व हमारे पितरों को अक्षय तृप्ति देने वाला पर्व है।
पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला
Created On :   12 May 2021 5:08 PM IST