Guru Gobind Singh Jayanti 2025: शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह की जयंती कब? जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह की जयंती कब? जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें
  • पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है जयंती
  • ‘गुरु गोबिंद जयंती’ या ‘गुरु पर्व’ के रुप में भी मनाया जाता है
  • गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे

डिजिटल डेस्क, भोपाल। सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती (Guru Gobind Singh Jayanti) हर साल पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। गोबिंद सिंह जी के जन्म उत्सव को ‘गुरु गोबिंद जयंती’ या ‘गुरु पर्व’ के रुप में मनाया जाता है। शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी का सिख धर्म में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वे सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे।

गुरु गोबिंद सिंह का जीवन संदेश देता है कि, जीवन में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी बुरी क्यों न हो। हमेशा अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए काम करते रहना चाहिए। इस वर्ष गुरु गोबिंद सिंह जयंती 06 जनवरी 2025, सोमवार के दिन मनाई जा रही है। आइए जानते हैं गुरु गोबिंद के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...

कौन थे गुरु गोबिंद सिंह?

गुरु गोबिंद सिंह एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इन्होंने ही गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण किया। कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में स्थापित किया किया। गुरु गोबिंद सिंह जी दमन और भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए, इसलिए लोगों के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में उभरे। उन्होंने सामाजिक समानता का पुरजोर समर्थन किया।

गुरु गोबिंद सिंह के जीवन की प्रमुख बातें

- गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी साथ ही उन्होंने धनुष- बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी।

- सिखों के लिए 5 चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन चीजों को "पांच ककार" कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है।

- गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी। इस लिए उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

Created On :   4 Jan 2025 9:38 PM IST

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