- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्य प्रदेश
- /
- बालाघाट
- /
- देश-विदेश में बिखरेगी चिन्नौर चावल...
देश-विदेश में बिखरेगी चिन्नौर चावल की खुशबू, जीआई टैग का मिला तमगा
डिजिटल डेस्क बालाघाट । मप्र के बालाघाट जिले में उत्पादित चिन्नौर चावल पूरे विश्व में विख्यात हैं, जो अपनी खास पहचान बना चुका हैं। विभागीय तौर पर जानकारी के अनुसार चिन्नौर चावल को जीआई करार के अंतर्गत भारत सरकार से कृषि महाविद्यालय मुरझड़ द्वारा बालाघाट चिन्नौर उत्पादक सह समिति द्वारा रजिस्टर्ड कराया गया है। यह तत्कालीन डीएम दीपक आर्य एवं जिले के कृषि वैज्ञानिको की पहल से ही संभव हो सका है।
भास्कर की खबर एवं प्रशासन की मुहिम रंग लाई
भास्कर द्वारा जिले में उत्पादित चिन्नौर चावल को जीआई टैग प्रदान किए जाने को लेकर समय-समय पर खबर का प्रकाशन किया जाता आ रहा था। इसी तारतम्य में 9 अगस्त 2020 के अंक मे बासमती और चिन्नौर चावल को जीआई टैग मिलने से संवर जाएगी किसानो की तकदीर, बढ़ जाएगा उत्पादन शीर्षक से खबर का प्रकाशित की गई थी।
निभाई अहम भूमिका
यही वजह रही कि तत्कालीन डीएम श्री आर्य ने खास रुचि लेते हुए चिन्नौर की खुशबू को सात समंदर तक बिखरने में अहम भूमिका निभाई। बालाघाट जिले मेें परम्परागत तरीके से चली आ रही चिन्नौर की खेती के बावजूद यहां के कृषकों के आर्थिक स्थिति में कोई सुधार परिलक्षित नही हो रहा था ऐसे में कृषि महाविद्यालय बालाघाट, कृषि विज्ञान केन्द्र बडग़ांव एवं किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग को समन्वित जवाबदारी देकर चिन्नौर की खेती के माध्यम से ग्रामीणों के जीवन में बदलाव लाने के लिए चिन्नौर का जीआई सूचक पंजीकरण जियोग्राफिकल इंडीकेशन कराने का जिम्मा सौपा गया।
जैविक तरीके से हो रही खेती
धीरे-धीरे किसानो इस प्रजाति की खेती से मोहभंग हो या था, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से चिन्नौर की खेती को प्रोत्साहन मिला है। कृषि वैज्ञानिको तथा अधिकारियो के मार्गदर्शन में चिन्नोर का जैविक तरीके से उत्पादन कर अब इसे ब्रान्डेड भी किया जा रहा है। कृषक समूहों को चिन्नौर की खेती से जोड़कर इसकी मार्केटिंग की भी व्यवस्था की जा रही है। बालाघाट का चिन्नौर चावल ब्रांडेड होने के बाद अब ऊचें दामों पर सुगंधित चिन्नौर के नाम से बिकने लगा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
जिले के किसान अनेेक वर्षो से चिन्नौर धान की खेती कर रहे है। परंपरागत तरीके से चली आ रही खेती मे पर्याप्त उत्पादन नही मिल पा रहा था। उत्पादन प्रभावित होने के साथ ही चिन्नौर के साथ अन्य सुगंधित व असुगंधित धान मिश्रित हो गऐ थे। गाढ़ी मेहनत कर उत्पादित चिन्नौर के मार्केटिंग की सही व्यवस्था न हो पाने के कारण किसान कम कीमत में ही अपनी उपज बेचने में मजबूर रहतें थे, लेकिन अब जीआई का प्रमाण पत्र मिल जाने पर बालाघाट के चिन्नौर की पहचान राष्ट्रीय एवं अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर हो जायेगी।
अनोखा है स्वाद
इस चावल की किस्म का स्वाद बहुत ही अनोखा है। चिन्नोर चावल से बनी खीर में मलाईदार लाजवाब स्वाद होता है और इसमें किसी भी तरह के स्वाद को शामिल करने की आवश्यकता नहीं होती है। पका हुआ चावल ठंडा होने के बाद भी नरम रहता है और प्रकृति में थोड़ा चिपचिपा होता है। चिन्नौर का चांवल सुपाच्य होने के कारण ज्यादा रूचि के साथ खाया जाता है।
ये भी है खासियत
बालाघाट के कायदी गांव के चिन्नोर को पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को एक उपहार स्वरूप कई बार भेजा गया। वर्तमान समय में बाहर के बाजार में इसकी बहुत अधिक मांग है जिसके कारण इसके दाम अन्य धान की तुलना में बहुत ज्यादा हैं। चिन्नोर का चावल खाना एवं खिलाना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। आने वाले समय में इसकी मांग जीआई. टैग के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी होगी। जिले को चिन्नौर की जीआई टैगिंग मिल चुकी है। वर्तमान परिदृश्य में बालाघाट जिले को एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत भी चिन्नौर धान के लिये चुना गया है जिसका फायदा सीधे कृषकों को होने वाला है।
क्या है जीआई टैगिंग
जीआई टैगिंग क्या है, इसका क्या महत्व है और इसके क्या लाभ हैं को लेकर कृषि वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह भारत में भौगोलिक संकेतों को कानूनी सुरक्षा प्रदान कर निर्यात को बढावा मिलने से उत्पादकों की आर्थिक समृध्दि को बढावा देता है। अन्य विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशो में कानूनी सुरक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उत्पाद की ब्राण्ड वैल्यु ज्यादा हो जाती है जिससे बाजार मूल्य में कई गुना वृद्धि होती है।
2500 एकड़ में लगी है फसल
एक आंकड़े के मुताबिक जिले में वर्तमान में 2500 एकड़ रकबे में चिन्नौर की खेती की जा रही हैं, लेकिन जिले में कृषि महाविद्यालय आने के बाद से चिन्नौर चावल को जीआई करार के अंतर्गत भारत सरकार से रजिस्टर्ड कराया गया है। जिले के वारासिवनी, खैरलांजी तथा लालबर्रा के कई किसानों ने मुरझड़ कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों की प्रेरणा से चिन्नौर धान अपने खेत में लगाई है। वैज्ञानिकों की पहल से गत खरीफ फसल में किसानों ने जैविक खाद के माध्यम से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर धान का उत्पादन किया।
इनका कहना है...
बालाघाट जिला धान उत्पादक जिला हैं। जिले में तकरीबन ढाई हजार से अधिक रकबे में किसानों द्वारा चिन्नौर की फसल लगाई गई हैं। चिन्नौर को बालाघाट जिले मे जीआई टैग मे शामिल कर रजिस्टर्ड किया गया है।
डॉ उत्तम बिसेन कृषि वैज्ञानिक कृषि महाविद्यालय मुरझड़
Created On :   30 Sept 2021 7:21 PM IST