शिक्षक दिवस: हिंदी विश्वविद्यालय में मनाया शिक्षक दिवस, वक्ताओं ने किये अपने विचार व्यक्त

हिंदी विश्वविद्यालय में मनाया शिक्षक दिवस, वक्ताओं ने किये अपने विचार व्यक्त
  • कार्यक्रम का संचालन डॉ. जितेंद्र ने किया और आभार डॉ. भारत बाथम ने व्यक्त किया।
  • संगोष्ठी का विषय था "शिक्षक और शिक्षा के पर्याय," जिसमें प्रोफेसर राजीव वर्मा ने शिक्षा प्रणाली की चुनौतियों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विचार व्यक्त किए।
  • इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी और पत्रकारिता विभाग के सदस्य उपस्थित रहे।

डिजिटल डेस्क, भोपाल। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष की शिक्षक दिवस मनाया गया संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय शिक्षक और शिक्षा के पर्याय मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर राजीव वर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा इस शिक्षक दिवस पर, आइए हम इस महान पेशे की चुनौतियों और सफलताओं पर विचार करें।

यह बदलाव ऐसे समय में खास तौर पर विडंबनापूर्ण है जब गुणवत्तापूर्ण शिक्ष एक प्रचलित शब्द है। हमें यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या सेमेस्टर प्रणाली वास्तव में गुणवत्ता को बढ़ाती है या केवल यह सुनिश्चित करती है कि सभी बक्से समय पर टिक किए जाएं। शिक्षक जो महसूस करते हैं कि वे पाठ्यक्रम या अपने छात्रों के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं, वे निराश महसूस करने के लिए बाध्य हैं। यहां तक ​​कि सबसे लचीले शिक्षक भी अंततः सिस्टम के दबाव के आगे झुक सकते हैं, उन उच्च आदर्शों को त्याग सकते हैं जो शुरू में उन्हें इस पेशे में आकर्षित करते थे।

संगोष्ठी में अतिथि वक्ता के रूप में डॉ राजेश मिश्रा ने बताया शिक्षा और जीवन के मूल्यों को विस्तृत रूप से वर्णन किया भौतिक शास्त्र के सहायक प्राध्यापक डॉ विजय मिश्रा ने अपने उद्बोधन में मैकाले की शिक्षा पद्धति और गुरुकुल शिक्षा पद्धति की तुलनात्मक विसंगतियों को नई पीढ़ी के सामने एक समाधान के ऊपर रखा कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर जितेंद्र और आभार डॉक्टर भारत बाथम में व्यक्त किया इस अवसर पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग डॉ भूपेंद्र कुमार डॉ गौरव गुप्ता अमीन खान हितेंद्र राम डॉ रविंद्र मुंडे डॉ कुसुम डॉ नीलम सिंह डॉक्टर भावना डॉ हरीश वर्मा डॉ वंदना डॉ आशीष एवं समस्त शिक्षक कर्मचारी की उपस्थित रहे।

वक्ताओं ने कहा कि मान्यता प्रणाली, हालांकि अच्छी मंशा से बनाई गई है, लेकिन इसने बोझ को और बढ़ा दिया है। हालांकि इसने संस्थानों को बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण और सामुदायिक आउटरीच में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया है, लेकिन यह प्रक्रिया अपने आप में बोझिल है। गतिविधियों का दस्तावेजीकरण करने और यह सुनिश्चित करने में घंटों लग जाते हैं कि वे अच्छे ग्रेड के लिए निर्धारित मानदंडों के अनुरूप हैं। शिक्षा के प्रति यह नौकरशाही दृष्टिकोण अक्सर व्यक्तिगत संस्थानों के अद्वितीय गुणों को कम करता है, जिससे प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ावा मिलता है जो प्रेरित करने के बजाय आत्म-पराजय को और अधिक प्रभावित कर सकता है।

Created On :   6 Sept 2024 6:10 PM IST

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