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Beed News: बुरी शक्तियों से भक्तों की रक्षा करने वाली शिरूर कासार की कालिका माता
- 800 सौ साल पुराना हेमाडपंथी मंदिर
- सुबह से लगती है भक्तों की लाइन
- नंगे पैर दर्शन के लिए आते हैं श्रद्धालु
Beed News सुनील चौरे .बीड जिले के शिरूर कासार में सिंदफना नदी तट किनारे परिसर में लगभग 700 से 800 साल निजामशाही, मुगल और ब्रिटिश सरकार के काल का हेमांडपंथी श्री कालिका माता का पुरातन मंदिर है।शारदीय नवरात्रि पर्व पर दर्शन के लिए श्रध्दालुओं कतारे लगी रहती है।
यहां आने वाला हर श्रद्धालु पूरे मन से नवरात्रि में माता की सेवा और पूजा करता है। पूरे मन से सेवा करने वाले श्रध्दालुओं के सिर पर श्री कालिका माता का आशीर्वाद बना रहता है। शिरूर कासार शहर के नागरिक जो काम के लिए विदेश गए हैं और स्थायी रूप से मुंबई, पुणे, नागपुर, छत्रपति संभाजी नगर, नवरात्रि के अवसर पर, सभी श्रध्दालुओं जो नौकरी और काम के लिए बीड, अहमदनगर, जालना, कई जिलों में बस गए हैं। वे कालिका माता के दर्शन करने आते हैं। शिरूर कासार शहर और पंचक्रोशी के नागरिक नवरात्रि के अवसर पर पैर में चप्पल नहीं पहनते हैं। इस नवरात्रि के दिन, समर्पित भक्त देवताओं की सेवा करके उपवास करते हैं।
श्री कालिका माता का श्रृंगार
कालिका माता को हरे रंग की साड़ी, नथ, चूड़ियां, विभिन्न आभूषण,हाथों में त्रिशूल व तलवार है। राक्षसों का विनाश करने जैसा रुद्रवतार है।
शिरूर कासार के कालिका मंदिर महत्वपूर्ण चार तीर्थक्षेत्रों में से एक है।
श्री कालिका माता का महोत्सव वर्ष में चार बार आता है
1)चैत्र शुद्ध अष्टमी,2)आषाढ़ वद्य अमावस्या ,3}फाल्गुन अमावस्या और 4} आश्विन शुद्ध दशमी।
इस उत्सव में श्री.कालिका माता की पालकी और कालिका की छवि की शोभायात्रा निकाली जाते है। इसमें हजारो श्रध्दालुओ शामिल होते है।
इस शारदीय नवरात्रि पर्व पर श्री कालिका मंदीर में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमो का आयोजन किया गया है।
इसलिए कहते हैं कालिका माता
रक्तबीज नाम का एक राक्षस था ,उसे ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था, के उसे स्त्री के आलावा और कोई मार नहीं सकता था।
उसे यह भी वरदान था के उसके खून की एक बूंद ज़मीं पर गिरे तो एक और रक्तबीज राक्षश पैदा हो जाये। उसने देवताओ और ब्राह्मणो पर अत्याचार करके तीनो लोको में कोहराम मचा रखा था।
देवता इस वरदान के कारण रक्तबीज को मारने में असमर्थ थे। युद्ध के मैदान में, जब देवता उसे मारते हैं, तो उसके खून की हर बूंद जो जमीन को छूती है, खुद को एक नए और अधिक शक्तिशाली रक्त बीज में बदल देती है, और पूरे युद्ध के मैदान को लाखों रक्त बीज के साथ से युद्ध करना पड़ता।
निराशा में देवताओं ने मदद के लिए भगवान शिव का रुख किया। लेकिन जैसे ही भगवान शिव उस समय गहरे ध्यान में थे, देवताओं ने मदद के लिए उनकी पत्नी पार्वती माता की ओर रुख किया। माता पार्वती ने तुरंत कालीका माता के रूप में इस खूंखार दानव से युद्ध करने के लिए निकल पड़े।माता युद्ध करते समय जैसे ही उसे मारती तो रक्तबीज के शरीर की बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न होने लगा।
तब माता ने अपनी जीभा का आकर बड़ा कर लिया और फिर रक्तबीज का जैसे ही रक्त गिरता, तो वह माता के जीभा में गिरता, ऐसे करते-करते रक्त बीज कमज़ोर होने लगा, फिर कालिका माता ने अपने तलवार से उसका वध कर दिया।तबसे श्री कालिका माता की मंदिरो में प्रतिमा स्थापित कर पूजा -आर्चना करने लगेी
श्री कालिका माता का महोत्सव वर्ष में चार बार आता है
1)चैत्र शुद्ध अष्टमी,2)आषाढ़ वद्य अमावस्या ,3}फाल्गुन अमावस्या और 4} आश्विन शुद्ध दशमी।
इस उत्सव में श्री.कालिका माता की पालकी और कालिका की छवि की शोभायात्रा निकाली जाते हैं। इसमें हजारों श्रध्दालु शामिल होते है।
Created On :   4 Oct 2024 5:33 PM IST