रियल्टी सेक्टर की मोदी सरकार से मांग, जल्द दूर करें तरलता संकट

Real Estate Sector Asks Government For Early Resolution Of Liquidity Crisis
रियल्टी सेक्टर की मोदी सरकार से मांग, जल्द दूर करें तरलता संकट
रियल्टी सेक्टर की मोदी सरकार से मांग, जल्द दूर करें तरलता संकट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार बनने के बाद रियल एस्टेट सेक्टर के लोग चाहते हैं कि सरकार जल्द से जल्द इस सेक्टर के तरलता संकट का हल निकाले। डेवलपर्स का कहना है कि आने वाले पूर्ण बजट में, सरकार को रियल्टी सेक्टर को इंडस्ट्री का दर्जा देना चाहिए। साथ ही प्रोजक्ट्स के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस पेश किया जाना चाहिए।

अनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा, "रियल एस्टेट सेक्टर कई ऐसे मुद्दे हैं जिनसे वह लंबे समय से जूझ रहा है और इन मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इन मुद्दों में ठप या लंबित आवास परियोजनाएं, संपत्ति की कीमतें जो आबादी के बड़े हिस्से की पहुंच से बाहर हैं, तरलता संकट और बड़ी संख्या में तैयार प्रॉपर्टी का स्टॉक।

नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (NAREDCO) के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने कहा, "रियल एस्टेट उद्योग को उम्मीद है कि सरकार इस इस क्षेत्र में चल रहे तरलता संकट का समाधान करेगी।" उन्होंने कहा कि मजबूत और स्थिर सरकार को बिना किसी देरी के इस सेक्टर में स्थिरता लाने के लिए रेमेडियल एक्शन लेना चाहिए।

हाल ही में अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी के लिए माल और सेवा कर (जीएसटी) की दरें कम कर दी गई थीं, लेकिन मार्केट प्लेयर चाहते हैं कि जीएसटी के कुछ और बदलाव और सुव्यवस्थित होना चाहिए। सिग्नेचर ग्लोबल इंडिया के चेयरमैन प्रदीप अग्रवाल ने कहा, "जहां तक ​​जीएसटी का सवाल है हमें लगता है कि दरों में कमी खरीदारों के लिए आकर्षक है, लेकिन इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) डेवलपर्स को दिया जाना चाहिए।"

फरवरी 2019 में, जीएसटी परिषद ने अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी पर टैक्स 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत, और किफायती आवास परियोजनाओं पर लगने वाले 8 प्रतिशत टैक्स को घटाकर 1 प्रतिशत कर दिया था। ये दरें 1 अप्रैल से प्रभावी हो गई है। इन्वेस्टर्स क्लिनिक के सीईओ हनी कुटियाल ने कहा कि अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी के लिए जीएसटी में आईटीसी को शामिल करने से डेवलपर्स का प्रॉफिट शेयर बढ़ेगा और स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए।

पोजेक्ट्स के लिए सिंगल-विंडो क्लीयरेंस एक और लंबे समय से चली आ रही मांग है और रियलटर्स का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि नई सरकार इस मोर्चे पर कदम उठाएगी। हनी कुटियाल ने कहा, इस प्रक्रिया से सकारात्मक वातावरण का निर्माण होगा, क्योंकि क्लीयरेंस में देरी से कॉस्ट बढ़ जाती है जिसका असर होमबॉयर्स पर पड़ता है। सिंगल विंडो सिस्टम से क्लीयरेंस प्रोसेस में तेजी आएगी। इससे सेक्टर और होमबॉयर्स दोनों को लाभ होगा।

रियल्टी सेक्टर को इंडस्ट्री का दर्जा देने की मांग भी लंबे समय से की जा रही है। सरकार ने 2017 में किफायती आवास खंड को इंडस्ट्री का दर्जा दिया था। डेवलपर्स को लगता है कि इसका विस्तार पूरे सेक्टर में किया जाना चाहिए।

उद्योग या बुनियादी ढांचा स्थिति खिलाड़ियों को वित्तीय संस्थानों या निजी इक्विटी फंडों की तुलना में बैंकों से आसान दरों पर ऋण प्राप्त करने में मदद करती है। इसका यह भी अर्थ है कि किसी विशेष उद्योग को बैंकों के ऋण देने पर कैप को कम करना। इंडस्ट्री या इंफ्रास्ट्रकचर स्टेटस से इस सेक्टर के लोगों को  वित्तीय संस्थानों या निजी इक्विटी फंडों की तुलना में बैंकों से आसान दरों पर ऋण प्राप्त करने में मदद मिलती है। 

 

Created On :   26 May 2019 7:53 PM IST

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