क्या PPP मॉडल का मतलब प्राइवेटाइजेशन है? जानिए दोनों के बीच का अंतर
- इसमें कई एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन शामिल है
- क्या PPP मॉडल का मतलब प्राइवेटाइजेशन है?
- देश में कई बड़े प्रोजेक्ट पीपीपी के तहत पूरे किए जा रहे
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में कई बड़े प्रोजेक्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत पूरे किए जा रहे हैं। इसमें कई एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन शामिल है। भोपाल में बना हबीबगंज स्टेशन देश का पहला ऐसा स्टेशन है जिसे पीपीपी मॉडल के तहत बनाया गया है। इसे देश का पहला प्राइवेट स्टेशन भी कहा जा रहा है। कई टोल एक्सप्रेसवे भी इसी मॉडल के तहत बनाए गए हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं पीपीपी मॉडल और प्राइवेटाइजेशन के बीच के अंतर जिससे आप इन दोनों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप और प्राइवेटाइजेशन दोनों अलग-अलग हैं। पीपीपी में पब्लिक सर्विस का प्राइवेट मैनेजमेंट किया जाता है। इसके लिए एक ऑपरेटर और पब्लिक अथॉरिटी के बीच लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रेक्ट किया जाता है। दोनों पक्षों के बीच जिस समझौते पर हस्ताक्षर होते हैं, उसे मॉडल कंसेशन एग्रीमेंट कहा जाता है। जबकि प्राइवेटाइजेशन में पब्लिक सर्विस या फैसेलिटी को प्राइवेट सेक्टर को बेच दिया जाता है। टोल एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट पीपीपी का एक बढ़िया उदाहरण है, जिसे प्राइवेट डेवलपर फाइनेंस और कंस्ट्रक्ट करता है।
पीपीपी को पार्शियल प्राइवेटाइजेशन भी नहीं कहा जा सकता। प्राइवेटाइजेशन एक ऐसी प्रोसेस है जिसमें सर्विस या एक्टिविटी की ओनरशिप या मैनेजमेंट को पूरी तरह से या पार्ट में सरकार से प्राइवेट सेक्टर को दे दिया जाता है। प्राइवेटाइजेशन कई रूपों में हो सकता है, जिसमें आउटसोर्सिंग, मैनेजमेंट कॉन्ट्रेक्ट, फ्रैनचाइजी, सर्विस शेडिंग, कॉर्पोराइजेशन, डिसइन्वेस्टमेंट, एसेट सेल्स, लॉन्ग टर्म लीज आदि शामिल हैं।
पीपीपी और प्राइवेटाइजेशन के बीच मुख्य अंतर यह है कि किसी पर्टिकुलर सर्विस की डिलिवरी और फंडिंग की जिम्मेदारी प्राइवेटाइेशन में प्राइवेट सेक्टर की होती है। दूसरी ओर, पीपीपी में सर्विस प्रोवाइड करने के लिए सरकार की जिम्मेदारी शामिल होती है। ओनरशिप के मामले में, प्राइवेटाइजेशन में ओनरशिप राइट प्राइवेट सेक्टर को संबंधित लाभों और लागतों के साथ बेचे जाते हैं। पीपीपी में एसेट्स की लीगल ओनरशिप पब्लिक सेक्टर के पास ही होती है।
प्राइवेटाइजेशन में सर्विसेज का नेचर और स्कोप प्राइवेट प्रोवाइडर निर्धारित करता है, जबकि यह पीपीपी में पार्टियों के बीच निर्धारित होता है। प्राइवेटाइजेशन में बिजनेस के सभी जोखिम प्राइवेट सेक्टर के होते हैं, जबकि पीपीपी में, सरकार और प्राइवेट सेक्टर के बीच रिस्क और रिवॉर्ड शेयर किए जाते हैं। पीपीपी में, सरकारी भूमिका एक फैसिलिटर और इनेबलर के रूप में रिडिफाइन होती है, जबकि प्राइवेट पार्टनर सर्विस या फैसिलिटी के फाइनेंसर, बिल्डर और ऑपरेटर की भूमिका निभाता है।
पीपीपी का उद्देश्य ग्राहकों या नागरिकों को उच्च स्तर की सेवाएं प्रदान करने के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के कौशल, विशेषज्ञता और अनुभव को जोड़ना है।
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Created On :   12 Aug 2021 1:17 AM IST