गोटमार मेला विशेष: पांच दिनों के लिए बंद हो जाते हैं सौ साल पुराने राधाकृष्ण मंदिर के पट, गोटमार के चलते सुरक्षा की दृष्टि से निभाई जाती है, मंदिर को ढंकने की परंपरा
- गोटमार मेलास्थल का प्रमुख केन्द्र बिंदु है श्रीराधाकृष्ण मंदिर
- पांच दिनों के लिए बंद हो जाते हैं मंदिर के पट
- 100 साल पुराना है मंदिर
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा/पांढुर्ना। गोटमार मेलास्थल के प्रमुख केन्द्र बिंदु पर स्थित श्रीराधाकृष्ण मंदिर को हर साल करीब पांच दिनों के लिए पूरी तरह ढंककर बंद रखने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। दरअसल गोटमार के दौरान होने वाली पत्थरबाजी के चलते सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर को पूरी तरह से ढंक कर बंद रखा जाता हैं। बीते लगभग सौ सालों से यह व्यवस्था परंपरा के भांति ही निभाई जा रही है।
मंदिर के व्यवस्थापक पुजारी अंधारे महाराज का कहना है कि गोटमार मेले का आयोजन हर साल होता है और श्रीराधाकृष्ण मंदिर जाम नदी पर गोटमार मेलास्थल के एकदम केन्द्र बिंदु और मुख्य पुलिया पर मौजूद है। हर साल गोटमार मेले में होने वाली पत्थरबाजी के वार मंदिर के हर भाग को झेलने पड़ते है। जिसके फलस्वरूप हर साल मंदिर को सुरक्षा और एहतियात के तौर पर बांस के तट्टों और अन्य मजबूत सामग्रियों से अच्छी तरह ढंक दिया जाता है। जिससे मंदिर के मुख्य परिसर और दीवारों पर पत्थरबाजी के वार से कम नुकसान होता है।
पोले के दो दिन पूर्व से लेकर गोटमार के बाद तक तक यानि करीब पांच दिनों के लिए मंदिर पूर्ण रूप से ढंका और बंद रहता है। गौरतलब है कि शहर के वरिष्ठ नागरिक नरेन्द्र पराते के वंशजों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और मंदिर निर्माण को सौ साल पूरे हो चुके है।
सार्वजनिक कुआं भी होता है बंद
जिस तरह गोटमार मेलास्थल के समीप मौजूद श्रीराधाकृष्ण मंदिर को ढंकने की व्यवस्था विगत सौ सालों से परंपरा के रूप में निभाई जा रही है, उसी तरह मेलास्थल के पास मौजूद एक सार्वजनिक कुएं को भी एहतियात के तौर पर बल्लियों, टीन और अन्य मजबूत सामग्रियों से अच्छी तरह ढंककर रखा जाता है। जामनदी के किनारे मेलास्थल के एकदम समीप स्थित इस कुएं के ऊपर लगी टीनों पर चढक़र भी कई खिलाड़ी पत्थरबाजी का खेल खेलते है। इसके अलावा गोटमार मेलास्थल के आसपास रहने वाले मकानों को भी सुरक्षा के तौर पर टूट-फूट से बचाने के लिए आवश्यक रूप से ढंक दिया जाता है।