अविश्वास प्रस्ताव से क्यूं नहीं डर रही मोदी सरकार, विपक्ष के लिए इसके क्या हैं मायने? जानें अब तक कितने प्रधानमंत्रियों ने इसके चलते गंवाई है सरकार
- अविश्वास प्रस्ताव के चलते गिरी थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार
- अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को क्या फायदा?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मणिपुर हिंसा को लेकर देश के दोनों सदनों में हंगामे का दौर जारी है। जहां एक तरफ विपक्षी नेता सदन में इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा की मांग कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष के नेताओं का कहना है कि वे चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन विपक्ष के नेता ही भाग रहे हैं। इन सभी के बीच बुधवार को विपक्षी दलों की 'INDIA' गठबंधन ने मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा सभा में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई है। विपक्षी नेताओं का मानना है कि मणिपुर हिंसा पर लंबी चर्चा के लिए अविश्वास प्रस्ताव एक बेहतर विकल्प है। ऐसा करने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर हिंसा पर जवाब देना ही होगा। हालांकि, वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बेफिक्र नजर आ रही है।
20 जुलाई को मानसून सत्र शुरू हुआ। इससे ठीक पहले मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न अवस्था में परेड कराने का वीडियो सामने आया। जिसके बाद इस मामले को लेकर देश का गुस्सा फूट पड़ा। विपक्ष का आरोप है कि सरकार मणिपुर में जारी हिंसा को रोकने में विफल रही है। इसी मामले को लेकर विपक्ष और मोदी सरकार के बीच तनातनी जारी है। बुधवार को विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई है। लेकिन लोकसभा में बहुमत को मद्देनजर रखते हुए मोदी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं है। लेकिन इससे लोगों में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर चर्चा तेज हो गई है। ऐसे में जानने की कोशिश करते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है और किस नियम के तहत विपक्ष इसे सदन में लाती है?
अविश्वास प्रस्ताव का मतलब क्या होता है?
जब लोकसभा में किसी पार्टी को लगता है कि सरकार बहुमत खो चुकी है, तो ऐसी स्थिति में विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाती है। इसे No Confidence Motion के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद केंद्र सरकार को विश्वास बनाए रखने के लिए सदन में अपना बहुमत साबित करना होता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सरकार तभी तक सत्ता में रह सकती है जब तक कि उसके पास पूर्ण बहुमत हासिल हो। संविधान के अनुच्छेद 75 में अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद के मुताबिक अगर कोई विपक्षी दल लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव को पेश करती है और इस दौरान सत्ता पक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान के दौरान हार जाती है तो ऐसी स्थिति में प्रंधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ता है।
विपक्ष के लिए कितना फायदेमंद अविश्वास प्रस्ताव
लोकसभा के नियमावाली 198(1) से 198(5) के तहत स्पीकर के बुलाने पर सदन में इस प्रस्ताव को पेश किया जाता है और जिस दिन कोई नेता अविश्वास प्रस्ताव सदन में पेश करने वाला होता है, उस दिन उसे सुबह 10 बजे तक लोकसभा के महासचिव को लिखित सूचना देनी होती है। अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है। अगर इतने सांसद नहीं हो तो अध्यक्ष प्रस्ताव को पेश करने की अनुमति नहीं देते हैं। ऐसे में यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष चर्चा के लिए एक या अधिक दिन निर्धारित करते हैं। इसके बाद अध्यक्ष सरकार को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहते हैं। अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के लिए एक हथियार के तौर देखा जाता है। विपक्ष इसका इस्तेमाल सरकार से सवाल पूछने और उनकी विफलताओं को देश में उजागर करने के लिए करती है। इसके अलावा अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष को सरकार से सवाल करने की अनुमति भी मिलती है। यह विपक्षी एकजुटता के लिए भी कारगर साबित होती है। ऐसे में अगर सरकार गठबंधन की होती है तो अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सरकार पर दवाब बनाया जाता है।
हालांकि, विपक्ष केवल सरकार गिराने के उद्देश्य से अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं करती है, बल्कि विपक्ष इसका प्रयोग सरकार से किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए भी करती है।
इन प्रधानमंत्री की सरकार अविश्वास प्रस्ताव के चलते गिरी
देश में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव का उपयोग भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ किया गया था। साल 1963 की बात है जब नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। इस दौरान प्रस्ताव में पक्ष में 62 सासंदों का मत मिला था, नेहरू के पक्ष में 347 सांसदों का सांसदों का समर्थन था। इसी के साथ देश में नेहरू की सरकार गिरने से बच गई। अब तक संसद पलट पर 26 बार से ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव को पेश किया गया है। इनमें सबसे ज्यादा बार या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के खिलाफ आए थे।
जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। इस दौरान कई नेताओं की सरकार जाने से बची है, तो मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, एच.डी. देवगौड़ा, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की सरकार अविश्वास प्रस्ताव की चपेट में आकर गिर गई।
मोदी के खिलाफ अब तक 2 अविश्वास प्रस्ताव
बता दें कि, पीएम मोदी इससे पहले साल 2018 में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। तब मोदी सरकार के पक्ष में 325 सांसदों ने अपना समर्थन दिया था, वहीं विपक्ष के पक्ष में 126 सांसदों का मत मिला था।
वर्तमान समय की बात करें तो इस समय भी मोदी सरकार के पास एनडीए में शामिल सांसदों को कुल संख्या 331 है। वहीं, इस समय बीजेपी अकेले भी 303 सांसदों के समर्थन से अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कर सकती है। लेकिन विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के चलते सरकार से मणिपुर हिंसा पर चर्चा कराने में कामयाबी हासिल कर सकती है। शायद इसलिए भी विपक्ष इस बार अविश्वास प्रस्ताव पेश करके आश्वस्त नजर आ रही है। इसके पीछे का कारण यह भी है कि विपक्ष जानती है कि केवल इसी हथियार के जरिए वह सत्ताधारी बीजेपी से मणिपुर हिंसा पर चर्चा करा सकती है।