भास्कर एक्सक्लूसिव: लोकसभा चुनाव में उत्तप्रदेश पर ही क्यों टिकी रहती हैं पार्टियों की नजर, समझिए इसके पीछे का सियासी गणित

  • इस साल होने है लोकसभा चुनाव
  • आगामी चुनाव में यूपी पर है पार्टियों का फोक्स
  • जानिए इसके पीछे का गणित

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-21 18:25 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली हैं। देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश की लोकसभा चुनावों में काफी अहम भूमिका रही है। यही कारण है कि केंद्र की सत्ता में काबिज होने के लिए यूपी पर हर पार्टी की निगाहें टिकी रहती हैं।

देश का सबसे बड़ा प्रदेश होने के अलावा यूपी सर्वाधिक जनसंख्या वाला प्रदेश भी है। उत्तप्रदेश की आबादी 24 करोड़ से अधिक है। यह आबादी देश की 140.76 करोड़ जनसंख्या का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा है। इस लिहाज से देखा जाए तो यूपी के वोटर्स से लोकसभा चुनाव के नतीजों में काया पलट हो सकती है।

यूपी में इन पार्टियों का होगा मुकाबला

इस साल के लोकसभा चुनाव में केंद्र की भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन बनाया गया था। मगर, जैसे जैसे आगामी चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे 26 पार्टियों वाले इस गठबंधन से कई विपक्षी दल उससे पल्ला झाड़ते जा रहे हैं। उत्तप्रदेश की ओर रूख करें इस साल के लोकसभा चुनाव में यहां से 4 प्रमुख राष्ट्रीय और 8 राज्य स्तर दल एक दूसरे से टक्कर लेने जा रहे हैं।

आगामी चुनाव में उत्तप्रदेश से बीजेपी की नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), राष्ट्रीय लोक दल, अपना दल (सोनेलाल), निशाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे पार्टियां चुनाव लड़ने जा रही हैं। इसके अलावा इंडिया अलयांस से राज्य की दूसरी सबसे बड़ी समाजवादी पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), महान दल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) चुनाव में इन पार्टियों से भिड़ेगी। वहीं, पूर्व सीएम मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और ओवैसी की नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।

2024 लोकसभा चुनाव में पार्टियों की रणनीति

1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा इस साल के लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रीक बनाने के लिए तैयार नजर आ रही है। आगामी चुनाव में पार्टी देश में विकास, राष्टवाद और हिंदुत्व के मुद्दों को लेकर उतरेगी। बीजेपी ने दावे के साथ कहा है कि उत्तरप्रदेश में पार्टी ने विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने के हित में काम किया है। इसके अलावा बीजेपी ने यह दावा भी किया है कि पार्टी उत्तप्रदेश के सभी 80 लोकसभा सीटों पर भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज करेगी।

2. यूपी की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी सपा राज्य में बीजेपी से टक्कर लेगी। चुनाव में सपा सामाजिक न्याय, किसानों के हित और गरीबों के कल्याण जैसे मुद्दों को उठाकर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा को घेरती नजर आएगी। सपा का ओरपा है कि बीजेपी ने किसानों और गरीबों के लिए कभी कुछ नहीं किया है।

3. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की बात करें तो पार्टी का प्रदर्शन साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इतना प्रभावशाली नहीं रहा था। ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव में बसपा फिर से सत्ता में वापसी के लिए जुट गई है। पार्टी दलितों और पिछड़े विर्गों के कल्याण जैसे मुद्दों को लेकर चुनाव मैदान में उतरेगी।

4. यूपी की सत्ता से लगभग 35 साल से गायब कांग्रेस साल 2024 के लोकसभा चुनाव में वापसी के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। कांग्रेस युवाओं और महिलाओं को आधार बनाकर चुनाव लड़ेगी। चुनाव में पार्टी के मुद्दें रहेंगे विकास, रोजगार और महंगाई।

5. हाल ही में लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में शामिल हुई राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) साथ चुनावी मैदान में उतर रही है। चुनाव में रालोद किसानों के हित और गरीबों के कल्याण जैसे मुद्दे लेकर उतरेगी।

6. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यूपी में आम आदमी पार्टी (आम) भी अपना सिक्का आजमाने जा रही है। चुनाव में पार्टी भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में उतरेगी। आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को एक भ्रष्ट पार्टी बताया है। जिसने शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों को किनारा किया है।

2022 विधानसभा चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन

वर्तमान की राजनीतिक स्थिति को देखे तो बीजेपी यूपी की मजबूत पार्टियों में से एक हैं। बीजेपी उत्तरप्रदेश की सत्ता में साल 2017 से काबिज है। वहीं, पार्टी ने साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी फिर से जीत रिपीट करने के लिए जोरों-शोरों से प्रयास कर रही है। राज्य में सात साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी ने अपनी पार्टी का सशक्त नेटवर्क स्थापित कर लिया है। ऐसे में अब यूपी में पार्टी के पास जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का मजबूत नेटवर्क तैयार है। यूपी में सीएम अदित्यनाथ योगी, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। मगर, बीजेपी के जीत के रास्ते में सपा और बसपा कांटा बन सकते हैं।

सपा की साल 2022 विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन की ओर नजर डाले तो नतीजों के पायदान में 111 सीटों पर जीत के साथ दूसरे पायदान पर थी। वहीं, यूपी में पार्टी का राज्य स्तर पर सशक्त जनाधार स्थापित है। साथ ही, पार्टी की यादव, मुस्लिम और अन्य पिछड़े वर्गों में भी मजबूत पकड़ है। लोकसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव युवा मतदाताओं को साध सकते हैं। मगर, सपा में अंदरूनी विवाद उसकी रणनीति को फेल कर सकती है।

वहीं, साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी की 2 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी। उत्तप्रदेश में जीत के आकड़ो को बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने कमर कस ली है। उत्तरप्रदेश में प्रियंक गांधी आगामी चुनावी मद्देनजर कांग्रेस का प्रचार कर रही हैं। माना जा रहा है कि उनके यूपी दौरे से कांग्रेस की छवि और प्रदर्शन में सुधार हो सकता है। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया एलयांस में सपा का साथ मिलने से पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। इसे देखते हुए कांग्रेस राज्य में महिलाओं और युवाओं को अभियान के तहत साधाने का प्रयास कर रही है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का 2022 विधानसभा चुनाव में काफी निराशाजनक प्रदर्शन रहा था। पार्टी से कई नेताओं ने साथ छोड़ दिया था। बसपा की सुप्रीमो को पार्टी की सबसे दिग्गज नेता में से एक हैं। चुनावों में हमेशा से ही पार्टी ने दलित वोटों को साधने की कोशिश की हैं। जिसके चलते अन्य पिछड़ी जातियों से समर्थन पाने में पीछे रह जाती है। वहीं, बसपा विकास से जुड़े मुद्दों पर पार्टी की पकड़ ढ़ीली पड़ जाती है। माना जा रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में बसपा के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है।

उत्तप्रदेश में अपना दल (सोनेलाल) नाम की पार्टी एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है। उनकी पार्टी कुर्मी समाज में मजूबत पकड़ रखती है। पार्टी ने साल 2019 का विधानसभा चुनाव एनडीए गठबंधन के साथ लड़ा था। इस चुनाव में पार्टी ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। अनुप्रिया पटेल अपना दल पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष है। साथ ही, लोगों के बीच उनकी अच्छी लोकप्रियता भी है। ऐसे में आगामी चुनाव में उनकी पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं।

चुनाव में पार्टियों के लिए ये चीजें रखती हैं मायने

यूपी में चुनाव जीतने के लिए 'जाति फेक्टर' राजनीतिक दलों के लिए काफी मायने रखता हैं। हर एक पार्टी की यह कोशिश रहती है कि वह जाति को आधार बनाकर वोट हासिल कर सकें। प्रदेश में कुर्मी, यादव, जाट, ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम समाज चुनाव के दृष्टिकोण से अहम होते हैं। इसके अलावा विकास के मुद्दे पर भी चुनाव लड़ा जाता है। जिसे लेकर हर पार्टियां एक दूसरे को घेरती नजर आती हैं।

यूपी में चुनाव जीतने के लिए पार्टी की ओर से प्रत्याशियों का चयन भी काफी मायने रखता है। एक मजबूत दावेदार जनता को अपनी पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए प्रभावित कर सकता है। पार्टी के लोकप्रिय नेता जनता को प्रेरित कर सकते हैं।

प्रदेश में चुनाव के दौरान पार्टियां कानून व्यवस्था को कायम और सुनिश्चिचत करने के कई दावे पेश करती हैं। इसके अलावा राज्य में राजनीतिक दल बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, किसानों के मुद्दें और समाजिक समस्याओं के मुद्दों भी काफी मायने रखते हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा से दिया था इस्तीफा

लोकसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा छोड़ दी थी। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया था। ऐसा करने के पीछे की वजह मौर्या की सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से नाराजगी बताई गई थी। इसके बाद उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी। उन्होंने 'राष्ट्रीय शोषित समाज' नाम की एक पार्टी बनाई है। पार्टी का झंडा नीले, लाल और हरे रंग से बनाया गया है।

सपा से अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "अखिलेश यादव की कथनी और करनी में काफी अंतर है। हमारे बीच मतभेद है लेकिन मनभेद नहीं। सपा से अलग होने का कारण वैचारिक मतभेद है। मैं विचाराधारा से कभी नहीं हटा हूं। नेताजी खांटी समाजवादी नेता थे। हमें कांशीराम के बताये रास्ते पर चलना है।"

स्वामी प्रसाद मौर्य ने बनाई खुद की पार्टी

बता दें, स्वामी प्रसाद मौर्य को हिंदू विरोधी नेता माना जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म को लेकर कई तरह की विवादित टिप्पणी की है। इस वजह से वह हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस और कई हिंदू देवी देवताओं के विरोध में अपमानजनक टिप्पणी की थी। माना जाता है कि वह ऐसा करके बौद्ध और मुस्लिम पक्ष को साधने का प्रयास करते हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा का असर सपा के वोट बैंक पर पड़ सकता है। जिससे पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ऐसे में आगामी चुनाव में सपा को कम वोट मिलने की संभावनाएं भी अधिक है। मौर्य के इस्तीफे से पार्टी को मिलने वाले वोट बंट सकते हैं। इसे देखते हुए सपा की चिंता बढ़ गई है। हालांकि, इससे भाजपा का लाभ मिल सकता है। सपा के धुव्रीकरण की राजनीति से भाजपा को लाभ मिल सकता है।

उत्तरप्रदेश में चुनाव के महारर्थी नेता

उत्तप्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ को बीजेपी के सबसे लोकप्रिया चेहरों में से एक हैं। उन्हें हिंदू पक्ष का समर्थन प्राप्त है। वहीं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी भी माना जाता हैं, जो ओबसी वर्ग से आते हैं। ऐसे में उनका हर वर्ग के लोगों में जनाधार मौजूद है। इसके साथ ही बीजेपी से अमित शाह, राजनाथ सिहं, स्मृति ईरानी जैसे कई अनुभवी नेता आते हैं। हाल ही में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में आरएलजी के अध्यक्ष जयंत चौधरी शामिल हुए हैं। उनकी जाट समुदाय के मतदाताओं में अच्छी लोकप्रियता है।

सपा की बात करें तो अखिलेश यादव एक युवा नेता है, जो युवाओं और मुस्लिम वोट को साध सकते हैं। उनके अलावा यादव समुदाय को साधने में शिवपाल यादव अहम भूमिका निभा सकते हैं। उधर, दलितों में मायावती की मजबूत पकड़ है।

कांग्रेस नेता प्रियंक गांधी उत्तरप्रदेश में महिलाओं और युवाओं को साधने की कोशिश करने में जुटी हुई हैं। वहीं, राहुल गांधी की युवाओं के बीच अच्छी पकड़ है।

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