लोकसभा चुनाव 2024: कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है रायबरेली सीट, जानिए इंदिरा से लेकर सोनिया गांधी तक क्या रहा यहां का चुनावी इतिहास
- रायबरेली उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक
- रायबरेली में कांग्रेस का रहा है दबदबा
- वर्तमान में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी इस सीट से सांसद
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के लिहाज से रायबरेली उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है। इस सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। काफी लंबे वक्त से यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है। रायबरेली सीट में अब तक कुल 16 आम चुनाव और 3 उप-चुनाव हुए हैं। जिनमें 16 बार कांग्रेस, दो बार भाजपा और एक बार भारतीय लोकदल (बीएलडी) ने जीत हासिल की। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां से तीन बार की सांसद रह चुकी हैं। वर्तमान में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी इस सीट से सांसद हैं। समाजवादी पार्टी ने लगातार तीन आम चुनावों से सोनिया गांधी के सामने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी इस सीट पर अभी तक खाता नहीं खोल पाई है।
साल 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के नेता राजनारायण और 1996 व 1998 में भाजपा के अशोक कुमार सिंह ही इस सीट से गैर कांग्रेसी सांसद रहे। इसके बाद से इस सीट पर कोई और गैर कांग्रेसी सांसद नहीं बन सका। तब से लगातार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। आईए जानते हैं क्या है रायबरेली लोकसभा सीट का इतिहास?
रायबरेली सीट का चुनावी इतिहास
कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली रायबरेली सीट पर नेहरू-गांधी नेहरू परिवार का वर्चस्व रहा है। साल 1952 से लेकर 2019 तक के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस यहां से केवल तीन चुनाव हारी है। इस सीट में सबसे पहला लोकसभा का चुनाव साल 1957 में हुआ था। इसके बाद 1960 में फिर उपचुनाव हुए। इंदिरा गांधी को इस सीट से जीत मिली साल 1967 में। उसके बाद वो यहीं से चुनाव जीतती रहीं।
आपातकाल हटने के बाद साल 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते इंदिरा गांधी को भारतीय लोकदल के राजनारायण के हाथों शिकस्त मिली। तीन साल बाद 1980 में दूसरा उप-चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के अरुण कुमार नेहरू को विजय हासिल हुई। उप-चुनाव के बाद इसी साल फिर से आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी की इस सीट से वापसी हुई। फिर साल 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अरुण कुमार नेहरू दोबारा सांसद बने। इसके बाद दो बार साल 1989 और 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस नेता शीला कौल ने इस सीट से चुनाव जीता। फिर साल 1996 में दूसरी बार कांग्रेस को हार मिली। तब भाजपा में रहे रायबरेली के स्थानीय नेता अशोक सिंह ने चुनाव जीता। अशोक सिंह ने 1998 के चुनाव में भी अपनी सांसदी बरकरार रखते हुए चुनाव जीता। अगले साल 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वापसी हुई और कैप्टन सतीश शर्मा सांसद बने। फिर साल 2004 के चुनाव में सोनिया गांधी पहली बार यहां से कांग्रेस की सांसद के तौर पर चुनी गईं। सोनिया गांधी ने यहां से 2006 का उप-चुनाव और फिर लगातार 2009, 2014 व 2019 का आम चुनाव जीता।
क्या रहा पिछले चुनाव का रिजल्ट?
पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने अपनी सांसदी बरकरार रखते हुए भारी बहुमत से विजय हासिल की थी। सोनिया के पक्ष में कुल 5 लाख 34 हजार 918 वोट डाले गए थे। जबकि कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेता दिनेश प्रताप सिंह को 3 लाख 67 हजार 740 वोट ही हासिल हुए थे। इस चुनाव में नोटा को भी 10 हजार 252 वोट मिले थे। सपा और बसपा ने अपना कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा था। खास बात यह थी कि मोदी लहर के बाद भी कांग्रेस ने यह सीट जीत ली थी। हालांकि, इसके अलावा यूपी में कांग्रेस भी सीट नहीं जीत सकी थी।
जब इंदिरा हारीं
जब इंदिरा गांधी ने अपना राजनीतिक पदार्पण किया तो उन्होंने पहला चुनाव रायबरेली सीट से लड़ा था। साल 1967 में जब इंदिरा गांधी सांसद बनीं तो विपक्षी पार्टियों को लगा कि रायबरेली सीट पर चुनाव जीतना अब बस एक सपना ही बनकर न रह जाए। ऐसे में सोशलिस्टों ने यहां पर जमीनी मेहनत की। विपक्षी नेता हर गांव-गली तक किसान आंदोलन की बात उठाने लगे। उसके बाद समाजवाद से राजनारायण नाम का बड़ा चेहरा विपक्ष के तौर पर उभर कर आया। साल 1971 के आम चुनाव में राजनारायण ने इंदिरा गांधी के सामने बड़ी चुनौती पेश की। लेकिन जब चुनाव के नतीजे सामने आए तो राजनारायण इंदिरा गांधी के सामने 1 लाख वोट भी नहीं जुटा पाए और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। फिर साल 1977 में जब आपातकाल हटने के बाद लोकसभा के चुनाव हुए तो राजनारायण ने इंदिरा गांधी को चुनाव हरा दिया। राजनारायण ने उस चुनाव में करीब डेढ़ लाख से भी अधिक वोट हासिल किए थे।
रायबरेली का जातिगत समीकरण
चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार रायबरेली सीट में अनुसूचित जाति के वोटर्स की संख्या सबसे अधिक है। रायबरेली में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या कुल 34 फीसदी है। 20 फीसदी आबादी सवर्णों की है। जिनमें कुल 11 फीसदी ब्राह्मण वोटर्स हैं और 9 फीसदी ठाकुर हैं। 7 फीसदी यादव समाज के वोटर्स हैं। लोधी और कुर्मियों को मिलाकर 10 फीसदी वोटर्स हैं। 6 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके अलावा 23 फीसदी अन्य समाज के वोटर्स हैं।