राजस्थान की राजनीति और अनुसूचित जनजातियों का बोलबाला
- उदयपुरा संभाग में आदिवासियों का बोलबाला
- 28 विधानसभा सीटों पर असर
- सीएम से लेकर पीएम तक कर चुके है दौरा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजस्थान की राजनीति में जातियों का खूब बोलबाला है। राजनीतिक दल भी जातिगत समीकरण पर अधिक निर्भर होते है। राज्य में साल के आखिरी महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले है, इसे देखते हुए हर दल जातियों के चुनावी गणित के पीछे दौड़ भाग रहे है। जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पार्टियों जातियों के लिहाज से पदाधिकारी नियुक्त कर कर रहे है।
ज्यादातर पार्टियां जातियों के हिसाब से ही चुनावी मैदान में प्रत्याशियों के नाम तय करती है। राजस्थान की राजनीति में अनुसूचित जनजाति मतदाता सरकार बदलने की ताकत रखते है। उदयपुर इलाके में इनकी तादाद और अधिक है। इसलिए इस इलाके में सीएम से लेकर पीएम तक यात्रा कर चुके है। उदयपुर क्षेत्र में एसटी समुदाय पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की तरफ से ध्यान दिया जा रहा है। उदयपुर संभाग को मेवाड़ के नाम से भी जाना जाता है। इस रीजन में 28 विधानसभा सीटें आती है। इनकी संख्या सरकार बनाने और बिगड़ने की अहम भूमिका में होती है। मेवाड़ इलाके की 17 सीटों पर एसटी सीधे तौर से प्रभावित करते है। साथ ही 11 सीटों पर निर्णायक भूमिका में होते है। 28 सीटों में से शहरी विधानसभा सीटों को छोड़ दिया जाए तो बाकी सीटों पर बड़ी संख्या में जनजातीय समुदाय की आबादी है। डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर, यहां 60 फीसदी से लेकर 76 फीसदी जनसंख्या जनजातीय समुदाय की है।
एबीपी न्यूज के मुताबिक राज्य के दक्षिण में स्थित 8 जिलों की 49 तहसीलों के 5696 ग्रामों को मिलाकर अनुसूचित क्षेत्र निर्मित किया गया है, जिसमें जनजातियों का सघन आवास है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र की जनसंख्या 64.64 लाख है जिसमें जनजाति जनसंख्या 45.52 लाख है, जो इस क्षेत्र की जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत है। 8 जिलों में से बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ के सम्पूर्ण जिले, उदयपुर, सिरोही, राजसमन्द, चित्तौड़गढ, पाली जिले के आंशिक क्षेत्र को सम्मिलित किया गया है।