केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने पिता से जुड़ा किस्सा किया साझा, कहा- इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल में उनके साथ हुआ अन्याय
राजनीति केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने पिता से जुड़ा किस्सा किया साझा, कहा- इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल में उनके साथ हुआ अन्याय
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक इंटरव्यू के दौरान अपने पिता डॉ. के सुब्रह्मण्यम से जुड़ा एक किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया कि वह एक नौकरशाहों के परिवार से आते हैं। उनके पिता एक ब्यूरोक्रेट थे, जो बाद में सचिव बने। एस जयशंकर ने कहा कि इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के कार्यकाल में उनके पिता के साथ अन्याय किया गया। खबरों के मुताबिक उनके पिता डॉ. के सुब्रमण्यम एक शानदार रणनीतिक विशेषज्ञ माने जाते हैं। साथ ही साक्षात्कार के दौरान उन्होंने ब्यूरोक्रेट से मिनिस्टर बनने की भी दास्तान सुनाई।
केंद्रीय विदेश मंत्री ने इंटरव्यू में कही ये बातें
मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने अपने परिवार से जुड़ी हुई तमाम बातों को साझा कीं। जयशंकर ने बताया कि वह एक बेहतरीन विधेश सेवा अधिकारी बनाना चाहते थे और जब वह ऐसा सोचते है उनके सामने उनके पिता का ध्यान आ जाता है। जयशंकर ने कहा, ''मैं सबसे अच्छा विदेश सेवा अधिकारी बनना चाहता था। मेरी नजर में सबसे अच्छे के परिभाषा एक विदेश सचिव के रूप में थी। मेरे घर में भी यही मानना था, इसे दबाव नहीं कहूंगा लेकिन हम सब उस तथ्य से अवगत थे कि मेरे पिता, जो एक नौकरशाह थे, सचिव बन गए थे लेकिन उन्हें सचिव पद से हटा दिया गया था। उस समय 1979 में जनता सरकार में वह संभवत: सबसे कम उम्र के सचिव बने थे। 1980 में वह रक्षा उत्पादन सचिव थे। 1980 में जब इंदिरा गांधी फिर से चुनी गईं तब वह पहले सचिव थे, जिन्हें उन्होंने हटाया था। वह सबसे विद्वान पुरुष थे, रक्षा विभाग में हर कोई यह बता देगा।'' विदेश मंत्री जयशकंर ने कहा उनके पिता एक ईमारदार व्यक्ति थे ''हो सकता है कि इसी कारण समस्या हुई हो, मुझे नहीं पता।''
एस. जयशंकर ने बताया कि, ''तथ्य यह है कि एक व्यक्ति के रूप में उन्होंने नौकशाही में अपना करियर देखा, वास्तव में जो बाधित था और उसके बाद, वह कभी दोबारा सचिव नहीं बने। उन्हें राजीव गांधी काल के दौरान किसी ऐसे जूनियर व्यक्ति के लिए पद से हटा दिया गया था जो कैबिनेट सचिव बन गया था। यह कुछ ऐसा था जो उन्होंने महसूस किया था। हमने शायद ही कभी इस बारे में बात की हो। इसलिए जब मेरे बड़े भाई सचिव बने तो उन्हें बहुत.. बहुत गर्व हुआ था। पिता के निधन के बाद वह सरकार के सचिव बने थे।"