संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ टिप्पणी भविष्य के लिए खतरनाक संकेत : माकपा

नई दिल्ली संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ टिप्पणी भविष्य के लिए खतरनाक संकेत : माकपा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-01-13 07:30 GMT
संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ टिप्पणी भविष्य के लिए खतरनाक संकेत : माकपा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सीपीआईएम ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ टिप्पणी को भविष्य के लिए खतरनाक संकेत करार दिया है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम निरस्त किए जाने के मुद्दे पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से परोक्ष रूप से न्यायपालिका की आलोचना किए जाने के बाद कहा कि राज्यसभा के सभापति का सुप्रीम कोर्ट के केशवानंद भारती मामले से जुड़े फैसले को गलत कहना न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है।

बहुमत की अपनी निरंकुशता का प्रयोग करने वाली कोई भी सरकार हमारे गणतंत्र के इस बुनियादी ढांचे को कमजोर नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान ने संसद की स्थापना की। सारे अंग कार्यपालिका (सरकार), विधायिका और न्यायपालिका संविधान से ही अधिकार और शक्ति लेते हैं। संविधान ही सर्वोच्च है और बहुमत की अपनी निरंकुशता का प्रयोग करने वाली कोई भी सरकार हमारे गणतंत्र के इस बुनियादी ढांचे को कमजोर नहीं कर सकती। ऐसी ही घटना से हमें बचाने के लिए संविधान की मूल संरचना सिद्धांत विकसित हुआ।

भारत के उपराष्ट्रपति ने संविधान के तहत पदभार ग्रहण किया और अब इसी संविधान की सर्वोच्चता पर सवाल उठा रहे हैं। यह भविष्य के लिए एक अशुभ संकेत है। हमारे संविधान की केंद्रीयता भारत की संप्रभुता को लोगों में बनाए रखने में निहित है जो संविधान की प्रस्तावना के हम भारत के लोग.. से स्पष्ट है। कार्यपालिका की कोई भी इकाई इसका स्थान नहीं ले सकती।

लोग चुनाव में अपनी संप्रभुता का प्रयोग करते हैं। 5 साल के लिए अस्थायी रूप से प्रतिनिधि चुना जाता है। विधायक आपस में सरकार चुनते हैं। वे कार्यपालिका (सरकार) के प्रति जवाबदेह हैं। साथ ही विधायिका (संसद) और सांसद लोगों के प्रति जवाबदेह हैं। संवैधानिक योजना के इस सूत्र में किसी भी बिंदु पर लोगों की संप्रभुता को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। एक असहिष्णु फासीवादी हिंदुत्व राष्ट्र की कल्पना भारतीय गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के चरित्र को नष्ट करने का प्रयास है। इसका विरोध करें और इसे अस्वीकार करें।

गौरतलब है कि एक दिन पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए संवैधानिक संस्थाओं के अपनी सीमाओं में रहकर संचालन करने की बात करते कहा था, संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है? क्या भारत के संविधान में कोई नया थियेटर (संस्था) है जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा? साल 1973 में एक बहुत गलत परंपरा शुरू हुई। 1973 में केशवानंद भारती के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं।

उन्होंने कहा था, यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं। इससे पहले कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी कहा था कि धनखड़ की टिप्पणी के बाद संविधान से प्रेम करने वाले हर नागरिक को आगे के खतरों को लेकर सजग हो जाना चाहिए।

वहीं कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, सांसद के रूप में 18 वर्षों में मैंने कभी भी किसी को नहीं सुना कि वह उच्चतम न्यायालय के केशवानंद भारती मामले के फैसले की आलोचना करे। वास्तव में अरुण जेटली जैसे भाजपा के कई कानूनविदों ने इस फैसले की सराहना मील के पत्थर के तौर पर की थी। अब राज्यसभा के सभापति कहते हैं कि यह फैसला गलत है।यह न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है।

 

 (आईएएनएस)

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