क्या इस पुराने मसले के डर से बैकफुट पर जा रहे हैं शरद पवार? आखिर क्या है विपक्ष का मुख्य चेहरा बनते बनते अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से कन्नी काटने की वजह?
पवार का इस्तीफा क्या इस पुराने मसले के डर से बैकफुट पर जा रहे हैं शरद पवार? आखिर क्या है विपक्ष का मुख्य चेहरा बनते बनते अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से कन्नी काटने की वजह?
- भारतीय राजनीति के दिग्गज शरद पवार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद के इस्तीफे के ऐलान ने भारतीय राजनीति में खलबली मचा दी है। पवार के इस्तीफे को राजनैतिक पंडित अलग अलग नजरिए से देख रखे है। कोई इसे पवार का पॉलिटिक्स से मोह भंग होना बता रहा है, तो कोई इसे मजबूरी बता रहा है।
शरद पवार उस समय पार्टी के सबसे बड़े पद को त्याग रहे है। जब न केवल उनकी पार्टी एनसीपी बल्कि समूचे विपक्ष को उनकी जरूरत है। वर्तमान समय में देश के सबसे दिग्गज नेताओं में शुमार शरद पवार विपक्षी ताकत की धुरी हैं।
भारतीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य पर गौर करें तो एक बात सामने आती है कि जब विपक्ष में अपनी धाक जमाने के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल के चीफ होड़ की लाईन में लगे हुए है। इस कड़ी में शरद पवार सबसे सीनियर और सटीक फिट बैठने वाले नेता हो सकते थे, जो पूरे विपक्ष को एक सूत्र में पिरो सकते है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि शरद पवार कहीं विपक्षी एकता में एकजुटता न बना ले, इसी के डर से क्या उन पर कोई अंदरूनी तौर पर कोई ऐसा सियासी दबाव है, जिसके चलते पवार एनसीपी के प्रेसिडेंट पद से इस्तीफा दे रहे हैं। क्योंकि पवार परिवार के कई नेताओं के नाम महाराष्ट्र के कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में उजागर हुए थे। चार साल पहले ईडी ने इस मामले में उन पर मुकदमा भी दर्ज किया था। तो क्या ये माना जाए कि कानूनी पचड़ों से डर कर पवार पहले ही बैकफुट पर आ गए हैं।
ऐसा नजर आता है कि बीजेपी हर हाल में विपक्ष में से पवार को तोड़कर विपक्षी एकता को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। क्योंकि अडानी मामले पर जब पूरा विपक्ष एक स्वर होकर बोल रहा था, तब शरद पवार ने अडानी का समर्थन किया था। कुछ समय पहले अडानी की शरद पवार से हुई मुलाकात भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ था। ऐसे में पवार के राजनीति संन्यास के बाद एनसीपी के अजित पवार के साथ बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार बनाती है, तो यह आने वाले समय में बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि जो हिंदू वोट बीजेपी से छिंटकर शिवसेना को बंट रहा था,वह शिवसेना के शिंदे और ठाकरे गुट में बंटने के चलते असमंजस्य में पड़ेगा। अंत में इस वोट के बीजेपी में शिफ्ट होने के चांस बढ़ जाएंगे।