राज्यपाल रमेश बैस बोले, झारखंड में फट सकता है एकाध एटम बम, सीएम हेमंत के मामले में चुनाव आयोग से मांगा है सेकंड ओपिनियन

झारखंड राज्यपाल रमेश बैस बोले, झारखंड में फट सकता है एकाध एटम बम, सीएम हेमंत के मामले में चुनाव आयोग से मांगा है सेकंड ओपिनियन

Bhaskar Hindi
Update: 2022-10-27 10:30 GMT

डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़े मसले पर राज्यपाल रमेश बैस के ताजा बयान ने एक बार फिर सियासी हलचल पैदा कर दी है। राज्यपाल ने रायपुर में एक निजी चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा है कि इस मामले में उन्होंने चुनाव आयोग से सेकंड ओपिनियन मांगा है। आयोग का ओपिनियन आने के बाद वह अपने संवैधानिक अधिकारों के अनुसार सोचेंगे कि उन्हें क्या निर्णय लेना है। राज्यपाल ने यहां तक कहा कि झारखंड में एकाध एटम बम फट सकता है, क्योंकि पटाखे पर दिल्ली में बैन है झारखंड में नहीं।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री सोरेन ने अपने नाम से एक पत्थर खदान का पट्टा लिया था। भाजपा ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और जन प्रतिनिधित्व कानून के नियमों का उल्लंघन बताते हुए राज्यपाल से लिखित शिकायत की थी और उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। राज्यपाल ने इसपर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था। चुनाव आयोग ने इस मसले पर सभी पक्षों को बुलाकर सुनवाई की और इसके बाद विगत 25 अगस्त को अपना मंतव्य राज्यपाल को भेज दिया था। इसपर राज्यपाल की ओर से अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। अब उन्होंने इसे लेकर चुनाव आयोग ने सेकंड ओपिनियन मांगा है।

राज्यपाल ने रायपुर में निजी चैनल से बातचीत में कहा कि मैं एक संवैधानिक पद पर हूं। मुझे संविधान के अनुसार चलना है। मैं नहीं चाहता कि कोई मुझपर यह आरोप लगाए कि मेरा फैसला बदले की भावना से लिया गया है। यदि सरकार को अस्थिर करने की मंशा होती तो निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर निर्णय ले सकता था। यही वजह है कि मैंने सेकेंड ओपिनियन मांगा है। उन्होंने कहा कि जब तक गवर्नर संतुष्ट नहीं हो जाये तब तक ऑर्डर करना ठीक नहीं है। बैस ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार है कि चुनाव आयोग के ओपिनियन पर वह कब निर्णय करें। इसके लिए उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता।

राज्यपाल ने कहा कि चुनाव आयोग के मंतव्य का पत्र मेरे पास आया तो राज्य में सियासी हलचल चालू हो गई। झामुमो के प्रतिनिधि मंडल ने आकर मुझसे आयोग के मंतव्य की कॉपी मांगी। ऐसा प्रावधान नहीं है कि उन्हें मंतव्य की कॉपी दे दी जाए। उन्होंने चुनाव आयोग से भी ऐसी मांग रखी, लेकिन आयोग ने इनकार कर दिया। यह संवैधानिक मामला है। संवैधानिक संस्थाओं पर दबाव बनाकर उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता।

 

 

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