आडवाड़ी की रथयात्रा व चिमनभाई की आकस्मिक मौत से गुजरात में उभरी भाजपा
गुजरात सियासत आडवाड़ी की रथयात्रा व चिमनभाई की आकस्मिक मौत से गुजरात में उभरी भाजपा
डिजिटल डेस्क, गांधीनगर। राज्य की राजनीति में 1985 तक भाजपा हाशिये पर थी। 182 सीटों वाली राज्य विधानसभा में मुश्किल से उसके 9 या 11 विधायक चुने जाते थे। निकाय और पंचायत चुनावों में उसकी उपस्थिति नगण्य थी। इसके बाद 1987-88 में रामशिला की पूजन यात्रा हुई। 1989 में बोफोर्स तोपों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोपों पर कांग्रेस विरोधी लहर चली। राज्य में पार्टी का आधार मजबूत करने में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा ने निर्णायक भूमिका निभाई।
इस का नतीजा यह हुआ कि 1995 में भाजपा ने पहली बार राज्य में अपने दम पर सरकार बनाई। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कांग्रेस जब अपने शीर्ष पर थी, उस समय उसके विरोध में 37 प्रतिशत वोट पड़ता था। यह वोट जनसंघ/भाजपा और जनता पार्टी या जनता दल के बीच बंटा हुआ करता था।
1990 के दशक में मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल का आकस्मिक निधन हो गया, जबकि माधवसिंह सोलंकी और जीनाभाई दारजी जैसे कांग्रेस के दिग्गजों ने सक्रिय राजनीति छोड़ने की घोषणा की। सनत मेहता, प्रबोध रावल और अन्य वरिष्ठ नेताओ की राजनीतिक जमीन कमजोर हो रही थी। जनता दल (गुजरात) का कांग्रेस में विलय भाजपा के लिए अच्छा साबित हुआ। अब कांग्रेस विरोधी वोट जो भाजपा व जनता दल/जनता पार्टी के बीच बंटता था, वह भाजपा को स्थानांतरित हो गया।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 1980 के चुनाव में जनता पार्टी (जेपी) और जनता पार्टी (सेक्युलर) को 23 प्रतिशत वोट मिले, भाजपा को 14 प्रतिशत। 1990 के चुनाव में भाजपा को 26.69 फीसदी और जनता दल को 29.36 फीसदी वोट मिले थे। 1995 के चुनाव में भाजपा को 42.51 फीसदी वोट मिले थे। चिमनभाई पटेल की अनुपस्थिति में जनता दल को मात्र 2.82 फीसदी वोट ही मिला।
अस्सी के दशक के अंत और नब्बे के दशक की शुरुआत में तीन-चार प्रमुख घटनाक्रमों ने भाजपा की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद की। पहला रामजन्मभूमि आंदोलन, दूसरा ब्राह्मणों, बनियों, पटेलों और अन्य सवर्णों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा द्वारा ओबीसी और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को आकर्षित करना प्रमुख है। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. अनिल पटेल कहते हैं कि पार्टी कैडर की मजबूती और एक समावेशी दृष्टिकोण ने एक दशक से भी कम समय में पार्टी की ताकत को बहुत बढ़ाया है।
पटेल ने कहा, पार्टी ने ओबीसी श्रेणी की 146 उप-जातियों पर ध्यान केंद्रित किया और नाइयों, ऑटो-रिक्शा चालकों जैसे पेशेवरों और ऐसे संगठनों पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिन्होंने उन्हें भाजपा के माध्यम से मुख्यधारा की राजनीति में पेश किया। सोशल इंजीनियरिंग के साथ पार्टी ने सामाजिक विकेंद्रीकरण और सशक्तिकरण पर काम किया, जिसने राज्य में पार्टी की जड़ें गहरी हुईं।
उन्होंने कहा, यदि गोधरा की घटना ने हिंदू वोटों को अधिक मजबूती से एकजुट किया, तो इस घटना ने तुष्टीकरण की राजनीति को खत्म करने में भी मदद की। ये ऐसे कारक रहे हैं, जिन्होंने पार्टी को लंबे समय तक सत्ता में बने रहने में मदद की है।
राजनीतिक विश्लेषक सुधीर रावल ने कहा कि भाजपा ने राज्य को अस्थिरता से स्थिरता की ओर अग्रसर किया और नरेंद्र मोदी ने एक विजन के साथ नेतृत्व प्रदान किया, जो राज्य में पार्टी की मजबूत पकड़ और 20 से अधिक वर्षों तक सत्ता बनाए रखने का का मूलमंत्र है।
रावल के अनुसार कांग्रेस के शासन काल में बार-बार मुख्यमंत्री बदलना, राष्ट्रपति शासन, दंगे जैसी अस्थिरता थी, इससे राज्य का विकास अवरूद्ध हो रहा था। इसके विपरीत मोदी ने 13 वर्षों तक राज्य को मजबूत नेतृत्व प्रदान किया। उनके विकास के विजन ने राज्य को वैश्विक मानचित्र पर ला दिया। वादों को पूरा करने के उनके प्रयास से पार्टी बाधाओं को पार कर जाती है।
(आईएएनएस)
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