राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच चल रही सियासी खींचतान के बीच कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का बड़ा बयान
गहलोत बनाम पायलट राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच चल रही सियासी खींचतान के बीच कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का बड़ा बयान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से गहलोत और पायलट खेमे के बीच सीएम पद को लेकर जारी खींचतान अभी भी जारी है। हाल ही में सीएम अशोक गहलोत द्वारा पायलट के लिए कथित रुप से गद्दार शब्द का इस्तेमाल करने के बाद दोनों के बीच तल्खी और बढ़ गई है। इस बीच कांग्रेस के महासचिन जयराम रमेश का एक बड़ा बयान आया है। उन्होंने राजस्थान में चल रही नेतृत्व की लड़ाई पर बोलते हुए कहा कि, कांग्रेस में संगठन ही सर्वोच्च है, कोई व्यक्ति विशेष नहीं। पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी इसी सिद्धांत के आधार पर राजस्थान में चल रही नेतृत्व की लड़ाई का हल निकालना होगा।
आगामी चुनाव के लिए पार्टी को मजबूत होने की जरूरत
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल पार्टी के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ‘‘मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य नेता जो भी समाधान पेश करेंगे वह केवल एक सिद्धांत पर आधारित होगा कि संगठन ही सर्वोच्च है। इसलिए जो भी समाधान लागू होगा वह व्यक्ति ए या बी के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि संगठन के दृष्टिकोण से लागू किया जाएगा।’’ उन्होंने कहा ‘‘ जो कुछ भी लागू किया जाएगा वह संगठन के हित में होगा। यह व्यक्ति ए या व्यक्ति बी का सवाल नहीं है। यह कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस को 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मजबूत और तैयार रहना होगा।’’
पायलट और गहलोत पार्टी के लिए धरोहर
यात्रा के दौरान आयोजित प्रेस वार्ता में जब रमेश से पूछा गया कि, क्या अशोक गहलोत सचिन पायलट को राजस्थान के अगले सीएम के रुप में स्वीकार करेंगे ? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि, राहुल गांधी ने पहले ही साफ कर दिया है कि दोनों ही नेता पार्टी के लिए एसेट हैं। रमेश ने कहा, ‘‘ गहलोत एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं जबकि पायलट एक युवा, लोकप्रिय और ऊर्जावान नेता हैं। दोनों पार्टी की ‘एसेट’ हैं और पार्टी में दोनों की जरुरत है।’’
छत्तीसगढ़ पर दी ये प्रतिक्रिया
राजस्थान के जैसे ही एक और कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ में भी काफी समय से पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं सीएम भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच सियासी खींचतान जारी है। दरअसल, 2021 में बघेल के सीएम के रूप में ढाई साल पूरे होने के बाद इन दोनों नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता खुले तौर पर सामने आई थी। तब सिंहदेव समर्थकों की तरफ से दावा किया गया था कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ जीती थी तब सीएम पद के दावेदारों में भूपेश बघेल के साथ टीएस सिंहदेव का नाम भी शामिल था। उस समय यह बात सामने आईं थी कि प्रदेश में ढाई-ढाई साल के लिए सीएम पद संभालने के 50-50 फार्मूले पर सहमति बनी है। इस फार्मूले के तहत ढाई साल तक प्रदेश की सीएम का पद बघेल और बाकी ढाई साल के लिए सिंहदेव संभालेंगे। लेकिन जब इस फॉर्मुले के तहत ढाई साल पूरे होने बाद बघेल सीएम पद से नहीं हटे तो दोनों के बीच सियासी खींचतान शुरु हो गई।
जयराम रमेश से जब छत्तीसगढ़ के इसी 50-50 फार्मूले को लेकर सवाल किया गया कि, क्या छत्तीसगढ़ में यह फॉर्मूला लागू किया जाएगा? तो उन्होंने इस सवाल को टालते हुए कहा कि ‘‘ 50-50 का फॉर्मूला और इस सब के बारे में मुझे मालूम नहीं है लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि पार्टी एकजुट है और हम 2023 का विधानसभा चुनाव (छत्तीसगढ़ में) भारी बहुमत से जीतेंगे.’’
क्या छत्तीसगढ़ का आगामी विधानसभा चुनाव भूपेश बघेल के नेतृत्व में लड़ा जाएगा? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। उनहोंने कहा,‘‘ हर किसी की एक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा होती है, लेकिन अभी राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरु की है। हमें व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को भूल जाना चाहिए। हमारा अब एक ही उद्देश्य है जो कि यात्रा को सफल बनाना है और कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाना है। यह देखना है कि पिछले 86 दिनों में राहुल गांधी के प्रयासों को कैसे आगे बढ़ाया जाए। इसलिए किसी भी कांग्रेसी के लिए यह समय नहीं है कि वह खुद के बारे में सोचे, मेरा क्या होगा। मेरा क्या होगा यह सोचें।‘’
गुजरात चुनाव पर कही ये बात
गुजरात चुनाव पर बात करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा की तैयारियों के चलते उन्होंने गुजरात चुनाव पर उतना ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा उन्होंने कहा कि गुजरात के लोग बदलाव चाहते हैं। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि, ‘‘ वास्तव में, शिक्षा, स्वास्थ्य और महंगाई के मामले में किसी ठोस विकास के अभाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों को एक ध्रुवीकृत और सांप्रदायिक अभियान चलाने के लिए गुजरात में डेरा डालने पर मजबूर होना पड़ा।’’