Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में चुनावी टिकट से लेकर जीत तक सबकुछ जाति और धर्म पर होता है टिका
- 2018 में तीनों सीट कांग्रेस ने जीती
- तीन सीट त्रिकोणीय मुकाबला
- जाति और धर्म के आधार पर बंटते टिकट
- 2018 से पहले बीजेपी का बजता था डंका
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ जशपुर जिले में तीन विधानसभा सीटें जशपुर, कुनकुरी और पत्थलगांव विधानसभा सीट आती हैं। आदिवासी बाहुल्य जिला होने के कारण जिले की तीनों ही सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। जिला रेल और उद्योग विहिन है, इस जिले में विकास की बुनियाद सड़कों पर टिकी हुई है। जो बेहद खस्ताहाल में है। 2018 से पहले जशपुर जिले को बीजेपी का गढ़ माना जाता था, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को टोटली बोल्ड कर दिया था।
जशपुर विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से विनय कुमार भगत
2013 में बीजेपी से राजशरण भगत
2008 में बीजेपी से जागेश्वर भगत
2003 में बीजेपी से राजशरण भगत
जशपुर विधानसभा सीट को बीजेपी का अभेद किला माना जाता है, 2018 के विधानसभा चुनाव में करीब 35 साल जशपुर सीट पर बीजेपी ने मात खाई और ये सीट कांग्रेस के हाथ में चली गई। सीट पर उरांव जाति के मतदाताओं की बहुलता है। इलाके में विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा भी रहते है। यहां के करीब 60 फीसदी मतदाता उरांव समाज से आते है। हर राजनीतिक दल इसी जाति के प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारने में फोकस रहता है। हालांकि इनकी आबादी कम है, लेकिन राजनीतिक लिहाज से ये काफी मायने रखती है। इस विधानसभा में धर्मांतरण,आदिवासी और पहाड़ी कोरवा का मुद्दा हमेशा उछलता रहा है। चुनावी क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
कुनकुरी विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से यूडी मिंज
2013 में बीजेपी से रोहित कुमार साई
2008 में बीजेपी से भरत साई
इस सीट पर ईसाई ,कंवर और उरांव वोटर्स की संख्या सबसे अधिक है। यहां उम्मीदवार का चयन जाति के साथ साथ धर्म के आधार पर होता है। यहां ईसाई और कंवर वोटर्स की संख्या ज्यादा है। बीजेपी कंवर पर तो कांग्रेस ईसाई उम्मीदवार पर भरोसा करती है। तीनों ही समुदाय चुनाव में अहम भूमिका में होते है। पार्टियों की हार जीत इन्हीं मतदाताओं पर निर्भर होती है। यहां एशिया का सबसे बड़ा चर्च होने के चलते है धर्मांतरण विवाद आए दिन होते रहते है। क्षेत्र के दूरस्थ गांवों में आज भी विकास की पहुंच नहीं है। बादलखोल सेंन्चुरी से ये गांव विकास से दूर है। इलाके में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
पत्थलगांव विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से रामपुकार सिंह ठाकुर
2013 में बीजेपी से शिवशंकर पैंकरा
2008 में कांग्रेस से रामपुकार सिंह ठाकुर
2003 में कांग्रेस से रामपुकार सिंह ठाकुर
पत्थलगांव सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इनमें भी कंवर मतदातओं की संख्या सबसे अधिक है। कंवर, उरांव और गोड़ बाहुल्य पत्थलगांव विधानसभा सीट पर उम्मीदवारी जाति के आधार के तय होती है। पत्थलगांव विधानसभा सीट कांग्रेस का अभेद किला माना जाता था, कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व दिलीप सिंह जूदेव जब तक जिंदा रहे तब तक उनसे इस सीट को कोई नहीं छीन सका था। उनके मरणोपंरात यह सीट कांग्रेस के हाथ से फिसल गई। उरांव और गोंड समुदाय के लोग भी चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, सड़क, स्वास्थ्यऔर शिक्षण संस्थाओं की जर्जर हालातहै। पेयजल संकट एक बड़ी समस्या है। टमाटर प्रोसेसिंग कर सॉस बनाने के लिए लगाया गया प्लांट ठप्प है।
छत्तीसगढ़ का सियासीसफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ ने सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।
प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गद्दी संभाली थी। पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। 2018 में कांग्रेस की बंपर जीत से बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।