दमोह में चेहरा, पथरिया, हटा और जबेरा में जातीय समीकरण से तय होती है जीत

  • मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023
  • सीटों पर देखने को मिलता है त्रिकोणीय मुकाबला
  • बेरोजगारी, विकास और पानी बड़ी समस्या

Bhaskar Hindi
Update: 2023-07-22 10:05 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने वाले है। राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी विसात बिछाना शुरु कर दिया है। अगले महीने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सागर में बड़ी जनसभा होने वाली है। इसे देखते हुए हम आपको  सागर संभाग में आने वाले सभी जिलों की राजनीति, उसे प्रभावित करने वाले मुद्दों, वहां के जातीय समीकरण के साथ जमीनी हकीकत के बारे में बताएंगे।

सागर संभाग में सागर के अलावा 5 अन्य जिले दमोह, छतरपुर, पन्‍ना, निमाड़ी और टीकमगढ़ हैं।  आज हम दमोह जिले में आने वाली चार विधानसभा सीटें पथरिया, दमोह,जबेरा,हटा के चुनावी समीकरण पर चर्चा करेंगे। जिले की चार सीटों में दो बीजेपी, 1 पर कांग्रेस और 1 पर बीएसपी का कब्जा है। दमोह बघेलखंड के हिस्से में आता है।

दमोह विधानसभा सीट को छोड़कर बाकी तीन सीटों पर जातिगत समीकरण साफ तौर पर दिखाई देता है। और चुनाव में हार जीत भी यही तय करता है। दमोह में जाति की जगह प्रत्याशी का चेहरा मायने रखता है। यहां बाहुल्य जाति वाला प्रत्याशी कभी चुनाव नहीं जीता है। यहां प्रत्याशी का चेहरा ही सब कुछ है। टिकट वितरण में भी राजनैतिक दल इस बात का ध्यान रखते है कि पथरिया, हटा, और जबेरा में जातिगत समीकरण के आधार पर प्रत्याशी तय होता है, दमोह में ऐसा नहीं होता। दमोह में कुर्मी, लोधी, यादव, दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोट भारी तादाद में है। इन्हीं जातियों के वोटर्स निर्णायक भूमिका में होते है।

दमोह विधानसभा

परंपरागत रूप से बीजेपी का प्रभावी क्षेत्र माने जाने वाले शहरों में बीजेपी कमजोर हुई है। स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों से इस समझ सकते है। दमोह में कांग्रेस शहर के साथ साथ गांव में बीजेपी से मजबूत स्थिति में बताई जा रही है। यहां बीजेपी में अंतर्कलह भी पनपा हुआ है। दमोह में जैन, ब्राह्मण, कायस्थ,और मुस्लिम मतदाता तकरीबन बराबर है। जबकि अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 50 हजार से अधिक है। वहीं लोधी मतदाता दूसरे नंबर पर है। दमोह में यादव, कुर्मी भी निर्णायक भूमिका में होते है। वैसे आपको बता दें 2018 चुनाव से पहले दमोह विधानसभा को बीजेपी के अभेद किलो में गिनी जाता था। लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी से उसका ये किला छींन लिया । 

2021 उपचुनाव कांग्रेस के अजय कुमार टंडन

2018 में कांग्रेस के राहुल सिंह लोधी

2013 में बीजेपी के जयंत मलैया

2008 में बीजेपी के जयंत मलैया

2003 में बीजेपी के जयंत मलैया

1998 में बीजेपी के जयंत मलैया

1993 में बीजेपी के जयंत मलैया

1990 में बीजेपी के जयंत मलैया

1985 में कांग्रेस के मुकेश नायक

1980 में कांग्रेस के चंद्रनारायण रामधन

1977 में कांग्रेस के प्रभु नारायण टंडन

पथरिया विधानसभा 

2018 के विधानसभा चुनाव में पथरिया सीट से बीएसपी ने चुनाव जीत कर बीजेपी के किले का ढ़हा दिया। इससे पहले 20 साल तक पथरिया सीट पर बीजेपी का कब्जा था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने चुनाव जीत कर यहां नया रिकॉर्ड बनाया था। पथरिया विधानसभा में सबसे अधिक कुर्मी मतदाता हैं। दूसरे नंबर पर एससी, तीसरे नंबर पर लोधी, चौथे नंबर राजपूत, पांचवे नंबर पर ब्राम्हण हैं। शेष अन्य जातियां हैं। कुर्मी, एससी व लोधी मतदाता प्रत्याशी की जीत तय करते है।  

2018 में बीएसपी की रामबाई गोविंद

2013 में बीजेपी के लखन पटेल

2008 में बीजेपी के डॉ रामकृष्ण कुसमरिया

2003 में बीजेपी के सोनाबाई सेवाकर्म अहिरवार

1998 में बीजेपी के गणेश खटिक

1993 में कांग्रेस के कालूराम

1990 में बीजेपी के मणिशंकर सुमन

1985 में कांग्रेस के श्यामलाल

1980 में कांग्रेस के गोपालदास मु्न्निलल

1977 में जेएनपी के जीवनलाल कंछेदीलाल

जबेरा विधानसभा सीट

जबेरा विधानसभा सीट की सियासत जातीय समीकरण के इर्द गिर्द घूमती है। चुनाव में दोनों प्रमुख दल जातीय समीकरण को ध्यान मे रखते हुए बाहुल्य समाज के चेहरें को चुनाव में उतारने के मूड़ में होती है। क्षेत्र में एससी, एसटी और लोधी मतदाताओं की संख्या अधिक है, इसलिए पार्टियां इसी वर्ग से उम्मीदवार को चुनावी दंगल में उतारने की कोशिश करती है। इस सीट की एक कहावत अभी भी प्रचलित है कि ईसाई समुदाय के कम वोट होने के बावजूद भी रत्नेश सॉलोमन 15 साल तक विधायक और मंत्री रहे।

जबेरा विधानसभा सीट का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है। 66 वर्ष के इतिहास में तीन बार 1952,1957,2007 में जबेरा विधानसभा का नाम बदला गया। सबसे पहले 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में तेंदूखेड़ा विधानसभा के नाम से ,उसके पांच वर्ष बाद 1957 के विधानसभा चुनाव में नोहटा विधानसभा क्षेत्र के नाम से चुनाव हुआ, इसके अलावा 2007 में परिसीमन होने पर नोहटा का नाम जबेरा विधानसभा क्षेत्र हो गया। जबेरा सीट पर चुनाव जातियों के बीच होते हुए दिखाई देता है। यहां एससी,एसटी और लोधी समाज चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है।

2018 में बीजेपी के धर्मेंद्र लोधी

2013 में कांग्रेस के प्रताप सिंह

2008 में कांग्रेस के रत्नेश सोलोमन

हटा विधानसभा

1993 को छोड़ दिया जाए तो 1985 से लेकर 2018 तक इस सीट पर बीजेपी का एकतरफा राज रहा है। 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। बीजेपी की उमादेवी यहां से दो बार विधायक निर्वाचित हुई थी। सीट पर चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। विधानसभा सीट पर कुर्मी, दलित और लोधी मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते है, जो प्रत्याशी की हार जीत का फैसला करते है।

2018 में बीजेपी के पीएल टंटवे

2013 में बीजेपी के उमादेवी

2008 में बीजेपी की उमादेवी

2003 में बीजेपी के गंगाराम पटेल

1998 मेंबीजेपी के गोरेलाल

1993 में कांग्रेस के सुंदर

1990 में बीजेपी के गणेशीलाल

1985 में बीजेपी के काशीप्रसाद

1980 में कांग्रेस के सुंदर

1977 में जेएनपी से जगसूरिया

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