लोकसभा चुनाव 2024: चुनाव आयोग की तैयारी, मणिपुर में 24 हजार विस्थापित मतदाता राहत शिविरों से डालेंगे वोट
- मणिपुर में चुनाव सरगर्मियां फीकी
- 11 महीने से जारी हिंसा
- चुनाव में विरोधी भावना
डिजिटल डेस्क,इंफाल। मणिपुर में 11 महीनों से जारी संघर्ष, 50000 से अधिक लोगों के विस्थापित होने तथा कुछ लोगों में चुनाव विरोधी भावना होने के बीच निर्वाचन आयोग राज्य में लोकसभा चुनाव कराने के चुनौतीपूर्ण काम के लिए जुट गया है। राज्य में चुनाव सरगर्मियां फीकी नजर आ रही हैं। मणिपुर में 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों में लोकसभा चुनाव होने हैं।
सरकारी समाचार एजेंसी पीटीआई भाषा से मिली जानकारी के अमुसार चुनाव आयोग ने हिंसा ग्रस्त मणिपुर में लोकसभा चुनाव संपन्न कराने के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए कमर कस ली है। करीब एक साल से चल रही हिंसा के बीच यहां से 50,000 से अधिक लोगों को विस्थापित होने का जाखिम उठाना पड़ा। इसे लेकर कई लोगों में चुनाव विरोधी भावना ने घर कर लिया है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी, प्रदीप कुमार झा ने कहा कि 24,500 से अधिक विस्थापित लोगों को आगामी चुनावों में मतदान करने के लिए पात्र के रूप में पहचाना गया है और राहत शिविरों से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए उनके लिए विशेष व्यवस्था की गई है।
प्रदीप कुमार झा ने पीटीआई से कहा, लोकसभा चुनाव के लिए कुल 2,955 पोलिंग स्टेशन राज्य में स्थापित किए गए हैं, जिनमें से 50 प्रतिशत को संवेदनशील चिन्हित किया गया है। हम आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों को मतदान की सुविधा प्रदान करने के लिए 94 स्पेशल वोटिंग बूथ बनाएंगे।
हिंसा प्रभावित मणिपुर में स्पष्ट रूप से चुनाव प्रचार के पारंपरिक तत्व पोस्टर, मेगा रैलियां और नेताओं की दृश्यमान आवाजाही गायब हैं, जहां दो सप्ताह से भी कम समय में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। स्थानीय चुनावी अधिकारियों की ओर से मतदाताओं से मतदान करने का आग्रह करने के लिए होर्डिंग्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि चुनाव आयोग की ओर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। आदर्श आचार संहिता के दायरे में आने वाली हर चीज की अनुमति है।चुनाव के लिए सुरक्षा व्यवस्था के सवाल के जवाब में झा ने कहा कि मणिपुर को अर्धसैनिक बलों की 200 से अधिक कंपनियां आवंटित की गई हैं। सुरक्षा के पुख्ते इंतजाम किए जा रहे है। जनता को मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है।
अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद पिछले साल 3 मई को शुरू हुए राज्य में जातीय संघर्ष में कम से कम 219 लोग मारे गए हैं। 50,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोग वर्तमान में पांच घाटी जिलों और तीन पहाड़ी जिलों के राहत केंद्रों में रह रहे हैं।