विधानसभा चुनाव 2023: छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में बीजेपी कांग्रेस को मिलती है बीएसपी से कड़ी टक्कर
- खनिज संपदा की शक्ति से भरपूर सक्ती
- जिले में ओबीसी वर्ग सर्वाधिक
- दो सीट पर कांग्रेस , 1 पर बसपा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के 33 वें जिले के रूप में 09 सितंबर 2022 को सक्ती नया जिला बना था। छत्तीसगढ़ के नवगठित सक्ती जिले में 3 विधानसभा सीट हैं। जिले की सभी तीनों सीट सामान्य है। सक्ती जिले के अंतर्गत सक्ती, जैजैपुर और चंद्रपुर तीन विधानसभा सीट आती है। जिले की दो विधानसभा सीट सक्ति और चंद्रपुर में कांग्रेस और एक विधानसभा सीट जैजेपुर में बीएसपी का कब्जा है। सक्ती विधानसभा सीट प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीट है, क्योंकि यहां से विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत विधायक हैं।
मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर कोरिया जिले से अलग होकर तथा जांजगीर-चांपा से अलग होकर सक्ती जिला बनाया गया। यह क्षेत्र संबलपुर शाही परिवार के अधीन था। दशहरे के दिन गोंड राजाओं ने भैंसों को लकड़ी की तलवार से मारकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था। उनके प्रदर्शन से प्रसन्न होकर संबलपुर के राजा ने सक्ति को एक स्वतंत्र रियासत का दर्जा दिया।
यहां की भूमि भी खनिज संपदा की शक्ति से भरपूर है। जिले की 94 फीसदी भूमि में सिंचाई की सुविधा है। यहां की धरती डोलोमाइट से भरपूर है। भविष्य में यह डोलोमाइट हब के रूप में उभर सकती है। सक्ती जिले की गुंजी नान के गांव में पहली शताब्दी के पाली भाषा में लिखे हुए शिलालेख मिले है।
सक्ती विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से चरण दास महंत
2013 में बीजेपी से खिलावन साहू
2008 में कांग्रेस से सरोज राठौर
2003 में बीजेपी से मेघराम साहू
सक्ती विधानसभा ओबीसी बाहुल है, जिसके चलते करीब तीन दशक से यहां से ओबीसी उम्मीदवार ही जीतता आ रहा है। ओबीसी का दबदबा होने के चलते राजनीतिक दल यहां से ओबीसी वर्ग के कैंडिडेंट को चुनावी मैदान में मौका देती है।
यहां ओबीसी वर्ग का वोटर्स ही विनिंग फैक्टर होता है। सक्ती सीट पर 50 फीसद से अधिक ओबीसी, 20 फीसदी के करीब एसटी वर्ग ,15 फीसदी एससी वर्ग का मतदाता है। साल 1998 से 2008 तक भाजपा के मेघाराम साहू इस सीट से विधायक रहे। साल 2008 से 2013 तक कांग्रेस की सरोजा मनहरण राठौर यहां से विधायक रहीं. साल 2013 में फिर से भाजपा के प्रत्याशी खिलावन साहू यहां से विधायक चुने गए. साल 2018 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चरणदास महंत यहां से विधायक हैं।
जैजैपुर विधानसभा सीट
2018 में बीएसपी से केशव प्रसाद चंद्र
2013 में बीएसपी से केशव चंद्र
2008 में कांग्रेस से रामसुदंर दास
2008 के परिसीमन में मालखरौदा, पामगढ़ और सक्ती के कुछ क्षेत्र को मिलाकर जैजैपुर विधानसभा सीट बनी थी। जैजैपुर सामान्य सीट है। पहले चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद के 2013 और 2018 चुनाव में बीएसपी ने यहां से लगातार दो बार जीत दर्ज कर अपना गढ़ बना लिया। 2008 के चुनाव में भी बीएसपी यहां से दूसरे नंबर पर रही थी। सीट पर 30 फीसदी एससी वोटर्स है जिसे बीएसपी का पुख्ता वोट माना जाता है। एससी के बाद 55 फीसदी ओबीसी ,10 फीसदी एसटी और 5 फीसदी सामान्य और अन्य समुदाय के मतदाता है। किसानों की जमीन का मुआवजा, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्या है।
चंद्रपुर विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस के रामकुमार यादव
2013 में बीजेपी के युद्धवीर सिंह जूदेव
2008 में बीजेपी के युद्धवीर सिंह जूदेव
चंद्रपुर विधानसभा सीट पर लंबे समय तक जूदेव परिवार का दबदबा रहा है। 1998 में रानी रत्नमाला सिंह यहां की विधायक थी। सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित चंद्रपुर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है, यहां बीजेपी और कांग्रेस को बीएसपी टक्कर देते हुए दिखाई देती है। सीट पर बीएसपी की राजनीतिक ताकत चुनाव में मिलने वाले मतदाताओं से साफ देखी जा सकती है। यहां जनता का मूड और क्षेत्र का विकास ही चुनाव में जीत का जरिया होता है।
चंद्रपुर विधानसभा सीट को समझें: इस विधानसभा की पहचान यहां की प्रसिद्ध मां चंद्रहासनी मंदिर है. जहां बड़े राजनेताओं से लेकर रसूखदार लोग भी मत्था टेकने आते हैं. जातीय समीकरण की बात करें तो चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र ओबीसी बाहुल्य है। यहां करीब 50 फीसदी मतदाता ओबीसी वर्ग है, ओबीसी में भी साहू समाज के वोटर्स अधिक हैं। अन्य समुदाय की बात की जाए तो 25 प्रतिशत एससी और 20 प्रतिशत एसटी वोटर्स हैं। जबकि 5 फीसदी सामान्य वर्ग के वोट है। यहां के चुनाव में ओबीसी वर्ग के वोटर्स ही निर्णायक भूमिका में होते है। चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र में दो पावर प्लांट हैं, जिससे निकलने वाली राख प्रदूषण की एक प्रमुख वजह है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी यहां की बड़ी समस्या है। क्षेत्र में सड़कों की हालात खस्ताहाल है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी यहां दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि बीजेपी तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। बीएसपी की यहां मजबूत स्थिति है।
छत्तीसगढ़ का सियासी सफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है। प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की कुर्सी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।