कोलकाता रेप-हत्या कांड: क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट और उसका कानून? बिखरी कड़ियों को जोड़ने के लिए सीबीआई का बड़ा दांव
- क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?
- किसने किया था सबसे पहले इस्तेमाल?
- पॉलीग्राफ टेस्ट का क्या है कानून?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए हत्या और रेप मामले में स्पेशल कोर्ट ने सीबीआई को आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति दे दी है। आरजी कर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर का शव सेमिनार हॉल में पाया गया था। जिसके बाद संजय रॉय को गिरफ्तार कर लिया गया। इस केस की जांच में सीबीआई लगी पड़ी है। गुरुवार को अदालत ने अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के साथ 5 और लोगों के भी पॉलीग्राफ टेस्ट पर अनुमति दी थी।
क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?
पॉलीग्राफ एक डिवाइस होती है जिससे ये पता लगाया जाता है कि आरोपी की बात सच है या झूठ। पॉलीग्राफ टेस्ट को लाइ डिटेक्टर टेस्ट भी कहते हैं। यह मशीन इसीजी की तरह होती है। जिसके चलते पूछताछ के दौरान आरोपी के शरीर में होने वाले बदलावों को भी डिटेक्ट करती है। दरअसल झूठ बोलने के समय दिल की धड़कन तेज हो जाती है और सांस लेने के साथ-साथ कई अन्य बदलाव भी शरीर में आते हैं। इसमें बीपी और नाड़ी को भी नापा जाता है। जिससे पता चल जाता है कि इंसान झूठ बोल रहा है या नहीं।
किसने किया था सबसे पहले इस्तेमाल?
पॉलीग्राफ टेस्ट का सबसे पहले इस्तेमाल इटली के अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो ने किया था। उन्होंने अपराध के बारे में पता लगाने के लिए बीपी में चेंज का अध्ययन किया था। इसके बाद अमेरिका के मनोवैज्ञानिक विलियम मैरस्ट्रॉन ने 1914 में अलग मशीन तैयार की। बता दें कि नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट दोनों ही मेडिकल फील्ड में विवादित रहे हैं। क्योंकि इसमें सच और झूठ की 100 प्रतिशत गारंटी अब भी नहीं है। लेकिन कभी-कभी पॉलीग्राफ टेस्ट मददगार भी साबित होते हैं।
भारत में प्रेस्टो इन्फोसॉलूशन्स नाम की कंपनी पॉलीग्राफ मशीनों की टॉप प्रोवाइडर है। सरकारी के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर में इस मशीन का इस्तेमाल होता है। जांच एजेंसीज भी इन मशीनों को खरीदती हैं। वैसे तो वैध कारण बताकर प्राइवेट संस्थाएं खरीद सकती हैं। लेकिन इस मशीन को खरीदने के कुछ कानूनी नियम होते हैं। जिसके लिए सरकार की अनुमति जरूरी होती है।
पॉलीग्राफ टेस्ट का क्या है कानून?
संविधान के आर्टिकल 20 (3) के मुताबिक नागरिकों के पास खुद को बचाने का अधिकार है। ऐसे में आरोपी के पास भी पॉलीग्राफ टेस्ट से इन्कार करने का अधिकार है। किसी भी आरोपी पर जबरदस्ती ये टेस्ट नहीं किया जा सकता है। इसलिए अगर किसी पर टेस्ट के लिए प्रेशर डाला जाता है तो यह आर्टिकल 20 (3) का उल्लंघन होगा। कई बार ऐसी सिचुएशन्स भी होती हैं जब किसी आरोपी पर पॉलीग्राफ टेस्ट अच्छे से काम नहीं करता है।