देर रात तक यूं चला सियासी ड्रामा, आखिर EC ने रद्द किए दो वोट और जीत गए पटेल
देर रात तक यूं चला सियासी ड्रामा, आखिर EC ने रद्द किए दो वोट और जीत गए पटेल
डिजिटल डेस्क,अहमदाबाद। गुजरात में राज्यसभा चुनाव के नतीजों को लेकर शाम से चल रहे हाई प्रोफाइल ड्रामे का देर रात तब खुलासा हुआ, जब कांग्रेस की बार-बार शिकायतों के बाद आखिरकार चुनाव आयोग ने पार्टी के दो बागाी विधायकों राघव पटेल और भोला भाई के वोट सार्वजनिक करने पर उन्हें रद्द करने की मांग मान ली। अब इन दोनों वोटों के रद्द होने पर चुनाव आयोग वोटों की गिनती दोबारा शुरू की और देर रात परिणाम पटेल के पक्ष में आया।
बीजेपी ने लगाया एड़ी-चोटी का जोर
बीजेपी ने गुजरात राज्यसभा की एक सीट का घमासान कांग्रेस की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया। गुजरात चुनाव को लेकर बीजेपी ने भी एड़ी-चोटी का जोर लगाया। पूरी पार्टी आगामी 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों को देखते हुए अहमद पटेल को हर हाल में हराना चाहती थी, लेकिन अहमद पटेल ने जीतकर अपने दमखम को साबित किया है।
शाम 7 की जगह देर रात आया फैसला
मंगलवार को गुजरात में 4 बजे से पहले 3 बजकर 20 मिनट पर ही वोटिंग खत्म हुई। इसमें कुल 176 विधायकों ने वोट डाले। पहले नतीजे मंगलवार की शाम 7 बजे तक ही घोषित होने थेए लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उसके दो विधायकों ने अपने वोट दिखाकर सार्वजनिक कर दिए, ऐसे में उन बागी विधायकों के वोट खारिज किए जाने को लेकर देर रात तक चुनाव आयोग से बातचीत का दौर चला। आखिरकार फैसला कांग्रेस के हक में हुआ और बागी विधायकों के वोट खारिज किए गए।
कांग्रेस के लिए बड़ी जीत
गुजरात राज्यसभा चुनाव में भले ही बीजेपी ने 2 सीटें जीती हो, लेकिन अहमद पटेल की जीत के अलग मायने हैं, उनकी जीत कांग्रेस की प्रतिष्ठा की जीत है। इससे आगामी 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों को भी जोड़कर देखा जा रहा है। चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला समेत 5 विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी। अहमद पटेल की जीत कांग्रेस के लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित हो सकती है, क्योंकि कांग्रेस को विभिन्न राज्यों के चुनावों में एक के बाद एक मुंह की खानी पड़ी है। बीजेपी अपने गठबंधन से इस समय देश के 18 राज्यों पर सत्ता में काबिज है। ऐसे में यह जीत कांग्रेस को देश में फिर से अपनी जमीन तैयार करने का मौका देगी।
ऐसा चुनाव कभी नहीं देखा: शरद यादव
उधर बयानबाजी का दौर शुरू हो गया, जिसमें जेडीयू के नेता शरद यादव ने भी गुजरात राज्यसभा चुनावों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ऐसा चुनाव मैंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में नहीं देखा। गुजरात की उस एक सीट के लिए यूं घमासान और उसे पार्टियों की प्रतिष्ठा का सवाल बनाया जाना पहले कभी नहीं दिखा है।
विधायकों को बेंगलुरु भेजना पड़ा
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अहमद पटेल के लिए जीत आसान नहीं थी। बीजेपी की साम, दंड, भेद, अर्थ वाली रणनीति के चलते कांग्रेस को क्रॉस वोटिंग का डर सताने लगा था। क्योंकि उसी समय शंकर सिंह वाघेला सहित 6 विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में अहतियातन पार्टी ने अपने 44 विधायकों को बेंगलुरु भेजा था। वो सभी चुनाव के एक दिन पहले सोमवार को वापस गुजरात लौटे।
ये था गुजरात में चुनाव का गुणा-भाग
गुजरात विधानसभा सदस्य संख्या-182
कांग्रेस के 6 सदस्यों के इस्तीफे के बाद-176
विधायकों की संख्या
भाजपा-121
कांग्रेस-51
राकांपा-2
जदयू-1
निर्दलीय-1
चुनाव में जीत के लिए चाहिए 45 मत
पश्चिम बंगाल में 6 सीटों पर घमासान
यूं शुरू हुआ ड्रामा
पहले सब कुछ ठीक.ठाक था। गुजरात में तीन राज्यसभा सीटों पर तीन उम्मीदवार थे। अमित शाहए स्मृति इरानी और कांग्रेस से अहमद पटेल। इसमें ट्विस्ट तब आया जब गुजरात विधानसभा में नेता विपक्ष शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी छोड़ी। वाघेला के पार्टी छोड़ने के साथ ही कांग्रेस के 6 और विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी। जिनमें से 3 बीजेपी में शामिल हो गए। इनमें से एक थे बलवंत सिंह राजपूत। बीजेपी ने नई चाल चलती हुए बलवंत सिंह राजपूत को अहमद पटेल के खिलाफ खड़ा कर दिया। तभी से ये सब ड्रामा शुरू हो गया।
पहले से तय थी अमित शाह और ईरानी की जीत
अमित शाह और स्मृति इरानी की जीत पहले से ही तय थी, क्योंकि इन दोनों को 45-45 वोट यानी कुल 90 वोट की जरूरत थी। ये वोट बीजेपी के पास थे। आखिरकार यही हुआ और दोनों ने गुजरात राज्यसभा की दो सीटों पर बहुत आसानी से कब्जा कर लिया।
कांग्रेस के सामने अपने अस्तित्व का संकट : जयराम रमेश
सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह का मुकाबला करना कांग्रेस के लिए मुश्किल है। कांग्रेस इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और अगर उसे मोदी और शाह को हराना है तो उसे एकजुट होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पार्टी ने एमरजेंसी के बाद और 1996-2004 के बीच भी चुनावी संकट का सामना किया है, लेकिन इस वक्त कांग्रेस के सामने चुनावी संकट नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को लेकर संकट है। हमें समझना होगा कि हम मोदी.शाह के विरोध में खड़े हैं। वो दोनों हमेशा कुछ अलग सोचते हैंए हमें भी उसी तरह से सोचना होगा। वरना हम धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो देंगे।