लखनऊ में सांस लेने में हो रही परेशानी, मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज

उत्तर प्रदेश में प्रदूषण का असर लखनऊ में सांस लेने में हो रही परेशानी, मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज

Bhaskar Hindi
Update: 2021-11-17 07:00 GMT
लखनऊ में सांस लेने में हो रही परेशानी, मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज
हाईलाइट
  • दिवाली के बाद सांस के रोगियों की संख्या में वृद्धि

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। प्रदूषण का स्तर लगातार उच्च बना हुआ है, वहीं ठंड भी बढ़ रही है, जिसके चलते सांस लेने संबंधी बीमारियों की शिकायत करने वाले रोगियों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि हुई है। डॉक्टरों के मुताबिक पहले से ही सांस की बीमारी से जूझ रहे लोगों की हालत इस साल काफी ज्यादा खराब हो गई है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ वेद प्रकाश ने कहा कि प्रदूषक, पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे पार्टिकुलेट मैटर, श्वासनली और फेफड़ों में बाधा डालते रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सूजन होती है।

विदेशी वस्तुओं और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के बीच इस लड़ाई में, हमारे वायुमार्ग की रीमॉडेलिंग होती है, जो लंबे समय में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसऑर्डर, कैंसर, अस्थमा और अन्य श्वसन पथ की समस्याओं को जन्म दे सकती है। उन्होंने कहा कि सीओपीडी के मरीजों में निश्चित तौर पर इजाफा हुआ है। वायु प्रदूषण, हवा में सूखापन और मौसमी बदलाव हमारे श्वसन पथ में वायरस और बैक्टीरिया के विकास में योगदान दे रहे हैं। लोक बंधु राज नारायण अस्पताल के निदेशक डॉ अजय त्रिपाठी ने कहा कि डॉक्टरों ने पाया है कि दिवाली के बाद सांस के रोगियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि एक दिन में औसतन लगभग 70 रोगियों से, संख्या एक दिन में 90 रोगियों तक पहुंच गई है। इनमें से अधिकांश रोगियों में पहले से ही दूसरी बीमारियां भी हैं। ठाकुरगंज के टीबी अस्पताल में मरीजों की औसत संख्या 30 से बढ़कर 45 हो गई है। ज्यादातर मरीजों को सुबह और शाम को सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन की शिकायत है। न केवल बुजुर्ग मरीज, बल्कि मध्यम आयु वर्ग के लोग और युवा इस समस्या को लेकर हमारे पास आ रहे हैं। महानगर के बीआरडी अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक डॉ मनीष शुक्ला ने कहा, हर साल हम प्रदूषण और मौसम परिवर्तन के कारण सीओपीडी, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के रोगियों में वृद्धि देखते हैं, खासकर दिवाली के बाद। हर गुजरते साल के साथ यह प्रवृत्ति बढ़ रही है।

(आईएएनएस)

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