अब से कानून 'अंधा' नहीं: बदली 'न्याय देवी' की मूर्ति, आंखों से हटी पट्टी, हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब

  • अदालत में बदली न्याय देवी की मूर्ति
  • अब आंखों पर नहीं होगी पट्टी
  • भारतीय परिधान में आएंगी नजर

Bhaskar Hindi
Update: 2024-10-16 19:15 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आपने देश की अदालतों और फिल्मों में दिखाए गए कोर्ट में आंखों पर पट्टी के साथ न्याय की देवी की मूर्ति देखी होगी। लेकिन, अब से आप इस मूर्ति को ऐसे नहीं देख पाएंगे। दरअसल, कुछ समय पहले अंग्रेजों के बनाए कानून (इंडियन पीनल कोड) को बदलकर नए कानून (भारतीय न्याय संहिता) लाए गए थे। इसी क्रम में अब भारतीय न्यायपालिका का रंगरुप भी बदला जा रहा है। इसकी शुरूआत न्याय की देवी मूर्ति से की गई है।

आंखों से हटी पट्टी

बदलाव की शुरूआत देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम से हुई है। यहां के प्रतीक में परिवर्तन के साथ कई सालों से न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी भी हट गई है। ऐसा करके शायद ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि अब ' कानून अंधा' नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मूर्ति को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑर्डर देकर बनवाया है। मूर्ति को लगवाने के पीछे का मकसद यह मैसेज देना है कि देश में कानून अंधा नहीं है।

पुरानी मूर्ति की आंख पर बंधी पट्‌टी ये प्रदर्शित करती थी कि कानून की नजर में सब समान हैं। वहीं, तलवार अन्याय को सजा देने की शक्ति का प्रतीक थी। मूर्ति के दाएं हाथ में तराजू अभी भी रखा गया है, क्योंकि यह संतुलन का प्रतीक है। ये दर्शाता है कि अदालत किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को अच्छी तरह से सुनती और समझती है। नई मूर्ति के एक हाथ में तलवार की जगह अब संविधान की किताब है। जो यह संदेश दे रहा है कि न्याय संविधान के मुताबिक दिया जाता है। तलवार को हटाने के पीछे का एक कारण यह भी हो सकता है कि न्याय हिंसा के प्रतीक तलवार की दम पर नहीं बल्कि संवैधानिक कानून के अनुसार दिया जाता है।

क्यों बदली मूर्ति?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ का यह मानना है कि भारत को अब ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ना चाहिए। उनका विश्वास है कि कानून अंधा नहीं होता है, वह सभी को एक नजर से देखता है। इसी वजह से मूर्ति में इतने बड़े बदलाव किए हैं।

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