कभी इस इमारत में आजादी के परवानों को दी गई थी फांसी, आज यहां से निकलते हैं होनहार टेक्नोक्रेट्स, स्वतंत्रता संग्राम से इस IIT का है गहरा नाता

स्वतंत्रता संग्राम से IIT खड़गपुर का गहरा नाता

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-14 14:12 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 15 अगस्त, एक ऐसा दिन जिसके बारे में सुनकर हर भारतीय गौरवान्वित महसूस करता है और करें भी क्यों नहीं, इस दिन भारत करीब 200 सालों बाद ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ था। गुलामी की जंजीरों में जकड़े हर भारतीय के लिए यह दिन किसी सोने के खजाने से कम नहीं था। कई वीरों की साहसी और संघर्षपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकर हैरानी होती है कि उस समय का क्या दृश्य रहा होगा? कई वीर सपूत भारत को आजादी दिलाने के लिए शहीद हो गए। यही वजह है कि आजादी के जश्न में आज भी हर भारतीय खुशी से झूम उठता है। न यह खुशी पहले कम थी और न ही आज।

हम सभी ने आजादी के बारे में सैकड़ों कहानी सुनी होंगी। लेकिन आज आपको ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसके बारे शायद ही आप जानते होंगे। इतिहास के पन्नों में इसके बारे में कम ही जिक्र मिलता है। ऐसी ही कहानी भारत के पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) खड़गपुर से जुड़ी हुई है। जो एक समय भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों के लिए कारावास हुआ करता था। लेकिन आज हजारों बच्चे इस इंस्टीट्यूट से पढ़कर भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर रहे हैं। आइए जानते हैं इसके इस से जुड़ी कहानी के बारे में। 

आजादी से जुड़ा है आईआईटी खड़गपुर भवन का इतिहास

सन् 1951 की बात है जब भारत सरकार ने पहले आईआईटी संस्थान के रूप में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) खड़गपुर की स्थापना की थी। आज लाखों भारतीय छात्र इस संस्थान से अपना स्वर्णिम भविष्य बना रहे हैं। लेकिन कभी यह इमारत ऐतिहासिक हिजली कारावास शिविर हुआ करता था। यह वही इमरात है जहां पर देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की गोलियां खाने को तैयार बैठे स्वतंत्रता सैनानियों को बंदी बनाकर रखा जाता था। यहां पर कई भारतीय वीरों को फांसी भी दी गई थी। यह भवन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका की 20वीं एयर फोर्स के मुख्यालय का भी गवाह रहा है। कोलकाता से 120 किलोमीटर दूर हिजली का क्षेत्र बहुत शांत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर था।

उस वक्त हिजली कारावास शिविर अंग्रेजों के लिए कैदियों के लिहाज से भी बहुत ही मुफीद था। उस दौरान यह कारावास आम आबादी क्षेत्र से बिल्कुल ही दूर था। जिसके चलते यहां पर अंग्रेजों की गतिविधियां भी बड़े शांत ढंग से चला करती थीं। लेकिन आज 2100 एकड़ में फैला हुआ आईआईटी खड़गपुर वसंतोत्सव, रंगोली, और रोशनी जैसे वार्षिकोत्सव की वजह से जाना जाता है।

शहीद भवन के नाम से जाना जाता है संस्थान

अग्रेजों से आजादी मिलने के बाद में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर की स्थापना की गई थी। शुरुआत में इसे कोलकाता के पूर्वी एस्प्लेनेड में स्थापित किया गया था, जो Eastern Higher Technical Institute के नाम से जाना जाता था। सन् 1951 में आईआईटी का पहला आधिकारिक शिक्षा सत्र शुरू होने के दौरान पहली बार 224 छात्रों ने यहां प्रवेश लिया था। उस समय यहां कुल 10 विभाग और कुल 42 शिक्षक हुआ करते थे। तभी से इंस्टीट्यूट की सारी क्लास, लैब और ऑफिस ऐतिहासिक हिजली कारावास शिविर की इमारत में थे। जिसे शहीद भवन के नाम से भी जाना जाता है।

नेहरू ने पहले दीक्षांत समारोह में कही थी ये बातें

इस ऐतिहासिक इंस्टीट्यूट का ऑफीशियल शुभारंभ 18 अगस्त 1951 में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया था। तभी से ही इसे भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान के नाम से पहचान मिली। हालांकि, बाद में 15 सितंबर 1956 भारतीय संसद में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (खड़गपुर) अधिनियम पारित कर दिया गया। इसके बाद इसे "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" के रूप में भी दर्जा मिला। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में पहले दीक्षांत समारोह भाषण में बोला था, "ऐतिहासिक हिजली बंदी गृह भारत के शानदार स्मरकों में से एक है। अब वह नवीन भारत के भविष्य के रूप में तब्दील हो रहा है। यह दृश्य हमें भार में हो रहे परिवर्तनों का आभास कराता है।"

आज जब भारत आजादी का 77वां वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे समय में वीरों के बलिदान को समेटे हुए आईआईटी खड़गपुर भवन भारतीय छात्रों के उज्जवल भविष्य का गवाह बना रहा है।  

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