सतना: डेढ़ दशक पहले ही सतना में दम तोड़ चुकी राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना

  • गाहे-बगाहे चलता है अभियान, भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों पर फोकस
  • श्रम विभाग से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष सिर्फ दो ही बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराया गया था।
  • महीनों की राशि का भुगतान नहीं होने की वजह से गैरसरकारी संगठनों में गुस्सा पनपने लगा।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-12 13:34 GMT

डिजिटल डेस्क,सतना। बालश्रम पर विशेष नजर रखने वाली भारत सरकार की राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना आधिकारिक तौर पर भले ही साल भर पहले बंद हुई है मगर जिले में यह करीबन डेढ़ दशक पहले ही दम तोड़ चुकी है।

अब तो बालश्रम रोकने के लिए श्रम विभाग से गठित टीम गाहे-बगाहे अभियान चलाकर बाल श्रमिकों का रेस्क्यू करती है। अब तो सरकार विश्व बालश्रम दिवस के मौके पर भिक्षावृत्ति में संलिप्त रहने वाले बच्चों पर ज्यादा फोकस है। श्रम विभाग से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष सिर्फ दो ही बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराया गया था।

पहले इंडस आई, फिर एनसीएलपी

सूत्रों ने बताया कि बालश्रमिकों को जीवन की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए भारत सरकार युनाइटेड स्टेट (यूएस) की आर्थिक मदद से इंडस परियोजना वजूद में आई थी। इसके तहत बाल श्रमिकों का चिन्हांकन कर उन्हें सेतु शिक्षा केन्द्रों के जरिए प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करना था।

सेतु शिक्षा केन्द्रों का संचालन गैरसरकारी संस्थानों को दिया गया था। भारत सरकार प्रति बच्चे के मान से एनजीओ को भुगतान करती थी। 5 बरस तक तो सब ठीक रहा मगर वक्त के साथ-साथ इंडस परियोजना राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना (एनसीएलपी) में तब्दील हो गई। यानि फंड पूरी तरह से भारत सरकार पर निर्भर हो गया।

डूब गया एनजीओ का पैसा

राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना भी कुछ सालों तक पटरी पर रही मगर भारत सरकार से नियमित रूप से फंड नहीं आने की वजह से सेतु शिक्षा केन्द्रों का संचालन करने वाले एनजीओ को पैसा मिलना अनियमित हो गया। महीनों की राशि का भुगतान नहीं होने की वजह से गैरसरकारी संगठनों में गुस्सा पनपने लगा।

सेतु शिक्षा केन्द्रों में पढ़ाने वाले शिक्षक एनजीओ छोडऩे लगे। भारत सरकार ने भी सेतु शिक्षा केन्द्रों की संख्या घटा दी। भुगतान को लेकर कुछ एनजीओ हाईकोर्ट चले गए, नतीजा ढाक के तीन पात। और यूं डेढ़ दशक पहले राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना उदासीनता की भेंट चढ़ गई।

इनका कहना है

यह सही है कि परियोजना बंद हो चुकी है। बाल श्रमिकों के चिन्हांकन के लिए जिला स्तरीय एक टीम गठित है जो समय-समय पर निरीक्षण करती है।

हेमंत डेनियल, सहायक श्रमायुक्त

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