पुणे: एसआईआई स्वास्थ्य जगत का तीर्थस्थल, मलेरिया वैक्सीन की पहली खेप अफ्रीका रवाना

  • अमेरिकी राजदूत ने कहा - एसआईआई स्वास्थ्य जगत का तीर्थस्थल
  • अफ्रीकी लोगों के लिए अनुकूल वैक्सीन
  • अफ्रीकी बच्चों के लिए नया जीवन

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-21 12:38 GMT

डिजिटल डेस्क, पुणे। मलेरिया वैक्सीन की पहली खेप अफ्रीका रवाना की गई है। अमेरिकी राजदूत ने कहा कि एसआईआई स्वास्थ्य जगत का तीर्थस्थल बन गया है। अफ्रीका में प्रति वर्ष मलेरिया से 5 लाख से अधिक बच्चों की मृत्यु होती है। भारत सदैव ही अफ्रीकी देशों का हितचिंतक रहा है और समय-समय पर अनाज, औषधि आदि के माध्यम से मदद भी करता रहा है। दुनिया भर में वैक्सीन के सबसे बड़े निर्माता, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने अफ्रीका के सात-आठ देशों में आर21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया वैक्सीन की पहली खेप रवाना की है। इस मौके पर भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने एसआईआई की को स्वास्थ्य तीर्थस्थल नाम से संबोधित करते हुए कहा कि, यह परिसर दुनिया में किसी भी अन्य स्थान से अलग है, जिसका मिशन जीवन बचाना है।

अफ्रीकी लोगों के लिए अनुकूल वैक्सीन

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, अफ्रीकी देशों में हर साल मलेरिया से करीब पांच लाख बच्चे मरते हैं। कम लागत वाली, उच्च प्रभावशाली आर-21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एसआईआई ने नोवावैक्स की सहायक तकनीक का लाभ उठाते हुए विकसित किया है। यह वैक्सीन अफ्रीकी लोगों के लिए अनुकूल और सुरक्षित साबित हुई है। आर21//मैट्रिक्स-एम वैक्सीन मलेरिया स्थानीय क्षेत्रों में बच्चों के लिए उपयोगी अधिकृत दूसरी मलेरिया वैक्सीन है।

100 मिलियन खुराक उत्पादन की क्षमता

एसआईआई ने 25 मिलियन खुराक का निर्माण किया है। एसआईआई के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि प्रति वर्ष 100 मिलियन खुराक की हमारी उत्पादन क्षमता है। वर्तमान में, मध्य अफ्रीकी गणराज्य (सीएआर) क्षेत्र के लिए आवंटित कुल 1,63,800 खुराक में से 43,200 खुराक भेजी गईं है। पहली शिपमेंट सीएआर को भेजी गई है। इसके बाद आने वाले दिनों में दक्षिण सूडान और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे अन्य अफ्रीकी देशों को भेजा जाएगा।

वैक्सीन भारतीय मरीजों के लिए उपयोगी नहीं

पूनावाला ने कहा कि, यह वैक्सीन सिर्फ अफ्रीकी महाद्वीप के लोगों के लिए उपयोगी है। भारतीय मरीजों के लिए यह नहीं है, क्योंकि परजीवी अफ्रीका में पाया जाता है। हम बेहद किफायती दाम पर वैक्सीन दे रहे हैं। यह सभी अफ्रीकी देशों और अन्य निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के लिए व्यापक रूप से उपलब्ध और सुलभ होगा। इसलिए, हमने नोवोवैक्स, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार के साथ साझेदारी की। पूनावाला ने फ्लैगफ समारोह में मीडियाकर्मियों को बताया कि, एसआईआई ने चरण-3 क्लिनिकल परीक्षण को पूरी तरह से वित्त पोषित किया है।

डेंगू वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल

पूनावाला ने डेंगू वैक्सीन के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे कहा कि, हम डेंगू वैक्सीन की दिशा में काम कर रहे हैं, क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं और दो-तीन साल बाद हम भारत में डेंगू वैक्सीन की उम्मीद कर सकते हैं।

अफ्रीकी बच्चों के लिए नया जीवन

भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा कि पूनावाला परिवार की उदारता के कारण अफ्रीका के बच्चों को नया जीवन मिलेगा। अफ्रीका में, मलेरिया के कारण हर मिनट एक बच्चे की मृत्यु होती है। इसलिए, यह पैसा कमाना नहीं है, बल्कि जीवन बचाने का प्रयास है और यहां के लोगों की सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो जानते हैं कि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण हम इंसान हैं और हमें जीवन बचाने की जरूरत है। अब यह आसान लग सकता है जब हम वैक्सीन को विमान में लादते और चढ़ाते हुए देखते हैं तो हमें यह अहसास नहीं होता कि रास्ते में हर कदम पर कुछ न कुछ ऐसा हो सकता है जो इस प्रयास को रोक सकता है।

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