फिर शुरू हुई रार: नतीजों से पहले ही मावल में सियासी पटाखों की जोरदार आतिशबाजी हुई शुरु

  • शिवसेना के अप्पा और राष्ट्रवादी के अन्ना के बीच फिर शुरू हुई रार
  • सियासी पटाखों की जोरदार आतिशबाजी

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-24 15:57 GMT

डिजिटल डेस्क, पिंपरी चिंचवड़, संतोष मिश्रा। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में अभी 10 दिन ही बचे हैं, सभी की निगाहें 4 जून को घोषित होने वाले चुनावी नतीजे की ओर गड़ी हुई हैं। उसके पहले ही मावल लोकसभा क्षेत्र में सियासी पटाखों की आतिशबाजी शुरू हो गई है। महायुति में एक दूसरे पर गठबंधन धर्म को न निभाने का आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है। मौजूदा सांसद एवं शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रत्याशी श्रीरंग बारणे ने अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पर चुनाव में सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया है। जिससे सियासी गलियारे में हड़कंप मच गया है। शुरु से ही बारणे का विरोध कर रहे राष्ट्रवादी के विधायक सुनील शेलके ने इस आरोप का खंडन किया है। उन्होंने सलाह दी है कि बारणे को अब तो यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनको लेकर क्षेत्र में नाराजगी थी। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में अजित पवार के बेटे पार्थ पवार की हार की टीस को राष्ट्रवादी अभी तक भुला नहीं पाई है। इस बयानबाजी पर अजित पवार का भी कोई जवाब नहीं आया है। जो भी हो, इस बयाजनबाजी से महायुति के अंदर जारी खींचतान सामने आने लगी है।

--राष्ट्रवादी ने ईमानदारी से प्रचार किया होता तो प्रतिद्वंद्वी की जमानत तक नहीं बच पाती-बारणे

श्रीरंग बारणे ने संवाददाता सम्मेलन के जरिये अपनी जीत का भरोसा जताते हुए आंकड़ों के साथ जीत का समीकरण बताया। उन्होंने विश्वास जताया कि वे यह चुनाव ढाई लाख वोटों के अंतर से जीतकर सांसदी की हैट्रिक पूरी करेंगे। उनसे पहले ठाकरे सेना के प्रत्याशी संजोग वाघेरे ने पौने दो लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीतने का दावा किया है। अपनी जीत के दावे के साथ ही श्रीरंग बारणे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार) के स्थानीय नेता और पदाधिकारियों पर गठबंधन धर्म का पालन नहीं करने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी कहा कि, अगर राष्ट्रवादी ने ईमानदारी से प्रचार किया होता तो मेरे प्रतिद्वंद्वी की जमानत तक नहीं बच पाती। विरोध में प्रचार करने वाले नेता, पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं की सूची पवार को भेज दी है, उन पर क्या कार्रवाई करनी है? यह वही तय करेंगे। बारणे के आरोप पर पलटवार करते हुए मावल विधानसभा से राष्ट्रवादी के विधायक सुनील शेलके ने इस आरोप का खंडन किया है। बारणे को कम से कम अब तो यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनके प्रति मावल की जनता में नाराजगी का माहौल था। उन्होंने दावा किया कि, राष्ट्रवादी के कार्यकर्ताओं ने पूरी ईमानदारी से महायुति का प्रचार किया है। बारणे का आरोप बिल्कुल बेबुनियाद है।

- क्या है मावल लोकसभा का इतिहास

पुणे और रायगढ़ जिलों में बंटा मावल लोकसभा 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया है। इसमें दोनों जिलों के तीन-तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इसके बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में शिवसेना के स्व गजानन बाबर मावल से पहले सांसद चुने गए। तब उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं भूतपूर्व महापौर आजमभाई पानसरे को 80 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। अगले चुनाव यानि 2014 में स्व. बाबर का टिकट कट गया और उनकी जगह कांग्रेस छोड़कर शिवसेना में शामिल हुए श्रीरंग बारणे को उम्मीदवारी मिली। तब बारणे का सीधा मुकाबला राष्ट्रवादी के बागी विधायक स्व लक्ष्मण जगताप के साथ हुआ था जो शेकापा के समर्थन से निर्दलीय के रूप में चुनाव के मैदान में उतरे था। राष्ट्रवादी ने तब राहुल नार्वेकर को प्रत्याशी घोषित किया था। इस चुनाव में बारणे ने जगताप को डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी और नार्वेकर तीसरे नंबर पर फेंके गए थे। 2019 का लोकसभा चुनाव काफी रोचक रहा। तब बारणे के खिलाफ राष्ट्रवादी ने किसी और को नहीं बल्कि अजित पवार के पुत्र पार्थ पवार को मैदान में उतारा था। बारणे ने पार्थ को करीब सवा दो लाख वोटों से हराकर रिकॉर्ड जीत दर्ज की। पिछले 15 सालों से मावल लोकसभा क्षेत्र पर शिवसेना ने अपना वर्चस्व कायम रखा है। राज्य और केंद्र में कांग्रेस के साथ सत्ता में रहने के बावजूद राष्ट्रवादी को मावल लोकसभा से कभी सफलता नहीं मिल सकी और हर बार मुंह की खानी पड़ी है। पिछले दो सालों में प्रदेश में सियासी समीकरण बदलने के बाद मावल में लोकसभा का पहला ऐसा चुनाव हो रहा जिसमें राष्ट्रवादी का प्रत्याशी मैदान में नहीं है।

- क्या है राष्ट्रवादी की नाराजगी की वजह

एक तो मावल लोकसभा की सीट से हर बार मिली शिकस्त और दूसरे अजित पवार के पुत्र की शर्मनाक हार राष्ट्रवादीजनों के दिल में सालों से चुभ रही है। यही वजह है कि मावल लोकसभा में चुनाव से पहले ही सांसद श्रीरंग बारणे को लेकर विरोध शुरू हो गया था। मावल विधानसभा से विधायक सुनील शेलके और पिंपरी विधानसभा से विधायक अन्ना बनसोड़े ने मावल की सीट पर राष्ट्रवादी का दावा करते हुए बारणे की उम्मीदवारी का विरोध किया। पिंपरी चिंचवड़ के शहराध्यक्ष अजित गव्हाणे ने भी विरोध करते हुए मावल की सीट से राष्ट्रवादी के वरिष्ठ नेता भाऊसाहेब भोईर को उम्मीदवारी देने की मांग की। हालांकि बाद में यह सीट शिंदे की शिवसेना के पास गई और बारणे को उम्मीदवारी घोषित हुई। अजित पवार के समझाने पर दोनों विधायकों के साथ स्थानीय नेताओं बारणे को लेकर विरोध की तलवार को वापस म्यान में रख दी। इसके पश्चात सारी राष्ट्रवादी बारणे के प्रचार में जुट गई। हालांकि पार्टी को हर बार मिली शिकस्त और पार्थ पवार की शर्मनाक हार को राष्ट्रवादीजन भुला न सके। उसी में शरद पवार गुट के नेता एवं विधायक रोहित पवार के 'अपने भाई की हार का बदला लूंगा' के बयान ने आग में घी का काम किया। इसके साथ ही खुद बारणे के राष्ट्रवादी के स्थानीय नेताओं के साथ ताल्लुकात कभी ठीक नहीं रहे। राष्ट्रवादी के विरोध में रहने के दौरान उन्होंने हमेशा कटू तेवर अपनाये। नतीजन कुछ लोगों ने खुले आम तो कई लोगों ने चोरी छिपे तरीके से 'मशाल' का प्रचार किया, यह हकीकत है। अब बारणे द्वारा खुले तौर पर राष्ट्रवादी पर गठबंधन धर्म का पालन नहीं करने का आरोप लगा दिया है तो बारणे और राष्ट्रवादी के बीच फिर से दरार बढ़ गई है। इसका आने वाले मनपा और विधानसभा चुनावों पर क्या असर होता है? यह देखना दिलचस्प होगा।

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